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प्रकृति पर कविताएं

टीम Her Circle |  अक्टूबर 07, 2023

प्रकृति से इंसान को जोड़ने में किस्से और कहानियों की अहम भूमिका रही है, बेहद संवेदनशीलता के साथ प्रकृति के महत्व को बताने में कई लेखकों और कहानीकारों ने मुख्य योगदान दिया है, ऐसे में जब हम विश्व पर्यावरण दिवस के बहाने इस महीने का जश्न मना रहे हैं, आइए पढ़ते हैं ऐसी कुछ कविताएं। 

 

नरेंद्र वर्मा की कविता 

प्रकृति की लीला न्यारी,

कहीं बरसता पानी, बहती नदियां,

कहीं उफनता समंद्र है,

तो कहीं शांत सरोवर है।

प्रकृति का रूप अनोखा कभी,

कभी चलती साए-साए हवा,

तो कभी मौन हो जाती,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

कभी गगन नीला, लाल, पीला हो जाता है,

तो कभी काले-सफेद बादलों से घिर जाता है,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

कभी सूरज रोशनी से जग रोशन करता है,

तो कभी अंधियारी रात में चाँद तारे टिम टिमाते है,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

कभी सुखी धरा धूल उड़ती है,

तो कभी हरियाली की चादर ओढ़ लेती है,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

कहीं सूरज एक कोने में छुपता है,

तो दूसरे कोने से निकलकर चोंका देता है,

प्रकृति की लीला न्यारी है।

माखनलाल चतुर्वेदी की कविता 

चादर-सी ओढ़ कर ये छायाएँ

तुम कहाँ चले यात्री, पथ तो है बाएँ।

धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें

छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग में हिरणें,

दोनों हाथ बुढ़ापे के थर-थर काँपे सब ओर

किन्तु आँसुओं का होता है कितना पागल ज़ोर-

बढ़ आते हैं, चढ़ आते हैं, गड़े हुए हों जैसे

उनसे बातें कर पाता हूँ कि मैं कुछ जैसे-तैसे।

पर्वत की घाटी के पीछे लुका-छिपी का खेल

खेल रही है वायु शीश पर सारी दनिया झेल।

छोटे-छोटे खरगोशों से उठा-उठा सिर बादल

किसको पल-पल झांक रहे हैं आसमान के पागल?

ये कि पवन पर, पवन कि इन पर, फेंक नज़र की डोरी

खींच रहे हैं किसका मन ये दोनों चोरी-चोरी?

फैल गया है पर्वत-शिखरों तक बसन्त मनमाना,

पत्ती, कली, फूल, डालों में दीख रहा मस्ताना।

रामगोपाल राही की कविता 

बसंत मनमाना

वन, नदियां, पर्वत व सागर,

अंग और गरिमा धरती की,

इनको हो नुकसान तो समझो,

क्षति हो रही है धरती की।

हमसे पहले जीव जंतु सब,

आए पेड़ ही धरती पर,

सुंदरता संग हवा साथ में,

लाए पेड़ ही धरती पर।

पेड़ -प्रजाति, वन-वनस्पति,

अभयारण्य धरती पर,

यह धरती के आभूषण है,

रहे हमेशा धरती पर।

बिना पेड़ पौधों के समझो,

बढ़े रुग्णता धरती की,

हरी भरी धरती हो सारी,

सेहत सुधरे धरती की।

खनन, हनन व पॉलीथिन से,

मुक्त बनाएं धरती को,

जैव विविधता के संरक्षण की,

अलख जगाए धरती पर।

 

 

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