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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

महिलाओं को ज़िंदगी के मायने सिखाती पुस्तकें

टीम Her Circle |  सितंबर 05, 2024

अपने साहित्य में प्रेम को सहेजते हुए अपने अस्तित्व की तलाश करती महिलाओं की कहानियों को जिन महिला साहित्यकारों ने अपनी पुस्तकों में स्थान दिया है, वो आपको पढ़नी ही चाहिए। आइए जानते हैं कौन सी है वो पुस्तकें।   

अमृता प्रीतम की ‘पिंजर’

image courtesy :@pastcart.com

भारत-पाकिस्तान विभाजन की पृष्ठभूमि पर आधारित पिंजर, अमृता प्रीतम की उत्कृष्ट कृतियों में से एक है। वर्ष 1950 में लिखा गया मार्मिक उपन्यास ‘पिंजर’, एक हिंदू लड़की, पूरो की कहानी है, जिसे पाकिस्तानी राशिद अपहरण कर अपने घर ले आता है। हालांकि एक दिन नज़र बचाकर वह राशिद के घर से भागने में सफल हो जाती है और अपने घर जाती है। पूरो को इस तरह अचानक अपने दरवाज़े पर देख पूरो के माता-पिता पहले हैरान हो जाते हैं, लेकिन बाद में उसे उसे अपवित्र लड़की का दर्जा देते हुए स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं। हताश पूरो एक बार फिर राशिद के पास लौट जाती है और उसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लेती है।

अनिता देसाई की ‘इन कस्टडी’

1984 में बुकर पुरस्कार के लिए चयनित अनीता देसाई का उपन्यास ‘इन कस्टडी’, दिल्ली की पृष्ठभूमि पर आधारित एक शानदार दृष्टांत है, जो मॉडर्न सोसायटी के समक्ष संस्कृति और परंपरा के खत्म होने की कहानी कहता है। विशेष रूप से मानवीय रिश्तों की जटिलता को प्रस्तुत करते हुए, संवेदनाओं का शानदार अध्ययन है यह उपन्यास। इसकी कहानी एक छोटे शहर के रहनेवाले देवेन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक छोटे शहर के छोटे से कॉलेज में हिंदी पढ़ाते हुए एक नीरस जीवन व्यतीत कर रहा है।

शशि देशपांडे की ‘दैट लॉन्ग साइलेंस’

वर्ष 1989 में प्रकाशित शशि देशपांडे का उपन्यास ‘दैट लॉन्ग साइलेंस’, एक भारतीय महिला जया के अस्तित्व संबंधी सवालों से जूझती उसकी आंतरिक दुनिया की कहानी है। जया एक मध्यम आयु वर्ग की शिक्षित महिला है, जिसका विवाह मोहन नामक एक इंजीनियर से हुआ है और उनके दो बच्चे हैं। जया की हँसती-खेलती ज़िंदगी में भूचाल तब आता है, जब व्यवसाय में घोटाले के आरोप में उसके पति को नौकरी से निकाल दिया जाता है। अपनी ज़िंदगी में अचानक आए इस तूफ़ान के दौरान वह कैसे अपने अस्तित्व से जूंझते हुए अपने आतंरिक दुनिया को टटोलती है, ये जानना काफी दिलचस्प है।  

गीता हरिहरन की ‘द थाउजंड फेसेस ऑफ़ नाइट’ 

वर्ष 1982 में प्रकाशित गीता हरिहरन के इस पहले उपन्यास को यदि समकालीन भारत में महिला पहचान की गहन खोज कहें तो गलत नहीं होगा। तीन अलग-अलग पीढ़ियों से संबंधित महिलाओं के अस्तित्व पर प्रकाश डालता यह उपन्यास उनकी मानसिक रणनीतियों को दर्शाता है। अमेरिकी डिग्री के साथ मद्रास लौटी इस उपन्यास की मुख्य नायिका देवी, उसकी माँ सीता और उनके घर खाना पकानेवाली महिला मायाम्मा, इन तीन महिलाओं के ज़रिए लेखिका ने स्त्री चरित्र के अलग-अलग रंगों को दर्शाया है।

