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साहित्यकार जन्मदिन विशेष : निर्मल वर्मा, मन्नू भंडारी और माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं

टीम Her Circle |  अप्रैल 21, 2024

साहित्य और साहित्यकारों की दुनिया के लिए अप्रैल का महीना बेहद खास है। इसकी वजह यह है कि निर्मल वर्मा, मन्नू भंडारी और माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म इसी माह में आता है। ऐसे में साहित्य की दुनिया के अनमोल रत्न माने गए निर्मल वर्मा, मन्नू भंडारी और माखनलाल चतुर्वेदी के साहित्य के सफर को देखना भी साहित्य प्रेमियों के लिए भी जरूरी बन जाती है। आइए पढ़ते हैं विस्तार से।

निर्मल वर्मा : नई कहानी के मुखिया 

आधुनिक साहित्यकार निर्मल वर्मा का जन्म 3 अप्रैल 1929 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हुआ। उन्हें हिंदी साहित्य में नई कहानी के आंदोलन का मुखिया माना जाता रहा है। यही वजह है कि उनकी गिनती आधुनिक साहित्यकारों में होती रही है। कहानी लेखन और उपन्यास में निर्मल वर्मा माहिर माने जाते रहे हैं। उनके लोकप्रिय उपन्यासों की बात की जाएं, तो ‘रात का रिपोर्टर’,’एक चिथड़ा सुख’, ‘लाल टीन की छत’ और ‘वे दिन’ का नाम शामिल है। इसके साथ उन्होंने अपनी सौ से अधिक कहानियों का संग्रह भी प्रकाशित किया। सबसे पहले 1958 में परिंदे कहानी से लोकप्रियता हासिल की और यहीं से उनके लेखन का अद्भुत सफर शुरू हुआ। निर्मल वर्मा के अन्य कहानी संग्रह की बात करें, तो ‘जलती झाड़ी’, ‘पिछली गर्मियों में’,’ बीच बहस में’, ‘मेरी प्रिय कहानियां’, ‘प्रतिनिधि कहानियां’, ‘कव्वे और काला पानी’, ‘सूखा’ तथा अन्य कहानियां और संपूर्ण कहानियों भी शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने कई सारे यात्रा-संस्मरण और डायरी भी लिखी। खासतौर पर 1963 में प्रकाशित ‘चीड़ों पर चांदनी’, 1970 में प्रकाशित ‘हर बारिश में’ और 1977 में प्रकाशित ‘धुंध’ से उठती धुन शामिल है। साल 1976 में लिखा हुआ उनका नाटक ‘तीन एकांत’ भी काफी लोकप्रिय हुआ। निर्मल वर्मा को कई सारे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। साल 1999 में साहित्य में देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार भी दिया गया। साल 2002 में भारत सरकार की तरफ से उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण दिया गया है। साल 1995 में उन्हें निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार दिया गया और साल 1984 में निर्मल वर्मा को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। कई लोग निर्मल वर्मा को ‘अकेलेपन का लेखक’ भी मानते रहते हैं। अपनी रचनाओं में उन्होंने लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी घटनाओं को बड़ी सहजता से जिक्र किया है। हिंदी भाषा में सहज होने के साथ उन्हें अंग्रेजी लेखन और साहित्य की भी जानकारी रही है। उन्होंने अपने जीवन का एक दशक से अधिक समय .यूरोप में बिताया और फिर भारत आकर स्वंतत्र रूप से लेखन की शुरुआत की। एक दफा अपने पुरस्कार भाषण के दौरान लोकप्रिय अमेरिकी लेखक हेनरी जेन्स के शब्दों को दोहराते हुए उन्होंने अपनी लेखनी को पागलपन करार दिया था। इसी वक्त उन्होंने 1972 में माया दर्पण फिल्म की कहानी लिखी, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। उन्होंने एक समारोह के दौरान यह भी कहा था कि एक लेखक के तौर पर हम जो लिखते हैं, वो साहित्य का कर्ज चुकाने का प्रयास भर है।

