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कहानी के पन्नों में पढ़ें राजेंद्र यादव की कहानी : किराए का मकान

प्राची |  अप्रैल 19, 2024

साहित्य और साहित्यकारों ने हमें कहानी के साथ कहानीकार भी दिए हैं। कहानी के पन्नों में हम राजेंद्र यादव की लिखी हुई लघु कथा ‘किराए का मकान’ पर बात करेंगे। राजेंद्र यादव ने साहित्य में अपनी लेखनी से अविस्मरणीय योगदान दिया है। राजेंद्र यादव ने अपने व्यक्तिगत जीवन में जो भी अनुभव किया उसे अपनी लेखनी में तब्दील कर दिया। इस फेहरिस्त में किराए का मकान भी शामिल है। राजेंद्र यादव की लिखी हुई लघु कथा ‘किराए का मकान’ मानव जीवन को नई सीख देता है। आइए पढ़ें उनकी लिखी हुई कहानी किराए का मकान।

दफ्तर जाने के लिए सीढ़ियों से उतर रहा था, तभी अपने मकान मालिक सेठ को जोर-जोर की आवाज सुनाई दी। वह किसी से लड़ रहा था। जीने से बाहर आते ही देखा, पंद्रह-बीस आदमियों की अच्छी-खासी भीड़ वहां जमा थी। बीच में सेठ जी का सह-गर्जन सुनाई दे रहा था। भीड़ में झांकने से पता चला कि प्रतिद्वंदी मोहल्ले के उतने ही प्रसिद्ध पुजारी जी हैं। पटेबाजी की मुद्रा में पैंतरे बदलते हुए सेठजी चीख-चीखकर कह रहे थे, हराम का है दूसरे का पैसा, जेब काट लो, डाका डालो, लूट लो। काम तो कुछ करो मत और लेने को छाती पर चढ़- चढ़कर आओ। लेने का शेर, काम-को-भेड़।

अरे सेठ होगा अपने घर का होगा। रुपए तो हम तेरे सात पुरखों से वसूल कर लेंगे। हमें किस बात का डर है? भगवान हमारे साथ हैं, तेरी सात पीढ़ियों को गुर्क करेगा जो नरक में भी जगह मिल जाए। बने हैं धन्नासेठ, पचास हवेलियां खड़ी हैं। गोदामों में ब्लैक की गांठे भर रखी हैं, रोज लाखों सट्टेबाजी में लूटता है और पैसे देने में दम निकलती है, कोढ़ फूटेगा साले, दूसरों से काम करा लो और पैसे मत दो।

पुजारी जी सेठ जी की छाती पर कटखने कुत्ते की तरह चढ़-चढ़कर आ रहे थे। वास्तव में उनके आत्मविश्वास से लगता था कि उन्हें इस संसार में डर किसी बात का नहीं है, क्योंकि उनके पीछे भगवान है। बड़ा चादर चीवर की तरह कंधों पर डाले, हाथ में पूजा की लुटिया लिए, वे क्रोध दुर्वासा के कोई निकट संबंधी जान पड़ते थे।

एक से पूछा,मामला क्या है? उसने बताया ही था कि कुछ नहीं जी, चार आने का झगड़ा...तभी सेठजी फिर गरजे, हमारी तो सात पीढ़ी नरक में जाएंगी, पर तू भगवान की आंखों में धूल झोंक-झोंक कर अपने सात पुरखे तारता रहियो...ब हैं पुजारी जी, चंदन लगा लिया, चादरा पहन लिया, चल दिए खड़ाऊ खटखटाते हुए, नाकों चने नहीं चबवा दिए तो मैं सेठ मलूक राम का बेटा नहीं। पुजारी जी, तुम्हें सवा रुपए के हिसाब से लेना हो तो लो, नहीं तो रास्ता नापो।

पुजारी जी और भी ताव में आ गए, कंधे पर चादर को और भी खिसकाकर, बिल्कुल सेठ जी के पास तक झपटकर दुनालियों की अपनी दोनों उंगलियां ठीक उनकी आंखों की सीध में करके क्रोध से थर-थर कांपते दहाड़े, डेढ़ रुपया? एक पाई कम नहीं। साले तेरी आंखें फोड़ के ले लूंगा, तूने समझा क्या है? ब्राह्मण का बच्चा हूं, श्राप दे दूंगा तो ढेर हो जाएगा फिर रोता फिरेगा। तुम्हारी तरह नहीं है बाहर ऐश करें और अपने घर में...और अपनी ब्रह्मतेज से लड़खड़ाती जुबान से पुजारी जी ने सेठ और सेठानी दोनों के सम्मान में ऐसे अपशब्द कहे कि सेठ जी ने आव देखा न ताब, उनकी गालियां उन्हें वापस करते लपके और पुजारी जी का टेंटुआ भींचकर भवसागर से लगे तारने। तब लोगों ने बीच में आकर सेठ जी को पकड़ा, पुजारी जी को हटाया। उन्हें शांत करते हुए एक सज्जन ने पूछा, अरे छोड़िए सेठ जी, गुस्सा थूक दीजिए..मामला आखिर क्या है?

सेठ जी मामला बताएं, इससे पहले ही लोगों द्वारा रुके हुए पुजारी जी वहीं से गरजे, यह क्यों बताएगा, मैं बताता हूं, इक्कीस दिन के अनुष्ठान के लिए इस साले ने मुझे तय किया। झूठ कह रहा हूं ? तब तो आया घिघियात हुआ- पुजारी जी, तुम्हारे चरण पकड़े, एक अनुष्ठान किया है मैंने..बस जरा, मेरी गांठ अच्छे भाव बिक जाए। तुम जरा रोज एक घंटे आकर पूजा कर जाया करो। पूजन जाने किससे पूछ आया, मैंने समझाया कि यज्ञ की जरूरत है। नहीं माने। खैर, डेढ़ रुपया तय हुआ। सो कभी साला कहता- तुम पंद्रह मिनट पहले उठ गए। कभी कहता, दस मिनट पहले काम छोड़ दिया, कभी कहता कि पुजारी जी, जोर-जोर से पढ़ा करो, पता चले, तुम कुछ कर तो रहे हो।बोलो, ये तो पूजा है। हमारे जैसे जी में आएगी वैसे करेंगे, कपड़े नापने का काम तो है नहीं कि दो गिरह खींच दिया। खुद तो साले हमें बैठकर बेंत हिलाते घूमने चले जाते थे हमारे सामने। अब हमें पता लगा कि जासूसी करता है, दूसरे दरवाजे से लौटकर खिड़की में बैठकर देखता है या नौकर से कहकर जाता है। पहले ही दिन बोला- पुजारी जी, सीधा ज्यादा लेते हो, बोलो, साले हम अपने लिए लेते हैं? जितना भगवान के लिए चाहिए उतना ही तो लेंगे, कम कैसे लें? शास्त्रों में लिखा है- सेर भर घी, तो हम पाव भर लेकर क्या नरक में पड़ें? अगर न हो तो तू हमारी छाती पर चढ़कर आए, और सौ बातों की एक बात तो यह कि कोई दूसरा सस्ता मिलता तो दूसरा लगा लेता क्यों हाथ-पैर जोड़े थे? पुजारी जी के मुंह में झाग आने लगे, सेठ जी चिंघाड़ रहे थे..जेब काट ले..

 

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