महाश्वेता देवी की ‘हज़ार चौरासी की माँ’

image courtesy :@prayog.pustak.org

हिंदी और बँगला साहित्य की अनमोल धरोहर महाश्वेता देवी की कृति ‘हज़ार चौरासी की माँ’ भारत के दबे-कुचले वर्गों, विशेषकर आदिवासी समुदायों द्वारा झेले जा रहे सामाजिक-राजनीतिक अन्याय की करुण गाथा है। अगर यह कहें तो गलत नहीं होगा कि उनके द्वारा वर्ष 1974 में रचा गया यह उपन्यास, सत्तर के दशक में नक्सलवादी क्रांति के दौरान भूमि अधिकार, सम्मान और न्याय के लिए उनके संघर्षों का एक सशक्त दस्तावेज़ है।

मंजु कपूर की ‘डिफिकल्ट डॉटर्स’ 

वर्ष 1998 में प्रकाशित मंजु कपूर लिखित उपन्यास ‘डिफिकल्ट डॉटर्स’, वीरमति नामक एक महिला की कहानी है, जिसका जन्म अमृतसर में आर्थिक रूप से सामान्य, किंतु वैचारिक रूप से समृद्ध परिवार में हुआ था। हालांकि विभाजन का दंश सहती वीरमति उस वक़्त पारिवारिक कर्तव्यों के साथ शिक्षा और अवैध प्रेम के बीच फंस जाती है, जब उसे अपने एक विवाहित पड़ोसी और पेशे से प्रोफेसर व्यक्ति से प्रेम हो जाता है। उसे एहसास होता है कि उसे अपनी स्वतंत्रता के लिए दर्द और विभाजन की अनगिनत रेखाएँ खींचनी होगी, और यह रेखाएँ विभाजन की रेखाओं से अधिक मजबूत होंगी।

अनिता देसाई की ‘मिस्ट्रेस’ 

वर्ष 2005 में प्रकाशित अनिता देसाईं का उपन्यास ‘मिस्ट्रेस’, कला और व्यभिचार का खूबसूरत लेखा-जोखा है, जिसके द्वारा महिलाओं की शक्ति और इच्छा के जटिल संबंधों को दर्शाया गया है। यह उपन्यास मुख्य रूप से एक यूरोपीय संगीतकार की कहानी है, जो एक प्रसिद्ध कथकली नर्तकी की जीवनी लिखने भारत आता है, लेकिन मुखौटों के पीछे छुपी स्त्री और अपनी दमित भावनाओं की दुनिया में फंस जाता है।

अनिता देसाई की ‘द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस’  

वर्ष 2006 के बुकर पुरस्कार से सम्मानित ‘द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस’ उपन्यास में लेखिका अनिता देसाई ने भारत के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के आपस में जुड़े हुए पात्रों को उनके जीवन के माध्यम से वैश्वीकरण, पहचान और उपनिवेशवाद के प्रभाव को दर्शाने का सफल प्रयास किया है। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो पेशे से जज है और शांति से सेवानिवृत्त होना चाहता है, लेकिन उसके जीवन में तब भूचाल आ जाता है, जब उसकी अनाथ पोती, सई अचानक उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है। खुशी और निराशा से भरे इन टेढ़े-मेढ़े रास्तों के ज़रिए इसके पात्र किस तरह विकल्पों का सामना करते हैं, यह देखना काफी दिलचस्प है।

