आत्मकथा में न केवल किसी के जीवन की कहानी होती है, बल्कि उसके जीवन के उतार-चढ़ाव, हार और जीत के साथ निजी अनुभव की ऐसी परतें भी होती हैं, जो कि पाठकों के जीवन के तार को अवश्य खोल देती है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका हमेशा समाज की सोच के आधार पर परिभाषित की जाती रही है। महिला होना अपने आप में संघर्ष की जटिल कहानी को बयान करता है और इन सबके बीच आत्मकथा लेखन महिलाओं के जीवन को नए और प्रेरणादायक दृष्टिकोण से दिखाता आ रहा है। आज हम उसी पर बात करेंगे कि ऐसी कौन सी आत्मकथाएं हैं, जहां महिलाएं जीवित होते हुए और आत्मविश्वास के साथ समाज की रुढ़िवादी सोच को तोड़ते हुए नजर आयी हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
कमला दास की ‘मेरी कहानी’ आत्मकथा की समीक्षा

अंग्रेजी साहित्य में कमला दास को कमला सुरय्या के नाम से जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि कमला दास को मलयालम और अंग्रेजी की प्रख्यात लेखिका थीं। अपनी आत्मकथा मेरी कहानी में उन्होंने अपने जीवन की सच्चाइयों को बेबाकी के साथ पेश किया है। उनकी यह कथा 1976 में प्रकाशित हुई और काफी लोकप्रिय हुई। कमला दास की मेरी कहानी एक महिला की यौनिकता, मानसिक पीड़ा और पारिवारिक संबंधों को बताती है। अपनी इस आत्मकथा में उन्होंने बचपन से लेकर विवाह, वैवाहिक जीवन, प्रेम, लेखन और आत्मसंघर्ष को छूती है। साथ ही एक महिला के तौर में एक प्रेमी के रूप में और एक मां के साथ एक लेखिका और एक व्यक्ति के रूप में दिखाती है। इस आत्मकथा में मुख्य तौर से वैवाहिक जीवन में उत्पीड़न, विवाहेतर संबंध और भावनात्मक लगाव, लेखन के प्रति उनका प्रेम और आत्मबोध के साथ समाज की नैतिकता के प्रति विद्रोह को दिखाती है। कमला दास ने अपनी इस आत्मकथा की शैली को सहज और भाव से परिपूर्ण रखा है। उन्होंने अपनी आत्मकथा में भाषा को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है। जाहिर-सी बात है कि इस तरह यह आत्मकथा लिखी गई है कि उनके शब्द सीधे दिल और दिमाग में घर कर जाते हैं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अच्छी लड़की बनूंगी। मुझे वह झूठ पसंद नहीं थे, जो औरतें अपने अस्तित्व को बचाने के लिए गढ़ लेती हैं। उनकी लिखी हुई यह आत्मकथा एक तरह से एक महिला की इच्छाओं, संबंधों और गलतियों को स्वीकार करती हुई दिखाई देती है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो यह आत्मकथा सामाजिक नैतिकता को सीधे तौर पर चुनौती देती हुई दिखाई देती है।
‘अच्छी बेटियों की बुरी कहानिया’ -संपादन मनीषा कुलश्रेष्ठ

