हिंदी दिवस के मौके पर हिंदी को करीब से जानने और समझने के लिए साहित्य का सफर करना बहुत जरूरी है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि हिंदी की लोकप्रियता में साहित्य और लेखन का बहुत बड़ा हाथ रहा है। हिंदी पढ़ने और लिखने वालों की गिनती कहीं न कहीं हिंदी में लिखी हुई कहानियां और कविताओं के जरिए आयी है। हर साल हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन न केवल हिंदी भाषा की महत्ता को दर्शाने का अवसर होता है, बल्कि यह भी सोचने का समय होता है कि हिंदी साहित्य की यात्रा कैसे शुरू हुई है। आइए विस्तार से जानते हैं कि हिंदी भाषा और साहित्य के कल, आज और कल को।
साहित्य में हिंदी भाषा का कल

उल्लेखनीय है कि साहित्य की दुनिया में हिंदी भाषा का इतिहास हजारों साल पुराना है। हिंदी की जड़ संस्कृत से होकर आती है, जो कि आधुनिक हिंदी का विकास होने तक अवधी, ब्रज,खड़ी बोली और आदि बोलियों से होता हुआ गुजर रहा । हिंदी के प्रारंभिक काल के बारे में जाना जाए, तो भक्तिकाल .यानी कि 1350 -1700 ई. हिंदी साहित्य का पहला प्रमुख युग माना जाता है। इस काल में कबीर, तुलसीदास, सूरदास, मीरा बाई जैसे कई सारे महान संत कवियों ने अपनी रचनाओं से धार्मिक और सामाजिक चेतना को उजागर किया है। इस फेहरिस्त में रामचरितमानस और सूरसागर जैसे ग्रंथ भी शामिल है। इसके बाद 1700- 1900 ई. में हिंदी कविता को श्रृंगार रस में शामिल किया गया। केशवदास, बिहारी, घनानंद जैसे कवियों ने भाषा को कलात्मकता और गहराई दी।
आधुनिक हिंदी साहित्य की शुरुआत का सफर

हिंदी भाषा में हिंदी साहित्य का जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र को माना गया है। इसके बाद प्रेमचंद का नाम आता है। प्रेमचंद ने हिंदी कहानी और उपन्यास को भाषा और विचारों से जोड़ा। 19 वीं शताब्दी के मध्य का समय हिंदी साहित्य के लिए खास रहा है। जैसे कि हम आपको पहले बता चुके हैं कि भारतेन्दु युग ने हिंदी के जरिए कई सारे साहित्यिक आंदोलन किए और इसके साथ ही हिंदी भाषा के जरिए समाज में मानवीय भावनाओं को पेश करने का एक शुरू किया , जो कि आज भी कायम है। भारतेंदु युग के बाद द्विवेदी युग, छायावाद युग और प्रगतिवाद कविताएं की गईं। साहित्य में आजादी के बाद जटिलताओं, मानव जीवन की उलझनों को हिंदी साहित्य के जरिए प्राथमिकता दी। साहित्य में हिंदी साहित्य का अतीत गौरवशाली,विचारपूर्ण और संवेदनाओं से समृद्ध रहा है।
हिंदी साहित्य का आज

हिंदी साहित्य का आज एक तरह से बदलाव और चुनौतियों को लेकर आया। आज का साहित्य डिजिटल हो रहा है। इसलिए कई सारे ब्लाॅग्स, ई-किताबें और ऑनलाइन पोर्टल पर लेखन के जरिए हुआ है। हिंदी के नए माध्यम की बात की जाए, तो यू ट्यूब कविताएं, पॉडकास्ट्स और इंस्टाग्राम से जुड़ गया है। इसी दौर के दौरान दलित साहित्य, नारीवादी लेखन हिंदी साहित्य की मजबूती को बढ़ाता चला आ रहा है। वक्त के साथ इसमें भी बदलाव हुआ और अंग्रेजी की किताबों को हिंदी में अनुवाद करके पाठकों तक पहुंचाने का सराहनीय कार्य किया गया। इसके साथ हिंदी साहित्य का अंग्रेजी, फ्रेंच और स्पेनिश में अनुवाद किया गया।
साहित्य की दुनिया में हिंदी साहित्य का भविष्य

यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि हिंदी साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध और गौरवशाली रहा है। यह केवल शब्दों पर या फिर कागज के जरिए लेखनी बनकर हमारे बीच मौजूद नहीं है, बल्कि भारत की संस्कृति, परंपरा, सामाजिक चेतना और आत्मा को भी अपने शब्दों की माला में पिरोकर रखा हुआ है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि हिंदी साहित्य में हिंदी में कई सारे किताबें प्रकाशित हो रही हैं। ब्लाॅग्स, वेबसाइट्स, ई किताबें और सोशल मीडिया पर हिंदी लेखन का समुदाय बना है और लोग उससे निरंतर जुड़ भी रहे हैं। कई सारे भारतीय फेस्टिवल्स और कार्यक्रम में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल जैसे आयोजनों में हिंदी साहित्य को खास स्थान मिल रहा है। हिंदी में कई सारी नई विधाएं भी मौजूद हैं, जैसे कि स्लैम पोएट्री, इंस्टाग्राम कविताओं के जरिए हिंदी ने अपना वर्चस्व नई पीढ़ी में भी बनाए रखा है। हालांकि भविष्य में हिंदी के सामने कई सारी चुनौतियां भी मौजूद हैं। अभी-भी कई सारे शहरी क्षेत्रों और लोगों के बीच हिंदी को स्टेटस सिंबल के तौर पर देखा जा रहा है। हिंदी की शुद्ध भाषा या आप यह समझ लें कि शुद्ध हिंदी खोती हुई दिख रही है। हिंदी अब कहीं न कहीं हिंग्लिश बन चुकी है। डिजिटल युग में हिंदी देखी जा रही है, लेकिन पढ़ी नहीं जा रही है। गहरी और गंभीर साहित्यिक रचनाएं पढ़ने की आदत कम हो रही है। नई पीढ़ी हिंदी भाषा में करियर बनाने का विचार छोड़ते हुए दिख रही है। इन दिनों लोग सुनकर पॉडकास्ट के जरिए साहित्य का आनंद उठा रहे हैं। ऐसे में कहीं न कहीं कई सारे प्लेटफार्म पर हिंदी की मांग भी बढ़ी है। दूसरी तरफ हिंदी का वैश्वीकरण हुआ है। जिसके जरिए यूएसए, यूके, कनाडा और खाड़ी देशों में हिंदी पढ़ी और बोली जा रही है। नई रचनाकारों का साहित्य में आगमन हो रहा है। अनु सिंह चौधरी, दिव्य प्रकाश दुबे, नीलोत्पल मृणाल जैसे युवा लेखक हिंदी में अपनी लेखनी को आगे बढ़ा रहे हैं।
हिंदी की लोकप्रिय किताबें और महिला लेखक

साहित्य की दुनिया में हिंदी की लोकप्रिय किताबें और महिला लेखकों पर ध्यान दिया जाए, तो कृष्णा सोबती की ‘जिंदगीनामा’, ‘डार से बिछुड़ी’, ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान’, मन्नू भंडारी की लिखी हुई किताब ‘एक इंच मुस्कान’, ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ का नाम शामिल है। इसके बाद लेखिका शिवानी के लेखन की बात की जाए, तो ‘कृष्णकली’, ‘चौदह फेरे’, ‘वीरानी’ इन किताबों के जरिए नारी भावनाओं का गहन चित्रण करती है। लेखिका महादेवी वर्मा की लिखी हुई किताब ‘नीरजा’, ‘यामा’, ‘स्मृति की रेखाएं’ महिला जीवन की करुणा को दिखाती है। इसलिए महादेवी वर्मा को हिंदी कविता की मीरा कहा जाता है। उन्होंने अपनी लेखनी में महिला पीड़ा और समाज के दोगलेपन को उजागर किया है। लेखिका प्रभा खेतान की लिखी हुई किताब ‘अन्या से अनन्या’ ,’ पीली आंधी’ महिला के मन के हालातों को बखूबी बताती है। प्रभा खेतान ने हमेशा से हिंदी भाषा के जरिए महिलाओं पर बेबाक लेखन किया है। नासिरा शर्मा ने महिलाओं के अधिकारों, राजनीति और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर हिंदी में अपनी सशक्त लेखनी को दिखाया है। आप इसकी झलक उनकी किताब ‘पारिजात’, ‘कागज की नाव’ और ‘पत्थर गली’ में देख सकती हैं। इन सभी महिला लेखकों की लेखनी पर गौर किया जाए, तो आप समझ पाएंगे कि हिंदी साहित्य की दुनिया में महिला लेखकों ने न केवल महिला जीवन की पीड़ा और संघर्ष को दिखाया है , बल्कि समाज में हिंदी भाषा को मानवीय जीवन से संवाद करने का रास्ता भी बनाया है।
कुल मिलाकर देखा जाए, तो हिंदी एक ऐसी नदी है, जो लगातार अपना प्रवाह बनाए रखी हुई है। कल, आज और कल के समय काल में हिंदी ने अपनी गरिमा को सदैव बना रखा है।