ऐतिहासिक भाषा संस्कृत में भी ऐसी कई किताबें हैं, जो कि लोकप्रिय हैं। हालांकि इसे पढ़ने वालों की गिनती हिंदी और अंग्रेजी के मुकाबले कम है। उल्लेखनीय है कि इस भाषा में रची गई ग्रंथों ने न केवल भारतीय सभ्यता को नए मुकाम पर पहुंचाया है, बल्कि ज्ञान, कला और चिंतन की परंपरा का भी माध्यम बना हुआ है। देखा जाए, तो संस्कृत में कई सारी गुणवत्ता से भरी हुईं किताबें मौजूद हैं। हालांकि कुछ ऐसी किताबें हैं, जिन्हें कालजयी और अमर स्थान मिला हुआ है। आइए विस्तार से जानते हैं, ऐसी दिलचस्प किताबों के बारे में।
रामायण

रामायण का नाम सुनकर आप समझ गए होंगे कि हम आस्था और संस्कार के मिलन के साथ मानवीय मूल्यों की सीख देने वाले लोकप्रिय और पूजनीय ग्रंथ के बारे में बात करने जा रहे हैं। रामायण को संस्कृत भाषा का प्रथम महाकाव्य माना जाता है। इसे आदिकाव्य भी कहा जाता ह, क्योंकि इसके रचियता वाल्मीकि को आदिकवि कहा गया है। इसमें कुल 24 हजार श्लोक हैं, जिसे सात कांडों यानी कि बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, युद्ध कांड और उत्तर कांड में विभाजित किया गया है। रामायण में भगवान श्रीराम के जीवन की कथा वर्णित है — उनके जन्म, वनवास, सीता-हरण, रावण-वध और अयोध्या-वापसी की घटनाएँ। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि नीति, धर्म, मर्यादा और आदर्श जीवन का दर्शन कराता है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि रामायण ने भगवान श्रीराम के जीवन कथा को बहुत ही सुंदर और असरदार तरीके से बयान किया है और जिसका गहरा प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ा है। मर्यादा से परिपूर्ण राम का जीवन मनुष्य जाति के लिए नैतिकता की आधारशिला बन गया है। दिलचस्प है कि संस्कृत के साथ-साथ इस ग्रंथ का अनुवाद अनेक भाषाओं में भी किया गया है। अवधि, तमिल और थाईलैंड की 'रामाकियन' में इसे प्रमुख रूप से अधिक प्रचलित किया गया है। संस्कृत में लिखी हुई रामायण में वाल्मीकि की भाषा सहज, भावपूर्ण और काव्यात्मक है। उन्होंने भावनाओं, प्रकृति और चरित्रों का सूक्ष्म वर्णन किया है। यह ग्रंथ एक तरह से हमारी संस्कृति , सभ्यता के साथ मानवीय जीवन को सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ाने का मार्गदर्शन सही तरीके से करता है।
महाभारत

वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत भी मानवीय संस्कृत में लिखा गया दूसरा महाकाव्य महाभारत है, जिसे महर्षि वेदव्सा ने रचा है। यह दुनिया का सबसे विशाल महाकाव्य माना जाता है। इस महाकाव्य में एक लाख श्लोक हैं। यह महाकाव्य केवल एक युद्ध कथा नहीं है, बल्कि एक दार्शनिक, धार्मिक और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाला ग्रंथ भी है। पांडवों और कौरवों के बीच हुए संघर्ष और कुरुक्षेत्र की कर्म कथा को बयान करती है। इसमें धर्म, अधर्म, निष्ठा, लोभ, महत्वाकांक्षा और मानव स्वभाव के जटिल पहलुओं का अद्भुत चित्रण है। महाभारत का एक अद्भुत और लोकप्रिय हिस्सा भगवद गीता भी है। भगवद गीता सबसे महान ग्रंथ है, जिसमें मानव जीवन के हर कठिन सवाल का जवाब छिपा हुआ है। इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण सारथी बनकर अर्जुन को जीवन का सत्य और कर्तव्य का उपदेश देते हैं, जो आज भी प्रासंगिक है। यह ग्रंथ भारतीय दर्शन का सार मानी जाती है और आज भी नैतिक जीवन के मार्गदर्शन के रूप में पढ़ी जाती है। महाभारत जीवन के हर पड़ाव पर आपको सीख दे जाती है, जो कि आपके जीवन का मार्गदर्शन करती है। इसमें राजनीति, समाजशास्त्र, धर्म, अर्थशास्त्र की सटीक सीख मिलती है।
कालिदास द्वारा रचित 'अभिज्ञान शाकुंतलम' की संस्कृत किताब की समीक्षा

