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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

दिवाली की रौशनी नज़्मों में भी चमकती है और हमेशा चमकती रहेगी शब्द बनकर

शिखा शर्मा |  नवंबर 03, 2024

दिवाली की धूम और रौशनी का जादू चारों तरफ है। बाजार में दीए, रंगोली और पटाखों की बिक्री से लेकर घर की गैस पर लड्डू बनाने की तैयारी और नए कपड़ों की खरीदारी बताती है कि दिवाली की खुशी जिंदगी के हर कोने को महका रही है। ऐसे में सिर्फ चीजों में ही नहीं, बल्कि दिवाली की जगमगाहट आपको बड़े-बड़े शायरों के शब्दों में भी दिखेगी। यहां पढ़िए ‘दिवाली’ पर लिखी कुछ बेहतरीन रचनाएं-

मसूदा हयात

आई दिवाली आई दिवाली गीत ख़ुशी के गाओ

अँधियारे को दूर करो तुम घर घर दीप जलाओ

सीता राम की राहों को अब फूलों से महकाओ

चौदह बरस में लौटे घर को लछमन सीता राम

आज हर इक नर-नारी के लब पर है उन्हीं का नाम

बाज़ारों में लगा हुआ है दीवाली का मेला

कोई ख़रीदे बर्तन भांडे कोई शाल दोशाला

कोई ख़रीदे आतिश-बाज़ी कोई गुलों की माला

चौदह बरस में लौटे घर को लछमन सीता राम

आज हर इक नर-नारी के लब पर है उन्हीं का नाम

दुल्हन की मानिंद सजे हैं मंदिर और शिवाले

पूजा का सामान सजाए आए हैं मतवाले

दया धर्म का दान करेंगे आज यहाँ दिल वाले

चौदह बरस में लौटे घर को लछमन सीता राम

आज हर इक नर-नारी के लब पर है उन्हीं का नाम

कँवल डिबाइवी

चार जानिब है यही शोर दिवाली आई

साल-ए-माज़ी की तरह लाई है ख़ुशियाँ इमसाल

यूँ तो हर शख़्स मसर्रत से खिला जाता है

फिर भी बच्चे हुए जाते हैं ख़ुशी से बेहाल

हर बशर महव है इस जश्न की तय्यारी में

ताकि ख़ुशियों का क़मर और ज़िया-बख़्श है

कर रहे हैं सभी मिल-जुल के सफ़ाई घर की

उन की कोशिश है कि ताबिंदा हर एक नक़्श बने

उतर आए हैं ज़मीं पर भी फ़लक से तारे

दामन-ए-चर्ख़ में ऐ दोस्तो क्या रक्खा है

रश्क-अफ़्लाक नज़र आती है हर इक बस्ती

आज धरती को भी आकाश बना रक्खा है

साफ़-शफ़्फ़ाफ़ चमकते हुए पुर-नूर मकाँ

सेहन-ए-गुलशन में खिले जैसे हों रंगीन गुलाब

झील में तैरते हों नूर से मामूर कँवल

या उतर आए हों गर्दूं से हज़ारों महताब

मुझ को ख़्वाहिश है उसी शान की दीवाली की

लक्ष्मी देश में उल्फ़त की शब-ओ-रोज़ रहे

देश को प्यार से मेहनत से सँवारें मिल कर

अहल-ए-भारत के दिलों में ये 'कँवल' सोज़ रहे

शौकत जमाल

हमारे साथ वाले घर में लगता है दिवाली है

दर-ओ-दीवार पर है रंग-ओ-आराइश मिसाली है

लगा है बाग़बाँ भी रात-दिन इस की सजावट में

नए पौधे लगे महकी हुई फूलों की डाली है

है मेहमानों से रौनक़ किस क़दर इन के यहाँ देखो

ये ख़ाला हैं वो ख़ालू हैं ये साला है वो साली है

कोई घर में ही घंटों से लगी है आज मेक-अप में

तो कोई पार्लर में दोपहर से यर्ग़माली है

अज़ीज़-ओ-रिश्ता-दार आए हुए हैं दूर से सारे

समुंदर पार कर के सास भी आने ही वाली है

बहुत मसरूर-ओ-शादाँ है उधर जिस पर नज़र डालो

चमक आँखों में सब के और सब गालों पे लाली है

जौहर रहमानी

हर ग़म को भूल जाओ दिवाली की रात है

आओ दिए जलाओ दिवाली की रात है

हर दीप दे रहा है नई सुब्ह का पयाम

अब तुम भी मुस्कुराओ दिवाली की रात है

मैं ने भी कुछ चराग़-ए-मोहब्बत जलाए हैं

बच्चो क़रीब आओ दिवाली की रात है

छोटे बड़ों का भेद न रक्खो दिलों में आज

सब को क़रीब लाओ दिवाली की रात है

हँसता है ये दिवाली का इक इक चराग़ आज

होंटों पे गुल खिलाओ मिठाई उड़ाओ मौज

और फुलझड़ी छुड़ाओ दिवाली की रात है

नज़ीर अकबराबादी

हर इक मकाँ में जला फिर दिया दिवाली का

हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का

सभी के दिल में समाँ भा गया दिवाली का

किसी के दिल को मज़ा ख़ुश लगा दिवाली का

अजब बहार का है दिन बना दिवाली का

जहाँ में यारो अजब तरह का है ये त्यौहार

किसी ने नक़द लिया और कोई करे है उधार

खिलौने खेलों बताशों का गर्म है बाज़ार

हर इक दुकाँ में चराग़ों की हो रही है बहार

सभों को फ़िक्र है अब जा-ब-जा दिवाली का

मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई

पुकारते हैं कि लाला दिवाली है आई

बताशे ले कोई बर्फ़ी किसी ने तुलवाई

खिलौने वालों की उन से ज़ियादा बन आई

गोया उन्हों के वाँ राज आ गया दिवाली का

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