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Happy Independence Day 2024 : 5 भारतीय महिला साहित्यकार जिनकी रचनाओं में दिखता है 'आजादी' का जश्न

शिखा शर्मा |  अगस्त 15, 2024

तू अपना बदन भी उतार दे,

उधर मूढ़े पर रख दे,

कोई खास बात नहीं है 

बस अपने देश का रिवाज है

आप भूल गए होंगे मगर, अमृता प्रीतम की लिखीं ये पंक्तियां आज भी आपके दिल को छू लेंगी। भूलने को तो आप कई ऐसे साहित्यकारों की रचनाएं भूल गए होंगे, लेकिन यहां हम आपको वो सबकुछ याद दिलाने वाले हैं। यहां हम उन महिलाओं की बात करेंगे, जिनकी लिखे हर शब्दों में आपको आजादी का दौर याद आ जाएगा। तो आइए चलिए हमारे साथ कुछ सदियां पीछे और जानिए भारत की कुछ सबसे उम्रदराज महिला लेखकों को।

कृष्णा सोबती

साल 2019 में जिंदगी से अलविदा कहने वालीं कृष्णा सोबती ने 1980 में जिंदगीनामा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता। जिंदगीनामा: जिन्दा रख 1900 के दशक की शुरुआत में पंजाब के एक गांव के ग्रामीण जीवन का एक लेखा-जोखा है। उन्होंने दादरी में दंगों के बाद सरकारी निष्क्रियता, भाषण की स्वतंत्रता के बारे में भी खुलकर लिखा है। कृष्णा सोबती को 2010 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण ऑफर किया था जिसे उन्होंने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि, "एक लेखक के रूप में मुझे ऐसे स्टेटस से दूरी बनानी होगी। मुझे लगता है कि मैंने जो काम किया है उसका अवॉर्ड पहले ही मिल गया है।

“एक बात याद रहे कि अपने से भी आजादी चाहिए होती है । देती हो कभी अपने को ? तुम्हारी मनमानी की बात नहीं कर रही, कुछ मनचाहा भी कर सकी हो कि नहीं ?”

― कृष्णा सोबती

कामिनी रॉय

कामिनी रॉय ब्रिटिश भारत में ऑनर्स ग्रेजुएट प्राप्त करने वाली भारत की पहली महिला थीं। उनके पिता भी राइटर थे और उन्होंने अपने पिता से ही लिखने का हुनर सीखा था। इन्होने बहुत ही कम उम्र में अपने लेखन से प्यार कर लिया था। वे महज 21 साल की थीं जब उन्होंने ‘अलो ओ छाया’ नाम की बुक लिखी। उन्होंने बेथ्यून स्कूल, अबला बोस के एक साथी छात्र से फेमिनिज्म का मतलब सीखा। 1921 में, वह महिलाओं के मताधिकार के लिए लड़ने के लिए खड़ी हुईं और उन्होंने बंगिया नारी समाज की कुमुदिनी मित्रा और मृणालिनी सेन के साथ एक संगठन की शुरुआत की।

"पुरुषों की शासन करने की इच्छा प्राथमिक है और महिलाओं के ज्ञानोदय के लिए बाधा है। वे महिलाओं की मुक्ति के बारे में बेहद संदिग्ध हैं। क्यों? वही पुराना डर ​​- 'ऐसा न हो कि वे हमारे जैसी हो जाएं'।" — कामिनी रॉय

अमृता प्रीतम

भारत की गलियों में भटकती हवा,

चूल्हे की बुझती आग को कुरेदती,

उधार लिए अन्न का एक ग्रास तोड़ती,

और घुटनों पे हाथ रखके फिर उठती है..

जी हां, अमृता प्रीतम के लिखे ये शब्द आज भी कितने ताजा फीलिंग देते हैं और दिल को छूते हैं। वह पंजाब की पहली महिला कवयित्री थीं। 1947 में, जब भारत का विभाजन हुआ, तो वह लाहौर से भारत आ गईं। उनकी सबसे अधिक याद की जाने वाली कविता ‘आजक आखन वारिस शाह नु’ है जिसे दुनिया भर में पढ़ा गया है। यह भारत के विभाजन के दौरान शहीद हुए लोगों के प्रति उनकी पीड़ा के लिए एक श्रद्धांजलि थी।

महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा के बिना हिंदी लिट्रेचर के बारे में बात करना सही नहीं है। उन्होंने महिलाओं के लिए सामाजिक कल्याण और उनके विकास के बारे में बात की। इसके अलावा उन्होंने अपनी जिंदगी के अनुभव, अपने आसपास के बेजान जानवरों की तकलीफों और उनकी जिंदगी के बारे में भी बहुत कुछ लिखा,  जिसे पूरी दुनिया आज भी याद रखती है।

वे मुस्काते फूल, नहीं

जिनको आता है मुर्झाना,

वे तारों के दीप, नहीं

जिनको भाता है बुझ जाना

वे नीलम के मेघ, नहीं

जिनको है घुल जाने की चाह

वह अनन्त रितुराज,नहीं

जिसने देखी जाने की राह|

वे सूने से नयन,नहीं

जिनमें बनते आँसू मोती,

वह प्राणों की सेज,नही

जिसमें बेसुध पीड़ा सोती;

ऐसा तेरा लोक, वेदना

नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,

जलना जाना नहीं, नहीं

जिसने जाना मिटने का स्वाद !

— महादेवी वर्मा

सावित्रीबाई फुले

भारतीय नारीवाद की जननी मानी जाने वाली सावित्रीबाई और उनके पति ज्योति राव फुले ने भारत भर की महिलाओं के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। कट्टरपंथी नारीवाद और सभी महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार के विषयों पर इन्होंने बहुत कुछ लिखा। वह भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं। उनकी विरासत आज हर उस महिला का हिस्सा है जो पढ़ाई कर सकती है और सम्मान का जीवन जी सकती है।

एक सशक्त शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है, इसलिए उनको भी शिक्षा का अधिकार होना चाहिए। — सावित्रीबाई फुले

Image Credit :

Ministry of culture/ twitter handle

Pratham Kailasiya/Wikimedia commons

Thefamouspeople.com

Wikipedia

 

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