जुलाई में सावन के महीने की तेजी के साथ कई साहित्यकारों का जन्मदिन भी लेकर आता है। जुलाई के पहले सप्ताह में खासतौर पर कई सारे साहित्यकारों का जन्मदिन है और आज हम आपको उन्हीं के बारे में बताने जा रहे हैं। जुलाई के पहले सप्ताह यानी कि 1 जुलाई से लेकर 10 जुलाई के बीच कई सारे साहित्यकारों ने पृथ्वी पर अपना पैर रखा। आइए विस्तार से जानते हैं इन सभी साहित्यकारों के बारे में।
लेखक अमिताव घोष और उनके लेखन के बारे में

11 जुलाई 1956 को लेखक अमिताव घोष का जन्म भारत में हुआ। लेखक अमिताव घोष समकालीन भारतीय अंग्रेजी साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित और बौद्धिक लेखकों में से एक हैं। उनके लेखन में इतिहास, संस्कृति, वैश्विक राजनीति, प्रवास और पर्यावरण जैसे जटिल विषयों का गहन अध्ययन मिलता है। उल्लेखनीय है कि घोष ऐसे लेखक है,जो कि साहित्य के जरिए इतिहास,विज्ञान और समाज को जोड़ते हैं। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा देहरादून से हासिल की। इसके बाद उन्होंने अपनी पीएचडी की डिग्री पूरी की। बतौर पत्रकार,शोधकर्ता और प्रोफेसर के साथ उपन्यासकार के तौर पर उन्होंने अपनी पहचान कायम की है। इसके साथ ही साहित्य में अपनी बौद्धिक और वैश्विक दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाते हैं। उनके लेखन की खासतौर पर विशेषताएं रही हैं। घोष अपने उपन्यासों में वास्तविक ऐतिहासिक घटनाओं को लेकर कल्पना और शोध के साथ कथा रचते हैं। उदाहरण के तौर पर ‘सी ऑफ पॉपीज’ में Sea of Poppies में 19 वीं सदी का अफीम व्यापार और भारत-चीन संबंधों की पड़ताल। उनके लिखे गए पात्र कई देशों, संस्कृतियों और भाषाओं से होते हैं। उनकी कहानियाँ केवल भारत तक सीमित नहीं होती, बल्कि पूरे विश्व को जोड़ती हैं। उनकी प्रमुख कृतियों के बारे में बात की जाए, तो द शैडो लाइंस में कोलकाता और लंदन के बीच की कहानी दिखाई गई है, जो कि विभाजन,पहचान, यादें और राष्ट्र की अवधारणा पर आधारित है। अपने अद्भुत लेखन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान भी मिल चुका है।
लेखक फ्रांज काफ्का और उनके लेखन के बारे में विस्तार से

फ्रांज काफ्का 20 वीं शताब्दी के सबसे प्रभावशाली और रहस्यपूर्ण साहित्यकारों में से एक माने जाते हैं। उनकी रचनाएं आधुनिक युग की असहजता, अस्तित्व की विडंबना और नौकरशाही के दमनकारी स्वरूप की गहरी पड़ताल करती हैं। फ्रांज काफ्का का जन्म 3 जुलाई को ऑस्ट्रिया में हुआ और केवल 40 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। ज्ञात हो कि वह बीमा कंपनी में कार्यरत रहे और इसके अलावा अपने निजी समय में उन्होंने लेखन का कार्य किया। ज्ञात हो कि फ्रांज काफ्का यहूदी मूल के थे, जो कि उनके लेखन में आत्मसंघर्ष और अलगाव की भावना के रूप में झलकता है। उनके लेखन की खूबी यह रही है कि उनकी रचनाओं में इंसान की दुनिया और उसका स्थान प्रमुख होता है। उनके पात्र अक्सर ऐसी नौकरशाही से जूझते हैं, जो न तो स्पष्ट है, न ही तर्कसंगत है। उनके लेखन में सपना और यर्थाथ का धुंधलापन होता है। उनकी सबसे लोकप्रिय रचना का नाम ‘द ट्रायल’ रहा है। जो कि जोसेफ के. नाम के व्यक्ति के एक दिन बिना बताए एक रहस्यमय अपराध के लिए गिरफ्तार ्किया गया जाता है और इसी के साथ कहानी का सफर भी शुरू होता है। उल्लेखनीय यह है कि उनकी अधिक रचनाएं उनके मौत के बाद लोकप्रिय हुईं। उन्होंने अपने मित्र मैक्स ब्रांड से कहा था कि उनके सारे दस्तावेज जला दिया जाए, लेकिन ब्रॉड ने उन्हें प्रकाशित कर दिया। कुल मिलाकर देखा जाए, तो फ्रांज काफ्का का लेखन मानव मन की गहराई,सामाजिक अस्पष्टता और अस्तित्व की असहज सच्चाई को सामने लाता है।
हरमन हेस और उनके लेखन के बारे में विस्तार से

