मृणाल पांडे साहित्य जगत का एक बड़ा नाम हैं। इन्होंने कई ऐसी रचनाएं की हैं, जो कालजयी बनीं। आइए जानें विस्तार से।
जीवन परिचय
मृणाल पांडे के जीवन परिचय की बात करें, तो उन्होंने एक से बढ़ कर एक कहानियां लिखी हैं। बता दें कि मृणाल पांडे का जन्म 26 फरवरी 1946 में हुआ था और वह मशहूर लेखिका शिवानी की पुत्री हैं। वह भारत की एक पत्रकार, लेखक एवं भारतीय टेलीविजन की जानी-मानी हस्ती रही हैं। वह भारत के एक प्रमुख अख़बार की संपादक रहीं और किसी अख़बार की लंबे समय तक पहली महिला सम्पादिका रहने का उन्हें दर्जा प्राप्त है। उनका जन्म मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में जानी-मानी उपन्यासकार एवं लेखिका शिवानी जी के घर हुआ। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में पूरी की। उसके बाद इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए किया। इन्होंने अंग्रेजी एवं संस्कृत साहित्य, प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्व, शास्त्रीय संगीत तथा ललित कला की शिक्षा कारकारन (वाशिंगटन डीसी) से पूरी की। 21 वर्ष की उम्र में उनकी पहली कहानी हिन्दी साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में छपी। तब से वो लगातार लेखन कर रही हैं। समाज सेवा में उनकी गहरी रुचि रही है। वो कुछ वर्षों तक ‘सेल्फ इम्प्लायड वूमेन कमीशन ’ की सदस्या रही हैं।
रचनाएं
अगर हम उनकी रचनाओं की बात करेंगे, तो उनकी कहानियाँ यानी कि एक बात थी, बचुली चौकीदारिन की कढ़ी, एक स्त्री का विदागीत, चार दिन की जवानी तेरी, विरुद्ध, अपनी गवाही, हमका दियो परदेस, रास्तों पर भटकते हुए, पटरंगपुर पुराण, देवी और सहेला रे जैसी रचनाएं रहीं। वहीं आलोचना की बात करें, तो ओ उब्बीरी, बंद गलियों के विरुद्ध, स्त्री : लम्बा सफर, स्त्री : देह की राजनीति से देश की राजनीति तक, ध्वनियों के आलोक में स्त्री; आलेख : जहाँ औरतें गढ़ी जाती है का लेखन किया है।
लोककथाएँ
अगर उनकी लिखीं लोककथाओं की बात करें, तो उनकी कई सारी लोक कथाएं लोकप्रिय हैं, जिनमें राजुला मालूशाही की कथा, सरों के धड़ से जुड़ने की कथाबाघ, बंदर और दढ़ियल खाडू (मेढे) की कथाबहुरूपिया गुरु और चतुर चेले की कथा, मुद्दन्ना किसान और विचित्र कुएं की कथा, प्रेम की ड्योढी का संतरी, सदेई और सदेऊ की कथा, अंधेरे देश, कंजे राजा और गंजे महामंत्री की कथा, बहुरुपिये राक्षस और दो भाइयों की कथा, मूर्ख, महामूर्ख और वज्रमूर्खों की कथानकाबपोश नकटापंथ की उत्थान-पतन की कथा, पात्रा-पात्रा टर्रानेवाले मेंढक और चींटी की कथा, भगवान का हाथ और सुबिया भिखारी की कथामोर, साहिब और मुसाहिब की कथा, प्रेमाकुल रागमंजरी और दुनियादार काममंजरी गणिकाओं की कथा, सास-बहू, भरवां करेले और नकचढी मूर्ति की कथा, शेर, आदमी और ज़ुबान का घावचतुर मूर्ख और बेवकूफ राजा की कथा, खीर: एक खरगोश और बगुलाभगत कथा, निर्बुद्धि राजा और देशभक्त चिड़ियों की कथा, पिशाचों की पोथी और पंडित की कथा, राजा की खोपड़ी उर्फ अग्रे किं किं भविष्यति?राजा का हाथी, लालची हूहू की कहानी, लोल लठैत और विद्या का घड़ा प्रमुख हैं।
मृणाल पांडे की कहानी
चूहों से प्यार करने वाली बिल्ली : मृणाल पांडे
गली की एक दीवार पर भूरे बालों और कंजी आखों वाली मन्नो बिल्ली आज फिर बैठी-बैठी पंजे में थूक लगा-लगा कर चेहरा साफ किए जा रही थी। मन्नो का जिगरी दोस्त झग्गड बिल्ला कुछ देर उसे देखता रहा फिर उसने मन्नो से पूछा, “आज सुबह तू खंडहरों में नहीं दिखी. कुछ खाने पीने का इरादा नहीं क्या तेरा? चल एकाधेक चूहा पकड़ कर मज़ेदार नाश्ता कर लेते हैं, क्या पता कुछेक अंडे भी हाथ लग जाएं किसी झाड़ी में। चल ना। ”
