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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

फ़हमीदा रियाज़ की 5 लोकप्रिय रचनाएं

शिखा शर्मा |  अक्टूबर 14, 2022

फ़हमीदा रियाज़ का जन्म 28 जुलाई 1946 को मेरठ, ब्रिटिश भारत के एक साहित्यिक परिवार में हुआ था। उनके पिता के सिंध में ट्रांसफर होने के बाद उनका परिवार हैदराबाद शहर में बस गया। जब वह चार साल की थी तब उनके पिता की मृत्यु हो गई और इसलिए उनकी मां ने उनका पालन-पोषण पाकिस्तान में किया। फ़हमीदा रियाज़ पाकिस्तान की एक उर्दू लेखक, कवयित्री और कार्यकर्ता थीं। उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें से कुछ गोदावरी, खट्ट-ए मरमुज़ और खाना-ए-आब-ओ-गिल है। साल 2018 में 72 साल की उम्र में फ़हमीदा रियाज़ का निधन हो गया। आज उन्हें याद करते हुए पढ़िए उनकी कुछ खास रचनाएं -

 

जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है

जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है

या वो कोई इबलीस है या मेरा ख़ुदा है

जब सर में नहीं इश्क़ तो चेहरे पे चमक है

ये नख़्ल ख़िज़ाँ आई तो शादाब हुआ है

क्या मेरा ज़ियाँ है जो मुक़ाबिल तिरे आ जाऊँ

ये अम्र तो मा'लूम कि तू मुझ से बड़ा है

मैं बंदा-ओ-नाचार कि सैराब न हो पाऊँ

ऐ ज़ाहिर-ओ-मौजूद मिरा जिस्म दुआ है

हाँ उस के तआ'क़ुब से मिरे दिल में है इंकार

वो शख़्स किसी को न मिलेगा न मिला है

क्यूँ नूर-ए-अबद दिल में गुज़र कर नहीं पाता

सीने की सियाही से नया हर्फ़ लिखा है

 

कभी धनक सी उतरती थी उन निगाहों में

कभी धनक सी उतरती थी उन निगाहों में

वो शोख़ रंग भी धीमे पड़े हवाओं में

मैं तेज़-गाम चली जा रही थी उस की सम्त

कशिश अजीब थी उस दश्त की सदाओं में

वो इक सदा जो फ़रेब-ए-सदा से भी कम है

न डूब जाए कहीं तुंद-रौ हवाओं में

सुकूत-ए-शाम है और मैं हूँ गोश-बर-आवाज़

कि एक वा'दे का अफ़्सूँ सा है फ़ज़ाओं में

मिरी तरह यूँही गुम-कर्दा-राह छोड़ेगी

तुम अपनी बाँह न देना हवा की बाँहों में

नुक़ूश पाँव के लिखते हैं मंज़िल-ए-ना-याफ़्त

मिरा सफ़र तो है तहरीर मेरी राहों में

 

अब सो जाओ

अब सो जाओ

और अपने हाथ को मेरे हाथ में रहने दो

तुम चाँद से माथे वाले हो

और अच्छी क़िस्मत रखते हो

बच्चे की सौ भोली सूरत

अब तक ज़िद करने की आदत

कुछ खोई खोई सी बातें

कुछ सीने में चुभती यादें

अब इन्हें भुला दो सो जाओ

और अपने हाथ को मेरे हाथ में रहने दो

सो जाओ तुम शहज़ादे हो

और कितने ढेरों प्यारे हो

अच्छा तो कोई और भी थी

अच्छा फिर बात कहाँ निकली

कुछ और भी यादें बचपन की

कुछ अपने घर के आँगन की

सब बतला दो फिर सो जाओ

और अपने हाथ को मेरे हाथ में रहने दो

ये ठंडी साँस हवाओं की

ये झिलमिल करती ख़ामोशी

ये ढलती रात सितारों की

बीते न कभी तुम सो जाओ

और अपने हाथ को मेरे हाथ में रहने दो

 

इंक़लाबी औरत

रणभूमी में लड़ते लड़ते मैंने कितने साल

इक दिन जल में छाया देखी चट्टे हो गए बाल

पापड़ जैसी हुईं हड्डियाँ जलने लगे हैं दाँत

जगह जगह झुर्रियों से भर गई सारे तन की खाल

देख के अपना हाल हुआ फिर उस को बहुत मलाल

अरे मैं बुढ़िया हो जाऊँगी आया न था ख़याल

उस ने सोचा

गर फिर से मिल जाए जवानी

जिस को लिखते हैं दीवानी

और मस्तानी

जिस में उस ने इंक़लाब लाने की ठानी

वही जवानी

अब की बार नहीं दूँगी कोई क़ुर्बानी

बस ला-हौल पढ़ूँगी और नहीं दूँगी कोई क़ुर्बानी

दिल ने कहा

किस सोच में है ऐ पागल बुढ़िया

कहाँ जवानी

या'नी उस को गुज़रे अब तक काफ़ी अर्सा बीत चुका है

ये ख़याल भी देर से आया

बस अब घर जा

बुढ़िया ने कब उस की मानी

हालाँकि अब वो है नानी

ज़ाहिर है अब और वो कर भी क्या सकती थी

आसमान पर लेकिन तारे आँख-मिचोली खेल रहे थे

रात के पंछी बोल रहे थे

और कहते थे

ये शायद उस की आदत है

या शायद उस की फ़ितरत है

 

एक औरत की हंसी

पथरीले कोहसार के गाते चश्मों में

गूँज रही है एक औरत की नर्म हँसी

दौलत ताक़त और शोहरत सब कुछ भी नहीं

उस के बदन में छुपी है उस की आज़ादी

दुनिया के मा'बद के नए बुत कुछ कर लें

सुन नहीं सकते उस की लज़्ज़त की सिसकी

इस बाज़ार में गो हर माल बिकाऊ है

कोई ख़रीद के लाए ज़रा तस्कीन उस की

इक सरशारी जिस से वो ही वाक़िफ़ है

चाहे भी तो उस को बेच नहीं सकती

वादी की आवारा हवाओ आ जाओ

आओ और उस के चेहरे पर बोसे दो

अपने लम्बे लम्बे बाल उड़ाती जाए

हवा की बेटी साथ हवा के गाती जाए

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