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होली और संगीत का है अटूट रिश्ता, जानिए लोकगीत-संगीत पर विस्तार से

टीम Her Circle |  मार्च 14, 2025

होली और संगीत का खास नाता रहा है। भारतीय संस्कृति की यह खूबी रही है कि यहां हर मौसम, पर्व या त्यौहार में लोक गीतों का साथ अटूट रहा है। ऐसे में होली के लोक संगीत और गीत भी काफी लोकप्रिय रहे हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं। 

लोकगीतों का देश है भारत 

यह भारत की खूबी रही है कि हमारा देश खेतों और खलिहानों की वजह से जाना जाता है। साथ ही यहां सभी ऋतुओं को धूमधाम से मनाया जाता है और यही वजह है कि इसे लोक गीतों का देश भी कहा जा सकता है। यहां की यह खासियत है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक के हर मोड़ पर गीत गाये जाते हैं और झूमते और गाते हैं, जाहिर सी बात है कि लोक गीत संगीत से होली जैसा पर्व कैसे अछूता रह सकता है। इस मौके पर भी होली धूमधाम से मनाई जाती है और कई हिस्सों में जम कर गीत गाए जाते हैं, अब जैसे सावन में कजरी होती है, वैसे ही फागुन में फाग राग गाई जाती है। लोक संगीत की यह खूबी होती है कि इसमें रंग कर एक दिन ही सही सारे कष्ट भूल कर, हमारा ध्यान सिर्फ एन्जॉय करने पर होता है और जीवन में आगे बढ़ने और हर्षोल्लास से भरा हुआ होता है।

होली में लोक गीतों का महत्व  

यह बात तो जगजाहिर है कि भारत में होली का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि इसका संबंध सीधे तौर पर राधा-कृष्ण की प्रेम-लीलाओं है और यही वजह है कि बरसाने की लठमार होली सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, जहां खूब लोक गीत गाए जाते हैं। अगर हम इतिहास के कुछ पन्ने पलटेंगे तो पाएंगे कि मुगल सम्राटों ने भी होली पर्व का जम कर स्वागत किया था और फिर उस समय से ही ब्रज की होली को पूरे देश भर में सबसे पसंदीदा और लोकप्रिय होली मान ली गई थी। होली के माध्यम से यही कोशिश हुई कि देश भर में लोगों के बीच जनता और राजा के बीच किसी भी तरह का द्वंद न हो, कोई भेदभाव नहीं हो और सभी बेहद ख़ुशी से मिल कर एक दूसरे का भेदभाव भूला कर एन्जॉय करें। एक दूसरे के गीत गाएं और मस्ती वाले वातावरण में खो जाएं। गौरतलब है कि तानसेन, उनके वंशजों ओर शिष्यों ने भी कई तरह के लोक गीतों को अहमियत दिया और जन मानस में इसे गाने के लिए प्रेरित किया। 

क्या है धमार और होली से क्या है नाता 

दरअसल, तानसेन और उनके अन्य शिष्यों ने मिल कर ही इसकी रचना की। यह संगीत का एक प्राचीन अंग माना जाता है। दिलचस्प बात यह है कि शास्त्रीय संगीत में धमार का होली से गहरा संबंध रहा है। अगर आपको कभी भी मौका मिला हो कि आपने धमार सुना हो, तो उनमें ब्रज की होली का वर्णन होता है। इसमें मुख्य रूप से इस बात का वर्णन होता है कि भगवान श्री कृष्ण इसमें गोपियों के साथ होली खेलते नजर आते हैं। धमार में दुगुन, चौगुन जैसी लयकारियों वाले गीत के शब्द अधिक नजर आते हैं। खास बात यह है कि होली का इस्तेमाल जब धमार में होता है, तब पखावज बजाया जाता है। गौरतलब है कि धमार में भाव की भूमिका भी अहम है, साथ ही यहां ध्रुपद, छोटे और बड़े ख्याल और ठुमरी में होली गीतों की खूबसूरती नजर आती है। वहीं कथक नृत्य की बात करें, तो होली, धमार और ठुमरी वाले कई गीत हैं। 

