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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

साहित्य रविवार में जानें: मुक्तिबोध का जीवन और रचनाएं

टीम Her Circle |  अप्रैल 07, 2024

हर किसी के जीवन में संघर्ष होता है और इस संघर्ष को लफ्जों में पिरोने की जिम्मेदारी को मुक्तिबोध ने बखूबी निभाया है। साहित्य की दुनिया में गजानन माधव मुक्तिबोध को प्रगतिशील कविता और लेखन का जरिया माना जाता था। यह भी जान लें कि मुक्तिबोध हिंदी साहित्य के न केवल कवि रहे हैं, बल्कि आलोचक कहानीकार और उपन्यासकार भी रहे हैं। गजानन मुक्तिबोध ने 18 से 19 साल की उम्र से ही कविता का लेखन शुरू किया। मुक्तिबोध की लिखी हुई कविताओं में शुरू से ही जीवन के संघर्ष को प्रेरणादायी तौर पर प्रस्तुत किया गया है। आइए जानते हैं विस्तार से।

मुक्तिबोध का जीवन 

यह जान लें कि हिंदी के कई साहित्यकार का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। ठीक इसी तरह मुक्तिबोध काफी अध्ययनशील रहे हैं, लेकिन उनके परिवार का आर्थिक संकट कभी-भी उनके लेखन में बाधा नहीं डाल पाया है। उन्होंने हमेशा से अपने लेखन में मानव जीवन को संकटों से बाहर आकर खुद के लिए कुछ कर पाने की ललक को दिखाया है। उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए मानव जीवन के फंसे हुए पैरों को बाहर लाने की कवायद की है। अपनी कविता लेखनी में मुक्तिबोध ने सामान्य बोलचाल की भाषा के साथ कई जगहों पर संस्कृत के शब्दों का भी इस्तेमाल किया। कई सारे विवरण के साथ उन्होंने हमेशा से यह कोशिश की है कि उनकी लिखावट हमेशा सरल और प्रभावमय वाली होनी चाहिए। उनका लिखने और मानव जीवन को समझने का तरीका ऐसा है कि कई सारे काव्यों के बीच मुक्तिबोध की काव्य शैली को आसानी से पहचाना जा सकता है। आप यह भी समझ सकती हैं कि गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता रचना के प्रतिनिधि कवि रहे हैं। उन्होंने अपनी कविता में कई सारे प्रयोग भी किए हैं, इसी वजह से उन्हें प्रयोगधर्मी कवि भी कहा जाता है। उन्होंने अपनी हर एक नई कविता को साहित्य में नई पहचान दी है। अपने पढ़ाई के दिनों के दौरान उन्होंने हमेशा अपना नाता नई चीजों और नई भाषाओं से जोड़ा। अपने अध्यापन के दिनों में उन्होंने हिंदी के साथ अंग्रेजी, फ्रेंच और रूसी उपन्यासों के साथ कई सारे दूसरे क्षेत्र के उपन्यास जैसे जासूसी उपन्यास, वैज्ञानिक उपन्यास के साथ देश और विदेश से जुड़े इतिहास से जुड़े उपन्यासों के साथ अपने साहित्य के अध्ययन को गहरा किया है। यही वजह रही है कि प्रगतिशील काव्यधारा हमेशा से मुक्तिबोध की पहचान का हिस्सा रही हैं। 

मुक्तिबोध और उनका साहित्य

मुक्तिबोध को सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ भारत में आधुनिक हिंदी कविता का अग्रणी माना जाता रहा है। खासतौर पर 1950 के दशक के दौरान नई आधुनिक कविताओं को लोगों तक पहुंचाने में मुक्तिबोध हमेशा तत्पर रहे हैं। इसी वजह से उन्हें भारतीय साहित्य में नई आलोचना के उदय में एक केंद्रीय व्यक्ति भी माना जाता रहा है। लेखन के साथ मुक्तिबोध कई लोकप्रिय हिंदी पत्रिकाओं के सहायक-संपादक भी रहे हैं। मुक्तिबोध की कई सारी कविताओं के बीच ‘ब्रह्मराक्षस’ को प्रयोगात्मक कविताओं में से सबसे प्रभावशाली कविता माना गया है। इस कविता में कल्पनाओं के आधार पर मानव जीवन का वर्णन किया गया है। कविता में व्याख्या की गई है कि कई लोग वास्तविकता से संपर्क खो देते हैं और अपनी भावनाओं में इतना खो जाता है कि वास्तविकता से पूरी तरह से संपर्क खो देते हैं और अंत में मौत को पाकर एक मृत पक्षी की तरह लुप्त हो जाते हैं। मुक्तिबोध अपने साहित्य जीवन के दौरान मार्क्सवाद से प्रभावित रहे हैं, इसी वजह से उनके लेखन में समकालीन समाज के प्रति हमेशा गहरा असंतोष दिखाई देता था। उन्होंने लेखन में अपना आधा समय गुजारने के बाद बाकी के समय हिंदी साहित्य में आधुनिकतावादी और रूपवादी प्रवृत्तियों के खिलाफ भी अपनी वैचारिक लड़ाई को जारी रखा था। देखा जाए, तो अपनी कई सारी रचनाओं के बीच उन्हें अपनी कविता ‘चांद का मुंह टेढ़ा’, ‘अंधेरे में’, ‘भूरी भूरी खास धूल’ के लिए सबसे अधिक लोकप्रियता मिली। खासतौर पर चांद का मुंह टेढ़ा पुस्तक के कई संस्करण आ चुके हैं। उनकी इस रचना को आधुनिक क्लासिक के रूप में मान्यता मिली। मुक्तिबोध के स्मरण में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद ने वार्षिक मुक्तिबोध पुरस्कार की स्थापना की गई। आइए पढ़ते हैं, गजानन मुक्तिबोध की रची गईं कविताओं की कुछ पंक्तियां इस प्रकार है।

