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सूफी साहित्य के जरिए लिखी गई प्रेम की भाषा, जानें विस्तार से

टीम Her Circle |  जनवरी 28, 2024

सूफी साहित्य को प्रेम की भाषा कहा जाता है, जहां पर ईश्वर के प्रति अपने लगाव और सम्मान को जाहिर करने के लिए सूफी शब्दों में साहित्य की नई परिभाषा लिखी जाती है। सूफी साहित्य को सूफीवाद भी कहा जाता है, जो कि मध्ययुगीन साहित्य है। खासतौर पर देखा जाए, तो सूफी साहित्य का प्रभाव कविताओं पर अधिक पड़ा है। सूफी साहित्य को बयान करने के लिए सबसे अधिक अरबी, फारसी, तुर्क और उर्दू भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। सूफी साहित्य ने साहित्य को अपनी कविताओं के जरिए अधिक स्वतंत्रता प्रदान की है। सूफियों ने साहित्य में कविताओं और लोककथाओं के जरिए कई गहरे भावों को प्रकट किया है। आइए विस्तार से जानते हैं सूफी साहित्य के बारे में। 

सूफी साहित्य के आगाज के बारे में जानिए

सूफी साहित्य के सूफी कवियों की बात की जाए, तो निजामी, नवाई, हफेज, समानी और जामी की रचनाएं सबसे अधिक लोकप्रिय हुई हैं और सबसे अधिक पसंद भी की गई हैं। सूफी कवियों ने अपनी कविताओं में दैवीय न्याय पर जोर देते हुए उत्पीड़न का विरोध किया है। उन्होंने धार्मिक कट्टरता के साथ लालच और पाखंड पर भी सूफी साहित्य में बात की है। सूफी साहित्य के आगाज की बात की जाए, तो सूफी साहित्य को सबसे पहले फारसी में लिखा गया और इसकी शुरुआत 12 वीं से 15 वीं शताब्दी के बीच हुई थी। सूफी परंपरा से जुड़े प्रमुख कवियों में हतेफ एस्फहानी, बेदिल और अहमद निकतलब का नाम शामिल है। यह जान लें कि इतिहास में सबसे लंबे समय तक सूफी साहित्य विभिन्न भाषाओं और भौगोलिक क्षेत्रों में बिखरा हुआ रहा है। उल्लेखनीय है कि अंग्रेजी और जर्मन साहित्य की तुलना में सूफी साहित्य एक परंपरा के तौर पर विवादस्पद भी माना गया है।  

ऐसे हुआ सूफी साहित्य का प्रवेश 

मध्य युग के समय सूफी साहित्य ने यूरोप में प्रवेश किया। इस समय के करीब पश्चिम के कई बड़े विद्यवानों ने सूफी साहित्य के अनुवाद किए और आलोचनाएं भी हुईं। खासतौर पर सूफी कवि रूमी, जामी और सादी की लोकप्रिय फारसी सूफी कविताओं का अनुवाद किया गया, वहीं दूसरी तरफ सूफी साहित्य एक विपरीत छवि की तरफ भी इशारा करने लगा, जहां पर 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के मध्य पूर्व और मध्य एशिया में पश्चिमी यात्रियों के व्यक्तिगत संस्मरणों और यात्रा डायरी में सूफी साहित्य दिखाई देने लगा। दूसरी तरफ सूफी कविता इस्लामी भक्ति साहित्य के तौर पर उभरी जो कि अक्सर धर्मनिरपेक्ष प्रेम कविता के माध्यम से मनुष्य और ईश्वर के बीच मिलन और प्रेम के भाव को व्यक्त करता है। दिलचस्प है कि प्रेम की सूफी अवधारणा सबसे पहले आठवीं शताब्दी की एक महिला फकीर बसरा की राबिया द्वारा प्रस्तुत की गई थी। इसके बाद सूफी कवि रूमी ने अपनी रचनाओं में प्रेम के सारे भाव, जन्म और मृत्यु के साथ मानव जाति की एकता और उससे जुड़ी कई सारी अवधारणाएं भी प्रस्तुत की। 