राख जैसी रंगत और नुंचे हुए कानों वाला झग्गड मुहल्ले भर में बिल्लियों का पहलवान दादा करके मशहूर था. मजाल क्या कि उसके होते गली में पराई गली का कोई और बिल्ला या बिल्ली आ घुसे? तुरंत बदन को धनुष बनाए गुर्राता झग्गड उस पर टूट पड़ता और फिर जो महाभारत होता कुछ पूछो मत। आखिरकार नुंचा नुंचाया परदेसी बिल्ला या बिल्ली तीर की तरह झग्गड के इलाके से तीर की तरह भागता दिखाई देता और विजय गर्व से सीना फुलाए झग्गड दीवार पर बैठ कर अपने घाव चाटता हल्की गुर्राहट से मुहल्ले को देर तलक जताता रहता कि ‘देखो यह मेरा इलाका है। खबरदार जो हमसे टकराए तो, हां’
मन्नो ने भक्तिन वाला मुंह बनाया, “हमें नहीं खाने चूहे वूहे, हम वेजीटेरियन हो गई हैं, हां! टी वी वाले योगी बाबा का कहना है कि मीट माट खाना अधर्म है। पच्छिमी खाना शरीर को खराब करता है। उनकी सलाह मान कर अब हम तो सिर्फ दूध और दूध से बने पदार्थ ही खाएंगी। ”
“हा हा हा”, झग्गड़ हंसा, “अरे बावली, तेरा भेजा फिरेला है क्या? बिल्ली चूहे नहीं खाएगी, तो क्या योगी बाबा की तरह फल का रस पिएगी? और दूध? यहां बस्ती के बच्चों को तो फल या दूध मिलता नहीं, गली की बिल्ली को कौन जूस या दूध पिलाएगा। सांप भी होती तो चल सकता था। पर बिल्ली तो लोग पालते ही इसलिए हैं कि चूहों की भरमार न हो पाए। तू चूहा मारने से इनकार करेगी तो तुझे कौन पूछेगा?”
“न पूछे। हम इंसानों की चलाई पौलिटिक्स का विरोध करते हैं जो जीव को हिंसा सिखाती है। बाबा का कहना है कि खुराक बदलने के बाद भी हमको दूध और फलों से विटामिन मिलेंगे भरपूर और हिंसा से हम हो जाएंगे दूर। जय भारतमाता!”
“ले! बिल्ली के लिए चूहा खाना कोई हिंसा है? यह तो हमारा कुदरती स्वभाव है। कुदरत ने हर जीव के लिए खाने की जो आदतें तय की हैं उनका निर्वाह करने से सबका भला होता है। अब देख तू यदि चूहे खाना छोड़ देगी तो चूहों की तादाद दिन दूनी रात चौगुनी यहां तक बढ़ सकती है कि एक दिन वे किसानों के बखारों का अनाज तक चट कर देंगे। अब देख न, जहां शेरों को मार डाला गया वहां हिरनों, नीलगायों की तादाद इतनी बढ़ गई है कि बेचारी बकरियों भेड़ों को चारा नहीं मिलता। जब रात को जंगल से आकर हिरन खरगोश और नीलगाएं खेतों में खड़ी तमाम फसलें चर जाते हैं तो लोग बाग कहते हैं काश शेर बचाए होते तो इतने चारा खाने वाले जीव हमारा जीना कठिन न करते। दूसरी तरफ यह सोच कि, बाबा लोग की भी तो पॉलिटिक्स होती है। कल को अगर उनके खिलाफ किसी दूसरे चैनल पर कुछ दूसरे बाबा लोग कहने लगे, कि चरागाह कम हो रहे हैं। दूध देने वाले जानवरों को बचाने को बहुत सारा चारा खाने वाले हाथी घोड़े सरीखे पशुओं को अब मीट माट खाना चाहिए ताकि भैंसों-गायों बकरियों ऊंटों को चारा मिलता रहे, तब तो हमारी भी जान खतरे में आ सकती है. बाबाओं का क्या? वो तो मंच से कूद कर अपने आश्रम में छुप जाएंगे, मारा जाई बिल्ला! इंसान अपनी सोचे तो हमको भी अपना सोचना चाहिए। अमरीका योरोप में जहां गाय का ही मीट चलता है, सुनते हैं आजकल कई जगह मुर्गियों गायों के चारे में घोड़े कुत्ते का मीट मिलाया जा रहा है ताकि जानवर जल्द खूब मोटे हों और इंसान को उनसे ज़्यादा मांस मिल सके। ”
मन्नो कुछ चिंता में पड़ गई। बात तो झग्गड़ गलत नहीं कह रहा था। सुबह से भूखी बैठी है , दूध तो क्या सड़ा फल तक नसीब नहीं हुआ है। आखिरकार एक छलांग लगा कर दीवार से उतरी और पूंछ उठा कर झग्गड़ से बोली, “टीवी वाला बाबा गया भाड़ में, चल अपुन शिकार करते हैं। ”