2 जुलाई 1877 को हरमन हेस का जमन जर्मनी में हुआ। हरमन हेस को 20 वीं शताब्दी के लोकप्रिय जर्मन-भाषी साहित्यकारों में गिने जाते हैं। उनके लेखन की खूबी यह रही है कि हेस के पात्र जीवन के अर्थ, अस्तित्व और आत्मा की शांति की खोज में लगे रहते हैं। हेस के अधिकांश नायक सामाजिक रीति-नीतियों से अलग हटकर अपनी राह पर चलते हैं। उनकी लिखी हुई रचना ‘सिद्धार्थ’ एक ब्राह्मण युवक के आत्मज्ञान की तलाश में घर छोड़ देता है, भोग, ज्ञान और तप के रास्तों से गुजरता है। गौतम बुद्ध के जीवन से इस कहानी की प्रेरणा ली गई है। यह बुद्ध की कहानी नहीं है, बल्कि एक साधक की अपनी यात्रा के बारे में है। इस किताब का मुख्य विचार यह है कि आत्मज्ञान केवल किताबों और उपदेशों से नहीं आता है। अनुभव से आता है। ज्ञान हो कि हरमन हेस को साहित्य का नोबेल प्राइज भी मिल चुका है। उल्लेखनीय है कि वह ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने साहित्य को केवल कहानी कहने का माध्यम नहीं बनाया है, बल्कि आत्मा की साधना बना दिया है।
गुलजार देहलवी और उनके लेखन के बारे में विस्तार से

7 जुलाई 1926 को दिल्ली में गुलजार देहलवी का जन्म हुआ। उनके लेखन ने हमेशा भाषा, संस्कृति और भारतीयों को जोड़ने में यकीन रखा। उन्हें न सिर्फ एक मशहूर शायर माना गया, बल्कि उर्दू भाषा को आजाद भारत में सम्मान दिलाने वाले प्रमुख सांस्कृतिक योद्धा भी माना गया। उनके लेखन में देशभक्ति की भी गहरी झलक दिखाई देती है। उनकी खूबी यह भी रही है कि उन्हें लाल किले से दिए गए पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के भाषण के तुरंत बाद उर्दू की पहली कविता पढ़ने वाली कवि बनें। उन्होंने इसके साथ भारत की पहली उर्दू विज्ञान पत्रिका की शुरुआत की और इसके पहले संपादन भी बने। यह भारत सरकार द्वारा प्रकाशित होती थी और उर्दू को विज्ञान, शिक्षा और आधुनिकता से जोड़ने का सराहनीय प्रयास था। उनकी शायरी की खूबी यह है कि उसने मोहब्बत, इंसानियत, देशभक्ति का मेल मिलता है। उनकी भाषा शैली बेहद सरल, प्रभावशाली और परंपरागत उर्दू लहजे में होती थी। उनके लेखन में दिल्ली, कश्मीरी तहजीब और हिंदुस्तानी गंगा-जमुना संस्कृति की छवि झलकती है।
लेखक विस्लावा और उनके लेखन के बारे में विस्तार से

लेखक विस्लावा का जन्म 2 जुलाई को 1923 को हुआ। विस्लावा 20वीं शताब्दी की सबसे संवेदनशील, बौद्धिक और प्रभावशाली कवयित्रियों में से एक थीं। उनके लेखन में दर्शन, विज्ञान, इतिहास, मानवीय जिज्ञासा और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की साधारण बातों में छिपे असाधारण पहलुओं की झलक मिलती है। उनकी कविताएं विज्ञान, इतिहास और तर्क से संवाद करती हैं। यह भी जान लें कि विस्लावा ने 20 वीं शताब्दी की महिला कवियों में एक ऊंचा स्थान पाया है। उनकी कविताएं आज भी स्कूलों और विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है। उनकी लेखन शैली ने बिल्ली, टमाटर जैसे मामूली प्रतीकों को भी अपने विचार का माध्यम बनाया है।