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साहित्य श्रद्धांजलि: विनोद कुमार शुक्ल के लेखन की महिला पात्रों ने मौन में दर्शाया अभिमान

टीम Her Circle |  December 27, 2025

साहित्य की दुनिया में विनोद कुमार शुक्ल एक ऐसा अध्याय है, जिसे पढ़ना जीवन को नए नजरिए से देखना है। उन्होंने अपने लेखन के जरिए साधारण मानवीय संवेदनाओं को असाधारण महसूस कराया है। 23 दिसंबर 2025 को अपने निधन के साथ उन्होंने उस स्थान को सदैव के लिए रिक्त कर दिया है, जहां से मनुष्य का जीवन दैनिक संघर्ष के बीच संभावनाएं तलाश करता रहा है। खासतौर पर महिलाओं को उन्होंने कभी भी दया का पात्र नहीं बनाया, बल्कि एक शक्ति के तौर पर अभिव्यक्त किया है। आइए विस्तार से जानते हैं, विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं में महिलाओं की मौजूदगी कितनी प्रभावी रही हैं। 

 ‘दीवार में एक खिड़की रहती है’ में महिला का पात्र

हाल ही में विनोद कुमार शुक्ल की यह रचना काफी लोकप्रिय रही है। आप यह भी कह सकती हैं कि यह उनकी वायरल रचना है। यह एक खास उपन्यास है। इसमें महिला पात्र घरेलू जीवन, सीमाओं के अंदर की आजादी के बीच झूलते हुए दिखाई देता है। एक महिला की चुप्पी और उसका देखना और महसूस करना इस पूरे उपन्यास की महत्वता को दर्शाता है। इस उपन्यास की महिला पात्र कोई असाधारण या नाटकीय चरित्र नहीं है। वह एक सामान्य गृहस्थ स्त्री है, जो रोज़मर्रा के जीवन में अपनी जिम्मेदारियाँ निभाती है। उसका व्यक्तित्व सादगी, सहनशीलता और भावनात्मक गहराई से बना है। यह मौन उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी आत्मिक शक्ति का संकेत है। खिड़की’ यहाँ प्रतीक बन जाती है—जिसके सहारे वह बाहर की दुनिया को देखती और महसूस करती है। विनोद कुमार शुक्ल हमेशा से ही अपनी रचनाओं में स्त्री को उसी तरह पेश किया है, जिस तरह उसे होना चाहिए। न ही कभी महिला को दया का पात्र बनाया और न ही कभी उनके जीवन को नाटकीय दिखाया। न ही उसे किसी विद्रोही नायिका के तौर पर पेश किया।

‘नौकर की कमीज’ उपन्यास में महिला पात्र

विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास नौकर की कमीज में महिला पात्र गहराई से मौजूद है। यह उपन्यास छोटे कर्मचारी, सीमित आय और दबे हुए सपनों की कथा है, और इसी दुनिया में स्त्री पात्र पुरुष के जीवन की सहयात्री बनकर सामने आती है। वह नायक की जीवनसंगिनी है और उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है। उसकी भूमिका घर संभालने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह नायक के मानसिक और भावनात्मक जीवन को भी आकार देती है। यहां पर महिला एक पत्नी की भूमिका में है, जो कि सीमित साधनों पर घर चलाती है। बिना शिकायत उसका साथ भी निभाती है। लेखक यहां पर बताते हैं कि महिला मौन है, लेकिन कमजोर नहीं है। उसकी चुप्पी में उसकी शक्ति है। उसका मौन उपेक्षा नहीं, बल्कि परिस्थितियों की समझ से उपजा हुआ है। वह जानती है कि शब्दों से अधिक जरूरी व्यवहार है। नौकर की कमीज में महिला किरदार एक महिला के त्याग और कड़ी मेहनत का प्रतीक है। वह सलाह कम देती है, लेकिन उसका व्यवहार नायक को स्थिरता देता है। उसकी उपस्थिति नायक के जीवन को बिखरने से बचाती है।

विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं में महिलाएं

विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं में महिलाएं जीवन का स्वाभाविक हिस्सा हैं। उनकी कविताओं में एक स्त्री घर में, आंगन में, रास्ते पर, स्मृति और कल्पना में स्वाभाविक तौर से मौजूद रहती है। उनकी कविताओं में महिलाएं खिड़की, दरवाज़ा, रास्ता, रोशनी जैसे बिंब स्त्री की आंशिक स्वतंत्रता और चेतना के प्रतीक बनते हैं। वह बाहर नहीं जा पाती, लेकिन देखती है, सोचती है और महसूस करती है। एक तरह से देखा जाए, तो विनोद कुमार शुक्ल की कविताएं नारी-विमर्श से अलग हैं। उन्होंने एक महिला के संघर्ष को दिखाया है, लेकिन उसकी घोषणा नहीं की है। उन्होंने महिला की पीड़ा दिखाई है, उसका प्रचार नहीं किया है। 

विनोद कुमार शुक्ल की लोकप्रिय रचनाएं

‘सब कुछ होना बचेगा’, ‘वह आदमी चला गया नया घर बनाने’, ‘कविता से लंबी कविता’। इसके बाद कहानी संग्रह की बात करें, तो ‘पेड़ पर कमरा’, महाविद्यालय शामिल है। विनोद कुमार शुक्ल की लोकप्रिय रचनाएँ हिंदी साहित्य में अपनी सादगी, गहराई और अलग पहचान के कारण महत्वपूर्ण हैं। उनकी रचनाएँ पाठक को शोर से दूर, जीवन की सूक्ष्म सच्चाइयों से जोड़ती हैं।

विनोद कुमार शुक्ल की लिखी हुई लोकप्रिय पंक्तियां

दीवार में एक खिड़की रहती है, जहां से जिंदगी बाहर झांकती है।

खिलेगा तो देखेंगे, फूल भी अपनी गंध बताएंगे।


वह आदमी चला गया नया घर बनाने , लेकिन उसका घर उसकी यादों में रहा।

सब कुछ होना बचेगा, जो सच में हमारा है।


मौन में भी कुछ कहने की शक्ति होती है।

नौकर की कमीज में भी आदमी की दुनिया बसी रहती है।


विनोद कुमार शुक्ल की वायरल कविताएं

जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे 

मैं उनसे मिलने 

उनके पास चला जाऊंगा।

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हताशा में एक व्यक्ति बैठ गया,

व्यक्ति को मैं नहीं जानता था,

हताशा को जानता था, 

इसलिए मैं उसके पास गया।


दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है

दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है

कहकर मैं अपने घर से चला।

यहां पहुंचते तक

जगह-जगह मैंने यही कहा

और यहां कहता हूं

कि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है।

जहां पहुंचता हूं 

वहां से चला जाता हूं।


अपने हिस्से के लोग आकाश देखते हैं

अपने हिस्से के लोग आकाश देखते हैं

और पूरा आकाश देख लेते हैं,

सबके हिस्से का आकाश 

पूरा आकाश है।

अपने हिस्से का चंद्रमा देखते हैं,

और पूरा चंद्रमा देख लेते हैं।

सबके हिस्से का चंद्रमा वही पूरा चंद्रमा है।

अपने हिस्से की जैसी-तैसी सांस सब पाते हैं

वह जो घर के बगीचे में बैठा हुआ 

अखबार पढ़ रहा है

और वह भी जो बदबू और गंदगी के घेरे में जिंदा है।


ईश्वर अब अधिक है

ईश्वर अब अधिक है

सर्वत्र अधिक है

निराकार साकार अधिक 

हरेक आदमी के पास बहुत अधिक है

बहुत बंटने के बाद

बचा हुआ बहुत है

अलग अलग लोगों के पास 

इस अधिकता में 

मैं अपने खाली झोले को और 

खाली करने के लिए

भय से झटकारता हूं

जैसे कुछ निराकार झर जाता है।


कितना बहुत है

कितना बहुत है

परंतु अतिरिक्त एक भी नहीं

एक पेड़ में कितनी सारी पत्तियां 

अतिरिक्त एक पत्ती नहीं

एक कोंपल नहीं अतिरिक्त 

एक नक्षत्र अनगिनत होने के बाद। 

अतिरिक्त नहीं है गंगा अकेली एक होने के बाद

न उसका एक कलश गंगाजल,

बाढ़ से भरी एक ब्रह्मपुत्रा 

न उसका एक अंजुलि जल

और इतना सारा एक आकाश 

न उसकी एक छोटी अंतहीन झलक।

कितनी कमी है।

तुम ही नहीं हो केवल बंधु 

सब ही 

परंतु अतिरिक्त एक बंधु नहीं।



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