चांद का मुंह टेढ़ा है

नगर के बीचो- बीच

आधी रात- अंधेरे की काली स्याह

शिलाओं से बनी हुई

भीतों और अहातों के , कांच-टुकड़े जमे हुए 

ऊंचे- ऊंचे कंधों पर 

चांदनी की फैली हुई संवलाई झालरें।

कारखाना- अहाते के उस पार

धूम्र मुख चिमनियों के ऊंचे-ऊंचे 

उद्धार- चिन्हाकार- मीनार

मीनारों के बीचो- बीच

चांद का है टेढ़ा मुंह

भयानक स्याह सन तिरपन का चांद वह

गगन में कर्फ्यू है 

धरती पर चुपचाप जहरीली छि: थू: है

पीपल के खाली पड़े घोंसलों में पक्षियों के, 

पैठे हैं, खाली हुई करतूस

गंजे-सिर चांद की संवलाई  किरणों के जासूस

साम-सूम नगर में धीरे-धीरे धूम-धाम

नगर के कोनों के तिकोनों में छिपे हैं।

चांद की कनखियों की कोण-गामी-किरणें 

पीली-पीली रोशनी की, बिछाती है,

अंधेरे में, पट्टियां।

देखती है नगर की जिंदगी का टूटा-फूटा

उदास प्रसार वह।

समीप विशालकार

अंधियाले लाल पर

सूनेपन की स्याही में डूबी हुई

चांदनी भी संवलाई हुई है।

भीमाकार पुलों के बहुत नीचे, भयभीत

मनुष्य- बस्ती के बियाबान तटों पर

बहते हुए पथरीले नालों की धारा में

धराशायी चांदनी के होंठ काले पड़ गए

हरिजन गलियों मं 

लटकी है पेड़ पर 

कुहासे के भूतों की सांवली चूनरी

चूनरी में अटकी है कंजी आंख गंजे-सिर

टेढ़े -मुंह चांद की।

बाहर का वक्त है

भुसभुसे उजाले का फुसफुसाता षडयंत्र

शहरों में चारों ओर

जमाना भी सख्त है।

अजी इस मोड़ पर 

बरगद की घनघोर शाखाओं की गठियल

अजगरी- मेहराब

मरे हुए जमानों की संगठित छायाओं में 

बसी हुई 

सड़ी-बुसी बास लिए-

फैली है गली के 

मुहाने में चुपचाप

लोगों के अरे! आने- जाने में चुपचाप

अजगरी कमानी से गिरती है टिप-टिप

फड़फड़ाते पक्षियों की बीट

मानों समय की बीट हो!

गगन में करफ्यू है,

वृक्षों में बैठे हुए पक्षियों पर करफ्यू है

घरती पर किंतु अजी ! जहरीली छि: थू: है। 

बरगद की डाल एक

मुहाने से आगे फैल

सड़क पर बाहरी

लटकती है इस तरह-

मानो की आदमी के जनम के पहले से 

पृथ्वी की छाती पर

जंगलीं मैमथ की सूंड सूंघ रही हो

हवा के लहरीले सिफरों को आज भी

घिरी हुई विपदा घेरे-सी

बरगद की घनी-घनी छाव में

फटी हुई चूड़ियों की सूनी- सूनी कलाई -सा

गरीबों के ठांव में 

चौराहे पर खड़े हुए

भैरों की सिंदूरी 

गेरूई मूरत के पथरीले व्यंग्य स्मित पर 

टेढ़े - मुंह चांद की ऐयारी रोशनी,

तिलिस्मी चांद की राज-भरी झाइयां!!

गजानन मुक्तिबोध की रचनाओं के लोकप्रिय वाक्य यहां पढ़ें

-दुनिया में नाम कमाने के लिए कभी कोई फूल नहीं खिलता है।

-हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई ,जानी-पहचानी योजना रहती है।

- अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे। तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब।

- सच्चा लेखक जितनी बड़ी जिम्मेदारी अपने सिर पर ले लेता है, स्वंय को उतना अधिक तुच्छ अनुभव करता है।

- पाप के समय भी मनुष्य का ध्यान इज्जत की तरफ रहता है।

- आज का प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति प्रेम का भूखा है।

-मुक्ति अकेले में अकेले की नहीं हो सकती। मुक्ति अकेले में अकेले को नहीं मिलती।

-अच्छाई का पेड़ छाया प्रदान नहीं कर सकता, आश्रय प्रदान नहीं कर सकता।

-जब तक मेरा दिया किसी और को न दोगे, तब तक तुम्हारी मुक्ति नहीं।

- झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है- अधिक महत्तवपूर्ण और प्राणावान।

- जल विप्लव है।

- अस्ल में साहित्य एक बहुत घोखे की चीज हो सकती है।

-आहातों का भी अपना एक अहंकार होता है।

- वेदना बुरी होती है। 

- अमिश्रित आदर्शवाद में मुझे आत्मा का गौरव दिखाई देता है।







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