अभिज्ञानशाकुंतलम्, यह रचना संस्कृत नाट्य परंपरा का सर्वोत्तम उदाहरण है और इसे संस्कृत साहित्य का “रत्न” कहा जाता है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि संस्कृत साहित्य में कालिदास का नाम अमर है। इस वजह से उन्हें कविलगुरु भी कहा जाता है। इसकी वजह यह है कि उनकी रचनाएं न केवल काव्य-सौंदर्य से भरपूर है, बल्कि उनके भाव, भाषा और कला का संगम भी कराती हैं। अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास का लिखा हुआ सबसे लोकप्रिय नाटक है। उनकी नाटक की लोकप्रियता इस चरम पर है कि उन्होंने विश्व साहित्य में अपना स्थान भी विशिष्ट रखा है। अभिज्ञानशाकुंतलम् नाटक प्रेम, विरह,करुणा, सौंदर्य के साथ प्रकृति की कोमल भावनाओं से खुद को परिपूर्ण करता है। ऐसा माना जाता है कि कालिदास चौथी और पांचवी सदी के सबसे बड़े विद्वान थें। उनकी कई सारी रचनाओं के बीच इनमें अभिज्ञानशाकुंतलम् को सर्वोत्तम माना जाता है, जिसने कालिदास को अमर ख्याति प्रदान की। इस नाटक की नायिका शकुंतला महर्षि कण्व की दत्तक पुत्री है, जो ऋषि आश्रम में प्रकृति की गोद में पली-बढ़ी है। एक दिन राजा दुष्यंत शिकार के दौरान उस आश्रम पहुंचते हैं और वहां वे शकुंतला से मिलते हैं और दोनों के बीच गहरा प्रेम हो जाता है। दोनों का गंधर्व-विवाह हो जाता है और दुष्यंत शकुंतला को अपनी अंगूठी देकर राजधानी लौट जाते हैं। इसके बाद महर्षि दुर्वासा आश्रम में आते हैं, पर शकुंतला प्रेम-विचार में डूबी रहती है और उन्हें उचित आदर नहीं देती। क्रोधित दुर्वासा उसे श्राप देते हैं कि “जिस व्यक्ति के विषय में तू सोच रही है, वह तुझे भूल जाएगा।” कण्व ऋषि के कहने पर वे श्राप का शमन करते हैं कि “जब वह कोई पहचान का चिन्ह देखेगा, तब स्मरण हो जाएगा।” शकुंतला गर्भवती होकर दुष्यंत के दरबार में पहुंचती है, परंतु अंगूठी खो जाने के कारण दुष्यंत उसे नहीं पहचानते। दुखी शकुंतला स्वर्ग लोक चली जाती है। बाद में वह अंगूठी एक मछुआरे को मिलती है, और राजा को शकुंतला की याद आ जाती है। अंत में दुष्यंत स्वर्ग में जाकर शकुंतला और अपने पुत्र भरत से मिलते हैं। यह नाटक प्रेम और उससे जुड़ी याद को जोड़ती है। इसमें प्रेम की पवित्रता के साथ महिला के त्याग और पुरुष की भावनाओं को बखूबी प्रस्तुत किया गया है। दिलचस्प है कि कालिदास ने नायिका की भावनाओं को प्रकृति से जोड़कर प्रस्तुत किया है। खासतौर पर आप देखेंगे कि शकुंतला का विरह ऋतुओं के परिवर्तन के साथ गहराता जाता है। इस नाटक के हर एक अंक का आरंभ श्लोक या फिर गीत के माध्यम से होता है जो कि नाटक के स्लाद को रसीला और प्रबल बनाता है।
‘पंचतंत्र’ संस्कृत भाषा में लिखी हुई किताब की समीक्षा

संस्कृत के साहित्य में ‘पंचतंत्र; का विशेष स्थान है। यह ग्रंथ केवल कहानियों का संग्रह नहीं है, बल्कि जीवन की व्यावहारिक शिक्षा को प्रस्तुत करती है। इसकी रचना आचार्य विष्णु शर्मा ने की थी, जिनका उद्देश्य था। राजकुमारों को व्यवहारिक ज्ञान सिखाना है। यह न केवल बच्चों के लिए बल्कि सभी आयु वर्ग के लिए ज्ञानवर्धक ग्रंथ मानी गई है। पंचतंत्र को पांच भागों में बांटा गया है और हर एक भाग में अनेक कथाएं हैं। हर कथा में नैतिक शिक्षा या फिर मानव जीवन का मार्गदर्शन सही और सरल तरीके से करने का रास्ता दिखाया गया है। मित्रभेद, मित्रलाभ, कौए और उल्लुओं की नीति, लाभ की हानि और बिना सोचे विचार कार्य करने को लेकर कहानियां लिखी गई हैं। पंचतंत्र की हर एक कथा में पशु,पक्षी या फिर अन्य जीवों को पात्र बनाया गया है, ताकि मानव-जीवन के गुण और दोषों को सहज तरीके में दिखाया जा सके। पंचतंत्र की कहानियां बताती हैं कि जीवन में सफलता केवल बल या धन से नहीं बल्कि विवेक और नीति से मिलती है। पंचतंत्र की लोकप्रियता को देखते हुए इसका अनुवाद अरबी, फारसी, यूनानी, लैटिन, अंग्रेजी , फ्रेंच और जर्मन भाषाओं में भी इसका अनुवाद किया गया है और बहुत ही लोकप्रिय भी हुआ है।
‘कौटिल्य का अर्थशास्त्र’ संस्कृत किताब की समीक्षा

भारतीय इतिहास, राजनीति और अर्थव्यवस्था पर आधारित संस्कृत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है।जिसे आचार्य कौटिल्य (जिन्हें चाणक्य या विष्णुगुप्त भी कहा जाता है) ने रचा। इसमें कुल 15 अध्याय है, और लगभग 180 प्रकरण अध्याय हैं। यह ग्रंथ इस सिद्धांत पर आधारित है कि राज्य का मूल उद्देश्य प्रजा का सुख और सुरक्षा है। यह ग्रंथ जीवन के तीन पुरुषार्थों — धर्म, अर्थ, और काम — में ‘अर्थ’ को केंद्र में रखता है, क्योंकि अर्थ के बिना धर्म और काम की स्थिरता नहीं होती।“कौटिल्य का अर्थशास्त्र केवल शासन की पुस्तक नहीं, बल्कि नीति, बुद्धि और राष्ट्र निर्माण का दर्शन है। यह ग्रंथ प्राचीन भारत की बुद्धिमत्ता का सजीव प्रमाण है।”