मन्नू भंडारी : हिंदी साहित्य की महान लेखिका

एक उपन्यासकार और कहानीकार के साथ मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य जगत की एक महान लेखिका भी मानी जाती हैं। मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1960 को मध्य प्रदेश में हुआ। महिलाओं के जीवन को लेखन के जरिए नई दिशा देने में मन्नू भंडारी ने प्रमुख भूमिका भी निभाई है। सबसे पहले उन्हें लोकप्रियता ‘धर्मयुग’ धारावाहिक में प्रकाशित उपन्यास ‘आपका बंटी’ से मिली। जान लें कि मन्नू भंडारी के पिता सुख सम्पतराय भी साहित्य की दुनिया के लोकप्रिय लेखक रहे हैं। साल 1957 में मन्नू भंडारी की पहली कहानी ‘मैं हार गई’ का प्रकाशन एक पत्रिका में हुआ। इसके साथ ही उन्होंने कभी भी न खत्म होने वाला साहित्य का सफर शुरू किया। उनके कई सारे लोकप्रिय उपन्यासों में से ‘आपका बंटी’ सबसे अधिक पसंद किया गया। साल 1971 में प्रकाशित आपका बंटी में एक विवाह की त्रासदी में पिर रहे बच्चे को केंद्र में रखकर लिखा गया है। इसके बाद साल 1962 में प्रकाशित ‘एक इंच मुस्कान’ को उन्होंने अपने पति राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया है। इस उपन्यास में आधुनिक लोगों की एक दुखांत प्रेमकथा बताई गई है। साल 1979 में ‘महाभोज’ उपन्यास के जरिए मन्नू भंडारी ने नौकरशाही और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच आम आदमी की पीड़ा को सबसे समक्ष रखा है। इस उपन्यास पर नाटक का मंचन भी किया गया और उसे उपन्यास से अधिक लोकप्रियता मिली। उनकी इस कहानी पर फिल्म ‘रजनीगंधा’ भी बनीं और लोकप्रिय हुई। साल 2007 में उन्होंने आत्मकथा ‘एक कहानी यह भी’ लिखी। साहित्य की दुनिया में अपने अनमोल योगदान के लिए उन्हें हिंदी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्नान, बिहार सरकार द्वार भी सम्नान मिला है। इसके साथ उन्हें राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के साथ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा भी पुरस्कृत किया गया। मन्नू भंडारी की बहुत सारी कहानियां ऐसी हैं, जो कि महिला के आजाद व्यक्त्तिव की कशमकश को दर्ज करती हुई बेहतरीन कहानियां हैं। मन्नू भंडारी की कहानी ‘दीवार बच्चे और बरसात’ में मोहल्लें की ओरतें ऐसी महिला के बारे में चर्चा कर रही हैं, जो अपने पति का घर छोड़कर निकल गई हैं। इस कहानी के अंत में एक दीवार गिरती दिखती है जिसे उसके अंदर उग आई एक नन्नी सी पौध ने कमजोर कर दिया था। यह कहानी जहां खत्म होती है, तो कथावाचक अंत में यह कह रही है कि मैं तो केवल उस नन्ही सी पौध को देख रही थी जिसने इतनी बड़ी दीवार को धड़ाधड़ गिरा कर घर में कोहराम मचा दिया था। 

माखनलाल चतुर्वेदी-भारतीय आत्मा 

साहित्य की दुनिया के लोकप्रिय कवि माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अपैल, 1889 को मध्य प्रदेश में हुआ। अपनी कविताओं और रचनाओं में उन्होंने हमेशा से ही सरल भावनाओं में व्यक्त करने की कोशिश की। अपनी भावनाओं को उन्होंने हमेशा से ही काफी सरल भाषा में रखा। यह भी जान लें कि अपनी रचनाओं के जरिए माखनलाल चतुर्वेदी को हिंदी साहित्य में एक भारतीय आत्मा के तौर पर भी पहचान मिली। उल्लेखनीय है कि साहित्य में उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए उन्हें 1963 में गणतंत्र दिवस के मौके पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॅा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उन्हें पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इसके साथ उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, देव पुरस्कार, साहू जगदीश पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। माखनलाल चतुर्वेदी की काव्य रचनाओं की बात करें, तो ‘पुष्प की अभिलाषा’, ‘वीणा का तार’, ‘टूटती जंजीर’, ‘नई-नई कोपलें’, ‘हिमालय का उजाला’ के साथ वर्षा ने आज विदाई ली आदि रचनाएं शामिल हैं। उनकी इन सभी रचनाओं को बीए और एमए के सिलेबल में शामिल किया गया। कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी के साहित्य पर पीएचडी भी की है। माखनलाल चतुर्वेदी की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता पुष्प की अभिलाषा भी है। जो कि इस प्रकार है कि..

चाह नहीं, मैं सुरबाला के, गहनों में गूंथा जाऊं, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध, प्यारी को ललचाऊं, चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि डाला जाऊं, चाह नहीं देवों के सिर पर, चढूं भाग्य पर इठलाऊं, मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृ-भूमि पर शीश-चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक।

 

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