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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

मीराबाई के भक्ति गीत, जो आज भी जाते हैं गुनगुनाए

टीम Her Circle |  फ़रवरी 27, 2025

कृष्ण के प्रति मीराबाई की अनन्य भक्ति से सभी परिचित हैं और सभी परिचित हैं उस भक्ति रूपी प्रेम में रचे-बसे मीराबाई के भक्ति गीतों से। आइए जानते हैं मीराबाई के उन्हीं भक्ति गीतों को, जो सदियाँ बीत जाने के बावजूद आज भी गुनगुनाए जाते हैं। 

जो तुम तोड़ो पिया, मैं नाही तोडू रे

जो तुम तोड़ो पिया, मैं नाही तोडू रे।

तोरी प्रीत तोड़ी कृष्णा, कौन संग जोडू॥

तुम भये तरुवर, मैं भयी पंखिया।

तुम भये सरोवर, मैं भयी मछिया॥ 

तुम भये गिरिवर, मैं भयी चारा।

तुम भये चंदा मैं भयी चकोरा॥ 

तुम भये मोती प्रभु जी, हम भये धागा।

तुम भये सोना, हम भये सुहागा॥ 

बाई मीरा के प्रभु बृज के बासी।

तुम मेरे ठाकुर, मई तेरी दासी॥

पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे

मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे। 

लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥ 

विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।

'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥

मेरो दरद न जाणै कोय

हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।

घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय। 

जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय।

सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय।

गगन मंडल पर सेज पिया की किस बिध मिलणा होय।

दरद की मारी बन-बन डोलूँ बैद मिल्या नहिं कोय।

मीरा की प्रभु पीर मिटेगी, जद बैद सांवरिया होय।

आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको 

आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको॥

घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा दरसन गोविन्द जी को॥१॥

निरमल नीर बहत जमुना में भोजन दूध दही को।

रतन सिंघासण आपु बिराजैं मुकुट धर।ह्‌यो तुलसी को॥२॥

कुंजन कुंजन फिरत राधिका सबद सुणत मुरली को।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर भजन बिना नर फीको॥३॥ 

आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी

आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी।

चित्त चढ़ो मेरे माधुरी मूरत उर बिच आन अड़ी।

कब की ठाढ़ी पंथ निहारूं अपने भवन खड़ी॥

कैसे प्राण पिया बिन राखूं जीवन मूल जड़ी।

मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहै बिगड़ी॥

बसो मोरे नैनन में नंदलाल

मोहनी मूरति सांवरि सूरति नैणा बने बिसाल।

अधर सुधारस मुरली राजत उर बैजंती-माल॥

छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नूपुर सबद रसाल।

मीरा प्रभु संतन सुखदाई भगत बछल गोपाल॥ 

राखौ कृपा निधान

अब मैं सरण तिहारी जी मोहि राखौ कृपा निधान।

अजामील अपराधी तारे तारे नीच सदान।

जल डूबत गजराज उबारे गणिका चढ़ी बिमान।

और अधम तारे बहुतेरे भाखत संत सुजान।

कुबजा नीच भीलणी तारी जाणे सकल जहान।

कहं लग कहूं गिणत नहिं आवै थकि रहे बेद पुरान।

मीरा दासी शरण तिहारी सुनिये दोनों कान।

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥

जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।

तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥

छांडि द कुलकी कानि कहा करिहै कोई।

संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥

चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई।

मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥

अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई।

अब तो बेल फैल ग आंणद फल होई॥ 

दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई।

माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥ 

भगति देखि राजी हु जगत देखि रोई।

दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

होरी खेलत हैं गिरधारी

मुरली चंग बजत डफ न्यारो।

संग जुबती ब्रजनारी॥

चंदन केसर छिड़कत मोहन

अपने हाथ बिहारी।

भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग

स्यामा प्राण पियारी।

गावत चार धमार राग तहं

दै दै कल करतारी॥

 

फाग जु खेलत रसिक सांवरो

बाढ्यौ रस ब्रज भारी।

मीराकूं प्रभु गिरधर मिलिया

मोहनलाल बिहारी॥

कोई कहियौ रे प्रभु आवनकी

कोई कहियौ रे प्रभु आवनकी

आवनकी मनभावन की।

आप न आवै लिख नहिं भेजै

बाण पड़ी ललचावनकी।

ए दो नैण कह्यो नहिं मानै

नदियां बहै जैसे सावन की। 

कहा करूं कछु नहिं बस मेरो

पांख नहीं उड़ जावनकी।

मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे

चेरी भै हूं तेरे दांवनकी। 

जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन

रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे।

जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन॥

गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे।

जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन॥

उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे।

जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन।

ग्वाल बाल सब करत कुलाहल जय जय सबद उचारे।

जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन। 

मीरा के प्रभु गिरधर नागर शरण आयाकूं तारे॥

जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन॥

तेरो कोई नहिं रोकणहार मगन हो मीरा चली 

लाज सरम कुल की मरजादा सिरसै दूर करी।

मान-अपमान दो धर पटके निकसी ग्यान गली॥

ऊंची अटरिया लाल किंवड़िया निरगुण-सेज बिछी। 

पंचरंगी झालर सुभ सोहै फूलन फूल कली। 

बाजूबंद कडूला सोहै सिंदूर मांग भरी।

सुमिरण थाल हाथ में लीन्हों सौभा अधिक खरी॥

सेज सुखमणा मीरा सौहै सुभ है आज घरी।

तुम जा राणा घर अपणे मेरी थांरी नांहि सरी॥

श्याम मैं बादल देख डरी

बादल देख डरी हो स्याम मैं बादल देख डरी

काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी।

श्याम मैं बादल देख डरी।

जित जाऊं तित पाणी पाणी हु भोम हरी॥ 

जाका पिय परदेस बसत है भीजूं बाहर खरी।

श्याम मैं बादल देख डरी। 

मीरा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खरी।

श्याम मैं बादल देख डरी।

मैं तो सांवरे के रंग राची।  

मैं तो सांवरे के रंग राची।

साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू लोक-लाज तजि नाची॥

ग कुमति ल साधुकी संगति भगत रूप भै सांची।

गाय गाय हरिके गुण निस दिन कालब्यालसूं बांची॥ 

उण बिन सब जग खारो लागत और बात सब कांची।

मीरा श्रीगिरधरन लालसूं भगति रसीली जांची॥

 

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