कृष्णा सोबती की ‘ज़िंदगीनामा’

image courtesy :@prayog.pustak.org

1979 में प्रकाशित कृष्णा सोबती का विशाल उपन्यास ‘ज़िंदगीनामा’, अविभाजित पंजाब के गुजरात क्षेत्र के छोटे से गांव शाहपुर में रह रही एक महिला के जीवन की कहानी है। इस उपन्यास के ज़रिये लेखिका ने 20वीं सदी के भारत में रिश्तों के माध्यम से आत्म-खोज की उसकी यात्रा की पड़ताल की है। अगर यह कहें तो कतई गलत नहीं होगा कि कृष्णा सोबती का यह उपन्यास प्रलयंकारी विभाजन के तट पर खड़े भारत का एक शानदार चित्र प्रस्तुत करता है।

चित्रा बैनर्जी दीवाकरुणी की ‘द पैलेस ऑफ़ इल्यूजंस’ 

वर्ष 2008 में प्रकाशित चित्रा बैनर्जी दीवाकरुणी का उपन्यास ‘द पैलेस ऑफ़ इल्यूजंस’, द्रौपदी के दृष्टिकोण से महाभारत की कहानी को पुन: प्रस्तुत करते हुए शक्ति, भाग्य और समाज में महिलाओं की भूमिका के विषयों की खोज करता है। इस उपन्यास में नारीवादी दृष्टिकोण के ज़रिए दर्शाया गया है कि किस तरह अग्नि से जन्मी द्रौपदी का विवाह पांच पांडवों से हो जाता है, जिन्हें उनके पिता के राज्य से धोखे से निकाल दिया गया है। यह देखना वाकई दिलचस्प है कि किस तरह अपने जन्मसिद्ध अधिकार को प्राप्त करने के प्रयास में आदर्श पत्नी की भूमिका निभाते हुए द्रौपदी पग-पग पर उनका साथ देती है।

अनुराधा रॉय की ‘एन एटलस ऑफ़ इम्पॉसिबल लॉन्गिंग’  

वर्ष 2008 में प्रकाशित अनुराधा रॉय की ‘एन एटलस ऑफ़ इम्पॉसिबल लॉन्गिंग’, 1920 और 1950 के बीच के ग्रामीण बंगाल को स्थापित करते हुए विभिन्न पीढ़ियों के पात्रों के परस्पर जुड़े जीवन को दर्शाता है। सपनों, इच्छाओं, आशाओं और लालसाओं की कहानी कहता यह उपन्यास प्रेम के संघर्ष को भी दर्शाता है। 

मीना कांडासामी की ‘व्हेन आई हिट यू: और अ पोर्ट्रेट ऑफ़ द आर्टिस्ट एज़ ए यंग वाइफ’ 

वर्ष 2017 में प्रकाशित मीना कांडासामी की ‘व्हेन आई हिट यू: और अ पोर्ट्रेट ऑफ़ द आर्टिस्ट एज़ ए यंग वाइफ’ एक आत्मकथात्मक उपन्यास है, जो उनके द्वारा झेले गए घरेलू हिंसा के अनुभवों पर आधारित है। इसमें लेखिका ने कम उम्र में हुए अपने विवाह का ब्यौरा दिया है कि किस तरह एक खूबसूरत दुनिया का सपना देखते हुए नायिका एक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के प्यार में पड़ जाती है, जिसकी परिणति घरेलू हिंसा के साथ टूटे सपनों से होती है। इतनी परेशानियों के बावजूद नायिका खुद को समेटते हुए न सिर्फ उस अपमानजनक विवाह से निकलती है, बल्कि अपनी पहचान भी कायम करती है। 

गीतांजलि श्री की ‘रेत समाधि’

image courtesy :@amazon.in

वर्ष 2018 में हिंदी में प्रकाशित गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ ने उस वक्त सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया, जब उन्हें वर्ष 2022 का अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डेज़ी रॉकवेल द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित, भारतीय भाषा से अंग्रेजी में अनुवादित यह पहली पुस्तक है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया था। ‘रेत समाधि’एक 80 वर्षीय उदास माँ की यात्रा है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद पाकिस्तान जाने का फैसला करती है. बचपन में विभाजन के दंगों से बची, अपने बचपन के कुछ अनसुलझे पहलुओं को सुलझाने पाकिस्तान जाती है।  

 

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