कहां से आया सूफी शब्द और जानें काव्य से इसका संबंध

साहित्यकारों का मानना है कि सूफी शब्द सूफ से बनाया गया है। यह जानकारी सामने आयी है कि सूफी लोग सफेद ऊन के बने चोगे पहनते थे। इसके साथ ही वह सभी अपने स्वभाव और आचरण को भी मेला नहीं होने देते थे। उनका आचरण भी पवित्र और शुद्ध होता था। सूफी कवि धारा के कई सारे कवि मुस्लिम धर्म के रहे हैं। हिंदी के प्रथम सूफी कवि मुल्लादाऊद को माना जाता रहा है। इसके साथ यह भी जान लें कि आचार्य शुक्ल ने हिंदी का प्रथम सूफी कवि कुतुबन लिखा। वहीं सूफी काव्य की शुरुआती परंपरा राजकुमार वर्मा की मुल्लादाऊद की चन्दायन को माना गया है। 

जानें कौन रहे हैं सूफी के रचनाकार और उनकी लोकप्रिय रचनाएं

जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि सूफी साहित्यकारों में सबसे पहले शुरुआत मुल्लादाऊद ने चन्दायन से की। यह अवधी भाषा का प्रथम संबंध काव्य है। इसके बाद बारी आती है, कुतुबन-मृगावती की आचार्य शुक्ल ने इसे सूफी काव्य परंपरा का पहला ग्रंथ माना है। इस सूफी रचनाओं में एक नाम पद्मावत की भी आता है। इस काव्य में चितौड़ के राजा रत्नसेन और उनकी रानी पद्मावत की कथा का चित्रण किया है। जायसी की अन्य रचनाओं की बात करें,तो  इसमें अखरापट, आखिरी खत में कयामत का वर्णन आदि किया गया है। 

यहां पढ़ें लोकप्रिय अमीर खुसरो की सूफी दोहे

ज्ञात हो कि अमीर खुसरो भारत की संस्कृति को काफी करीब से समझा है। आप यह भी मान सकती हैं कि खुसरों के काव्य पर सूफियों का स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। अपनी सूफी कविताओं और दोहे में खुसरो ने देश के हालात यहां के वातावरण को काफी करीब से महसूस किया है। खुसरो ने हमेशा अपने काव्य में सूफियाना अंदाज को बखूबी पेश किया। उन्होंने अपने एक सूफी दोहे में लिखा है कि..

खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग, जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग, साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन, दिया जलत है रात में जिया जलत बिन रैन, अंगत तो परबत भयो, देहरी भई विदेस, जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस, खुसरो पाती प्रेम की बिरला बांचे कोय,वेद कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय, खुसरो सरीय सराय है क्यों सोवे सुख चैन, कूच नगारा सांस का , बाजत है दिन रैन, खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार, जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार, खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग, तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग, रैन बिना जग दुखी और दुखी चंद्र बिन रैन, तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन, आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूं, न मैं देखूं और न को, न तोहे देखन दूं, खुसरो पाती प्रेम की बिरला बांचे कोय, वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।

जानें सूफी साहित्य से जुड़ी दिलचस्प जानकारी 

सूफी साहित्य में सूफी कविता को प्रमुख स्थान मिला हुआ है। क्योंकि सूफी काव्य का मूल भाव प्रेम है। इसके साथ ही सूफी साहित्य में सूफी कवि सबसे लोकप्रिय रहे हैं। प्रमुख नामों की बात की जाए, तो मुला दाऊद, जायसी, मंझन, कुतुबन को हिंदी साहित्य का प्रमुख सूफी कवि माना गया है। सूफी काव्यों में सबसे अधिक महत्व प्रेम गाथा को मिली है, फिर चाहे वह ईश्वर के प्रति प्रेम का भाव हो या फिर किसी व्यक्ति की तरफ। दिलचस्प है कि सूफी कवियों की काव्यधारा लिखने की भाषा खास तौर पर अवधी भाषा रही है। क्योंकि सूफी से जुड़े कवि अधिकांश देश के पूर्वी भाग में रहा करते थे। अवधी भाषा काफी सरल होने के कारण सूफी कवियों के लिए यह आसान रास्ता था, अपनी बातें लोगों तक सरल शब्दों में पहुंचाना। यह भी माना जाता है कि सूफी साहित्य ने ही दो धर्मों के बीच मेल जोल बढ़ाने का कार्य सफलता पूर्वक किया है। 



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