हाथी के नजरिए से दुनिया देखी जाए, तो हमें कई बड़ी चीजें छोटी दिखाई देंगी। ठीक इसी तरह लेखक विनोद कुमार शुक्ल ने हाथी पर बैठकर दुनिया को देखने का अलग नजरिया पेश किया है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि विनोद कुमार शुक्ल ने हिंदी साहित्य में अपनी लेखनी में सामान्य जीवन को सरलता से पेश करते हुए जीवन को देखने का नया नजरिया दिया है। यहां पढ़ें उनकी चर्चित पुस्तक 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' की समीक्षा।
दीवार में एक खिड़की रहती है शीर्षक के साथ उन्होंने जीवन के सफर को दार्शनिक दिखाया है। उन्होंने इस उपन्यास में दीवार को समाज की सीमाएं, मानसिक सोच और जीवन की कठिनाइयों से जोड़ा है। इसके साथ खिड़की उन सभी संभावनाओं का प्रतीक है, जो दीवारों के अंदर खुली हुई प्रतीत होती है, जैसे कि आजादी, कल्पना और जीवन की सादगी। दीवार में एक खिड़की रहती है में एक प्रेम कहानी है जो कि सादगी और संकोच में लिपटी हुई है।
एक शहर है जो कि कभी बंद होता है और कभी खुलता है इसके साथ कई सारे मानवीय जीवन है, जो कि वर्तमान और भविष्य के सपनों और यर्थाथ को दिखाता है। विनोद कुमार शुक्ल ने छोटे-छोटे वाक्यों के साथ समाज और मानवीय सोच को जोड़ता है। यह उपन्यास खासतौर पर कहानी के रूप में कविता जैसी प्रतीत होती है। यह उपन्यास आपको हाथी की चाल के साथ बांधता है और ऊंचाई से एक ऐसी दुनिया दिखाता है । इसी वजह से यह उपन्यास आपको अपने साथ बेजोड़ तरीके से पकड़ कर रखता है। इस कहानी का मुख्य पात्र शिक्षक गहरी सोच वाला व्यक्ति है।
समाज और प्रेम के बीच कैसे उसका जीवन मन की यात्रा पर का विवरण करता है। एक तरह से यह मन के भीतर की यात्रा करता है, जहां पर आत्मनिरीक्षण के साथ कल्पना की भी दुनिया है। हाथी की धीमी चाल की तरह चलने वाली यह कहानी आपको खुद को महसूस करने और खुद से जोड़े रखने की गांठ बांधती है। बिना किसी नाटकीय मोड़ के यह कहानी आपके दिल को स्पर्श करती है और आपके दिल और दिमाग में हाथी जैसी विशाल दुनिया बनाती है। जो पाठक पढ़ने के दौरान ठहराव पसंद करते हैं, उन्हें यह उपन्यास जरूर पसंद आएगा।