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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

चाँद पर रचनाएँ

टीम Her Circle |  अगस्त 26, 2023

23 अगस्त शाम को 5 बजकर 45 मिनट पर चंद्रयान-3 ने चांद पर सफलता पूर्वक लैडिंग की और इतिहास रचा गया। चांद हमेशा से ही विज्ञान में ही नहीं, साहित्यकारों के लिए भी चहेता रहा है, कई रचनाकारों ने अपने-अपने तरीकों से चाँद को देखा है, तो आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ कविताओं और रचनाओं के बारे में। 

 

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा : इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा 

कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा 

हम भी वहीं मौजूद थे, हम से भी सब पूछा किए

हम हँस दिए, हम चुप रहे, मंज़ूर था पर्दा तेरा

इस शहर में किससे मिलें, हमसे तो छूटीं महफ़िलें

हर शख़्स तेरा नाम ले, हर शख़्स दीवाना तेरा

कूचे को तेरे छोड़कर जोगी ही बन जाएँ मगर

जंगल तेरे, पर्बत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा

हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी, उफ़्तादगी

एहसान है क्या क्या तेरा, ऐ हुस्ने-बेपरवा तेरा

दो अश्क जाने किसलिए, पलकों पे आकर टिक गए

अल्ताफ़ की बारिश तेरी, इकराम का दरिया तेरा

ऐ बेदरीग़ो-बेअमाँ, हम ने कभी की है फ़ुग़ाँ

हमको तेरी वहशत सही, हमको सही सौदा तेरा

हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीरे रहगुज़र

रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा

हाँ हाँ तेरी सूरत हसीं, लेकिन तू ऐसा भी नहीं

इक शख़्स के अशआर से, शोहरा हुआ क्या क्या तेरा

बेदर्द सुननी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल

आशिक़ तेरा, रुस्वा तेरा, शाइर तेरा, इंशा तेरा। 

 

कितना तन्हा चाँद: परवीन शाकिर 

पूरा दुख और आधा चाँद

हिज्र की शब और ऐसा चाँद

दिन में वहशत बहल गई

रात हुई और निकला चाँद

किस मक़्तल से गुज़रा होगा

इतना सहमा सहमा चाँद

यादों की आबाद गली में

घूम रहा है तन्हा चाँद

मेरी करवट पर जाग उठ्ठे

नींद का कितना कच्चा चाँद

मेरे मुँह को किस हैरत से

देख रहा है भोला चाँद

इतने घने बादल के पीछे

कितना तन्हा होगा चाँद

आँसू रोके नूर नहाए

दिल दरिया तन सहरा चाँद

इतने रौशन चेहरे पर भी

सूरज का है साया चाँद

जब पानी में चेहरा देखा

तू ने किस को सोचा चाँद

बरगद की इक शाख़ हटा कर

जाने किस को झाँका चाँद

बादल के रेशम झूले में

भोर समय तक सोया चाँद

रात के शाने पर सर रक्खे

देख रहा है सपना चाँद

सूखे पत्तों के झुरमुट पर

शबनम थी या नन्हा चाँद

हाथ हिला कर रुख़्सत होगा

उस की सूरत हिज्र का चाँद

सहरा सहरा भटक रहा है

अपने इश्क़ में सच्चा चाँद

रात के शायद एक बजे हैं

सोता होगा मेरा चाँद

 

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये : बशीर बद्र 

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये

तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये

चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर

मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये

समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको

हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये

मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ

कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा

परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाये

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये

 

हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद : डॉ राही मासूम रज़ा 

हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद

अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद

जिन आँखों में काजल बन कर तैरी काली रात

उन आँखों में आँसू का इक क़तरा होगा चाँद

रात ने ऐसा पेँच लगाया टूटी हाथ से डोर

आँगन वाले नीम में जा कर अटका होगा चाँद

चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते

मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद

 

चांद से फूल से या मेरी ज़ुबां से सुनिए :निदा फ़ाजली 

चांद से फूल से या मेरी ज़ुबां से सुनिए

हर तरफ आपका क़िस्सा हैं जहां से सुनिए

सबको आता नहीं दुनिया को सता कर जीना 

ज़िन्दगी क्या है मुहब्बत की ज़बां से सुनिए

क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाए 

मेरे हालात भी अपने ही मकां से सुनिए

मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का 

मैं हूं ख़ामोश जहां, मुझको वहां से सुनिए

कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें 

किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवां से सुनिए

चांद में कैसे हुई क़ैद किसी घर की ख़ुशी 

ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ां से सुनिए

 

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