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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

वर्ष नया, हर्ष नया, जीवन उत्कर्ष नया

रजनी गुप्ता |  जनवरी 01, 2025

नया वर्ष अपने साथ नए सपने, नई ऊर्जा, नया उत्साह और नई आशाएं लेकर आता है. आइए इस नए साल की शुरुआत में आज हम पढ़ते हैं, हिंदी के कुछ मशहूर साहित्यकारों की कविताएं।  

साल मुबारक! - अमृता प्रीतम

जैसे सोच की कंघी में से

एक दंदा टूट गया

जैसे समझ के कुर्ते का

एक चीथड़ा उड़ गया

जैसे आस्था की आँखों में

एक तिनका चुभ गया

नींद ने जैसे अपने हाथों में

सपने का जलता कोयला पकड़ लिया

नया साल कुझ ऐसे आया

जैसे दिल के फ़िक़रे से

एक अक्षर बुझ गया

जैसे विश्वास के काग़ज़ पर

सियाही गिर गयी

जैसे समय के होंटो से

एक गहरी साँस निकल गयी

और आदमज़ात की आँखों में

जैसे एक आँसू भर आया

नया साल कुछ ऐसे आया

जैसे इश्क़ की ज़बान पर

एक छाला उठ आया

सभ्यता की बाँहों में से

एक चूड़ी टूट गयी

इतिहास की अंगूठी में से

एक नीलम गिर गया

और जैसे धरती ने आसमान का

एक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा

नया साल कुछ ऐसे आया

नूतन वर्षाभिनंदन -फणीश्वरनाथ रेणु

नूतन का अभिनंदन हो

प्रेम-पुलकमय जन-जन हो!

नव-स्फूर्ति भर दे नव-चेतन

टूट पड़ें जड़ता के बंधन;

शुद्ध, स्वतंत्र वायुमंडल में

निर्मल तन, निर्भय मन हो!

प्रेम-पुलकमय जन-जन हो,

नूतन का अभिनंदन हो!

प्रति अंतर हो पुलकित-हुलसित

प्रेम-दिए जल उठें सुवासित

जीवन का क्षण-क्षण हो ज्योतित,

शिवता का आराधन हो!

प्रेम-पुलकमय प्रति जन हो,

नूतन का अभिनंदन हो!

गए साल की - केदारनाथ अग्रवाल

गए साल की

ठिठकी ठिठकी ठिठुरन

नए साल के

नए सूर्य ने तोड़ी।

देश-काल पर,

धूप-चढ़ गई,

हवा गरम हो फैली,

पौरुष के पेड़ों के पत्ते

चेतन चमके।

दर्पण-देही

दसों दिशाएँ

रंग-रूप की

दुनिया बिम्बित करतीं,

मानव-मन में

ज्योति-तरंगे उठतीं।

नववर्ष - सोहनलाल द्विवेदी

स्वागत! जीवन के नवल वर्ष

आओ, नूतन-निर्माण लिये,

इस महा जागरण के युग में

जाग्रत जीवन अभिमान लिये;

दीनों दुखियों का त्राण लिये

मानवता का कल्याण लिये,

स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष!

तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।

संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति

की ज्वालाओं के गान लिये,

मेरे भारत के लिये नई

प्रेरणा नया उत्थान लिये;

मुर्दा शरीर में नये प्राण

प्राणों में नव अरमान लिये,

स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!

तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!

युग-युग तक पिसते आये

कृषकों को जीवन-दान लिये,

कंकाल-मात्र रह गये शेष

मजदूरों का नव त्राण लिये;

श्रमिकों का नव संगठन लिये,

पददलितों का उत्थान लिये;

स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!

तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!

सत्ताधारी साम्राज्यवाद के

मद का चिर-अवसान लिये,

दुर्बल को अभयदान,

भूखे को रोटी का सामान लिये;

जीवन में नूतन क्रान्ति

क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये,

स्वागत! जीवन के नवल वर्ष

आओ, तुम स्वर्ण विहान लिये!

नए साल की शुभकामनाएं - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

नए साल की शुभकामनाएँ!

खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को

कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को

नए साल की शुभकामनाएं!

जाँते के गीतों को बैलों की चाल को

करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को

नए साल की शुभकामनाएँ!

इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को

चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को

नए साल की शुभकामनाएँ!

वीराने जंगल को तारों को रात को

ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को

नए साल की शुभकामनाएँ!

इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को

सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को

नए साल की शुभकामनाएँ!

कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को

हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को

नए साल की शुभकामनाएँ!

उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे

उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे

नए साल की शुभकामनाएँ!

नए वर्ष की शुभ कामनाएँ -हरिवंशराय बच्चन

(वृद्धों को)

रह स्वस्थ आप सौ शरदों को जीते जाएँ,

आशीष और उत्साह आपसे हम पाएँ।

(प्रौढ़ों को)

यह निर्मल जल की, कमल, किरन की रुत है।

जो भोग सके, इसमें आनन्द बहुत है।

(युवकों को)

यह शीत, प्रीति का वक्त, मुबारक तुमको,

हो गर्म नसों में रक्त मुबारक तुमको।

(नवयुवकों को)

तुमने जीवन के जो सुख स्वप्न बनाए,

इस वरद शरद में वे सब सच हो जाएँ।

(बालकों को)

यह स्वस्थ शरद ऋतु है, आनंद मनाओ।

है उम्र तुम्हारी, खेलो, कूदो, खाओ।

नवल हर्षमय नवल वर्ष यह - सुमित्रानंदन पंत

नवल हर्षमय नवल वर्ष यह,

कल की चिन्ता भूलो क्षण भर;

लाला के रँग की हाला भर

प्याला मदिर धरो अधरों पर!

फेन-वलय मृदु बाँह पुलकमय

स्वप्न पाश सी रहे कंठ में,

निष्ठुर गगन हमें जितने क्षण

प्रेयसि, जीवित धरे दया कर!

मुबारक हो नया साल - नागार्जुन

फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल

खुसुर-पुसुर करते हैं, ख़ुश हैं बनिया-बकाल

छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल

अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द!

हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल

अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल!

पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल

थामेंगे डालरी कमंद!

बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल

पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल

मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल

अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकंद !

 

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