राग काफी में हैं होली के कई गीत 

अगर होली के गानों या गीतों की बात की जाए, तो होरियाँ ‘राग काफी’ में सबसे अधिक गाई जाती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि यह राग काफ़ी प्रेम और जुनून को दर्शाता है और इसे ठुमरी शैली में गाई जाने वाली कई हल्की रचनाओं के आधार के रूप में उपयोग किया जाता है। साथ ही होली भी कृष्ण और राधा के अनमोल प्रेम को दर्शाता है। साथ ही इसकी यह खूबी होती है कि इसे आमतौर पर इसे देर शाम प्रस्तुत किया जाता है और इसमें आरोही और अवरोही क्रम में सभी सात स्वरों का उपयोग किया जाता है।'होली खेलत नंद लाल' एक पारंपरिक ‘काफी’ होली गीत है, जो लोक कथाओं से कृष्ण की कहानियों का वर्णन करती हैं। वहीं इसके और विस्तार की बात करें, तो राग काफी पारंपरिक होली के कई अन्य रागों में भी उप-शास्त्रीय या अर्ध शास्त्रीय ( सेमी क्लासिकल) रचनाओं के रूप में मिश्र काफी, खमाज, शहाना कन्हारा, सारंग, पिलू और कई मिश्र रागों में गाई जाती हैं। गौरतलब है कि होरियाँ (होली के गीत) अधिकतर 14 ताल की ताल पर आधारित होती हैं, जिन्हें दीपचंडी कहा जाता है और इन्हें तीनताल (16 ताल), रूपक (7 ताल), एकताल (12 ताल) और झपताल (10 ताल) में भी गाया जाता है। वैसे से ज्यादातर होली के गाने कृष्ण और राधा पर आधारित हैं, लेकिन राग काफी में सीता और राम पर आधारित भी गीत हैं।  राम सिया फाग मचावत वाले बोल के गीत उनमें से एक हैं, साथ ही ठुमरी शैली में गाई जाने वाली कुछ पारंपरिक होरियाँ जैसे ''मोके दार देगी साड़ी रंग की गगरिया'' और ''अब कौन गुणन सो मनौ होरी आली, पिया तो मानत नहीं'' जैसे गीत भी लोकप्रिय रहे हैं। 

दरगाह पर गाए जाते हैं होली के गीत 

वाकई, संगीत किसी धर्म या समुदाय तक सिमटा हुआ नहीं है, ऐसा ही एक उदाहरण आपको अजमेर के दरगाह पर मिलेगा, जहां मोईनुद्दीन चिश्ची की दरगाह पर होली गायी जाती है। खासियत यह है कि इनके बोल होली को पूर्ण रूप से समर्पित है। ‘आज रंग है री मन रंग है, अपने महबूब के घर रंग है री‘ यहां गाये जाने वाली होली के गीतों के बोलों में से एक है। वहीं ख्वाजा मोइउद्दीन ने भी होली को विशेष महत्व दिया है। इसलिए भी यहां आज भी होली गीत गाये जाते हैं।

शास्त्रीय संगीत और होली 

आपको यह जान कर एक अलग ही अनुभूति होगी कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुछ रंग ऐसे भी हैं, जिनमें होली के गीत विशेष रूप से गाए जाते रहे हैं। गौर करें, तो राग बसंत, राग बहार और राग हिंडोल जैसे काफी राग है। साथ ही उप शास्त्रीय संगीत में चैती, दादरा और ठुमरी वाले बोल अधिक सुनाई देंगे। 

होली के लोकगीत के कुछ बोल 

1) आज छबीले मोहन नगार, बृज में खेलत होरी।

ग्वाल-बाल सब संग सखा, रंग गुलाल की होरी।।

2) फगवा ब्रज देखने को चलो रे, फगवे में मिलेंगे, कुंवर का।

3) छमछम नाचत आई बहार‘‘

4 ) आज खेलो शाम संग होरी, पिचकारी रंग भरी सोहत री

5) आज बिरज में होली रे रसिया, होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसियावहीं अवध में राम और सीता के

6) होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले रघुवीरा

7) होली आई रे कन्हाई, रंग डालो बजा दे जरा बांसुरी 

8) आज बिरज में होरी रे रसिया

9) मिथिला में राम खेलें होरी

 

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