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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

अंजुम रहबर की महत्वपूर्ण रचनाएं

टीम Her Circle |  मई 01, 2024

अंजुम रहबर उर्दू और हिंदी की लोकप्रिय लेखिका रही हैं। अंजुम रहबर की खासियत यह रही कि 1977 में मुशायरों और कवि सम्मेलनों में भाग लेना शुरू किया और उन्होंने कई राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों के लिए गायन किया है। आइए पढ़ते हैं अंजुम रहबर की रचनाएं। 

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था 

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था 

वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था 

मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई 

जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था 

बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे 

घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था 

मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को 

हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था 

दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में 

मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था 

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए 

मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए 

कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में 

इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए 

उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में 

ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए 

ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए 

मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए 

कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़ल 

मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए 

'अंजुम' तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़ 

इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए 

जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है

जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है 

उन का हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है 

चाँद तारे मिरे क़दमों में बिछे जाते हैं 

ये बुज़ुर्गों की दुआओं का असर लगता है 

माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं 

सर पे आँचल नहीं होता है तो डर लगता है 

रंग इस मौसम में भरना चाहिए

रंग इस मौसम में भरना चाहिए 

सोचती हूँ प्यार करना चाहिए 

ज़िंदगी को ज़िंदगी के वास्ते 

रोज़ जीना रोज़ मरना चाहिए 

दोस्ती से तजरबा ये हो गया 

दुश्मनों से प्यार करना चाहिए 

प्यार का इक़रार दिल में हो मगर 

कोई पूछे तो मुकरना चाहिए 

कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं 

यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं 

वो बे-वफ़ा जो राह में टकरा गया कहीं 

कह दूँगी मैं भी साफ़ कि पहचानती नहीं 

समझाया बार-हा कि बचो प्यार-व्यार से 

लेकिन कोई सहेली कहा मानती नहीं 

मैं ने तुझे मुआ'फ़ किया जा कहीं भी जा 

मैं बुज़दिलों पे अपनी कमाँ तानती नहीं 

'अंजुम' पे हँस रहा है तो हँसता रहे जहाँ

मैं बे-वक़ूफ़ियों का बुरा मानती नहीं

 

 

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