मनीषा कुलश्रेष्ठ के संपादन में प्रकाशित हुई अच्छी बेटियों की बुरी कहानियां भारतीय समाज में अच्छी लड़की होने की पारंपरिक धारणा को चुनौती देता है। अच्छी बेटियां समाज की ऐसी छवि दिखाती है, जिसमें महिलाएं आज्ञाकारी, चुप, त्यागी और नियंत्रण में रहने वाली होती हैं। लेकिन जब यह लड़कियां अपने अनुभव, दुख, प्रतिरोध और असहमति को आवाज देती है, तो उन्हें समाज बुरी कहानियां मानता है। उल्लेखनीय है कि यह किसी एक महिला की आत्मकथा नहीं है, बल्कि कई लेखिकाओं की आत्मकथा बयान करती है। यह कई सारी महिलाओं के जीवन का अनुभव है। इस आत्मकथा में 25 से अधिक महिला लेखिकाओं ने अपने जीवन को समाहित किया है। चुनिंदा लेखिकाओं की जिक्र की जाए, तो इस किताब में मनीषा कुलश्रेष्ठ, गीताश्री, नीलिमा चौहान, सुजाता और अर्चना वर्मा जैसी कई लोकप्रिय लेखिकाओं का जीवन आत्मकथाओं के तौर पर लिखा गया है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो हर लेखिका ने अपने जीवन से जुड़ी किसी "बुरी" कही जाने वाली घटना, सोच या अनुभव को साझा किया है, जो उन्हें "अच्छी लड़की" की परिभाषा से बाहर ले गया। लेखिकाओं ने इसमें बताया है कि कैसे उन्होंने इस देह के सच को महसूस किया है और उससे डरने की बजाय उसे स्वीकार किया है। कई कहानियों में घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और भावनाओं के शोषण पर आधारित है। कुछ कहानियों में मां और बेटी के रिश्ते की जटिलताओं को दिखाती है, जहां मां सामाजिक मूल्यों को ढोती है, और बेटी उस पर सवाल उठाती है। कई लेखिकाओं ने प्रेम संबंधों, विवाह में टकराव, तलाक और अकेलेपन को लेकर अपना दर्द लिखा है। लेखन की बात की जाए, तो कई जगह सीधी बोली के साथ लिखा गया है, दूसरी तरफ कई जगहों पर तीव्र और आक्रोश से भरा हुआ लेखन किया गया है। इस किताब का प्रभाव समाज पर अधिक पड़ा है। अच्छी बेटियों की बुरी कहानियां महिलाओं के अनकही बातों को स्वर देती है। यह आत्मकथा यह बताती है कि समाज जिसे बुरा कहता है, वह अक्सर एक महिला की अपनी आत्मनिर्भर आवाज होती है।
‘जिन्नाती दुनिया’ नासिरा शर्मा की आत्मकथा की समीक्षा
लोकप्रिय लेखिका नासिरा शर्मा की यह आत्मकथात्मक रचना उनके निजी जीवन के अनुभवों को दिखाती है, यह एक सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक सोच का एक तरह से दस्तावेज भी प्रस्तुत करती है। यह आत्मकथा एक तरह से पितृसत्ता पर तीखा वार करती है। उल्लेखनीय है कि जिन्नाती दुनिया एक ऐसी दुनिया है जहां महिलाओं की इच्छाएं, आजादी और सोच को भूत, जिन्न या फिर गुमराही कह कर अक्सर नकार दिया जाता है। इस आत्मकथा का सबसे लोकप्रिय पहलू यह रहा है कि लेखिका ने यह दिखाया है कि कैसे मुस्लिम समाज में महिलाओं की आवाज को खामोशी और उनके शरीर को पर्दा और अंत में उनकी इच्छाओं को हराम बना दिया जाता है। यह किताब एक तरह से एक धार्मिक महिला का अपने समाज से सवाल करने का साहस दिखाती है। नासिरा शर्मा ने बताया कि कैसे उन्हें एक शिक्षित, आत्मनिर्भर और साहित्यिक व्यक्तित्व बनने के सफर में सामाजिक सोच की आक्रामकता से गुजरना पड़ा था। कुल मिलाकर देखा जाए, तो जिन्नाती दुनिया नासिरा शर्मा की आत्मकथा होकर भी एक सामूहिक महिला का अनुभव बन जाती है। यह आत्मकथा सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उन तमाम महिलाओं की आवाज है, जो कभी परिवार तो कभी समाज के नाम पर चुप रहने को मजबूर हैं।
‘शिवानी की आत्मकथा’ - गौरा पंत शिवानी

शिवानी हिंदी साहित्य की ऐसी लेखिका हैं, जिन्होंने स्त्री चेतना को अपनी लेखनी के जरिए उजागर किया है। उनकी आत्मकथा उनके व्यक्तित्व, पारिवारिक परिवेश, संस्कृति दृष्टि और लेखकीय जीवन की सफर कराती है। उन्होंने अपनी इस आत्मकथा में अपने जीवन के विविध अनुभवों, विदेशों की यात्राओं, महिला संघर्षों और अपने लेखन के शुरुआती दौर को पेश किया है। देखा जाए, तो शिवानी की आत्मकथा उनके जीवन के प्रभावशाली प्रसंगों, स्थान विशेष और भावनात्मक अनुभवों को बताती है। शिवानी ने अपनी आत्मकथा में स्त्री जीवन के संघर्ष, उसकी अंतर्दृष्टि और त्याग को अत्यंत भावनात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। वह केवल अपने अनुभव नहीं सुनातीं, बल्कि हर भारतीय स्त्री की कहानियों की प्रतिनिधि बन जाती हैं।
बिनोदिनी देवी- ‘जिंदगी जैसी मैंने जीयी’ की समीक्षा

बिनोदिनी देवी मणिपुर की पहली आधुनिक महिला लेखिका, नाटककार हैं। उनकी लिखी हुई यब आत्मकथा न केवल एक महिला के जीवन का हिसाब है, बल्कि यह भारत के इतिहास, सामाजिक परिवर्तन और संस्कृति को भी बारीकी से दिखाती है। जिंदगी जैसी मैंने जीयी" हमें यह जानने का अवसर देती है कि एक स्त्री, जो शाही परिवार में जन्मी, फिर भी कैसे अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए संघर्ष करती रही।यह आत्मकथा उस मणिपुर की कहानी है, जो स्वतंत्र भारत के साथ विलय के दौर में राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा था।