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होम / एन्गेज / साहित्य / किताब-घर

आत्मनिर्भर बेटी के लिए 5 अनमोल किताबें, जीवन की मिलेगी सीख

टीम Her Circle |  अक्टूबर 06, 2025

बेटियों के लिए किताबें उनकी सबसे अच्छी दोस्त बनती हैं। किताबें उनके आत्मविश्वास को बढ़ाना, उनके सोचने की क्षमता के साथ लीडरशिप की खूबी को भी सिखाता है। आज हम आपको ऐसी ही 5 किताबों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कि आप अपनी बेटी की किताबों की लिस्ट में शामिल कर सकती हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।

‘मलाला- एक लड़की जिसने शिक्षा के लिए उठाई आवाज’ किताब की समीक्षा

मलाला यूसुफजई ने अपने जीवन को अपनी इस लिखी हुई किताब में उतार दिया है। यह उनकी आत्मकथा है, जो कि उनके प्रेरणादायी जीवन को दिखाती है। इस आत्मकथा में उन्होंने   तालिबान शासन ने लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी लगाई, तब मलाला ने आवाज़ उठाई और लड़कियों के अधिकार के लिए संघर्ष किया। अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए उन्होंने खतरों का सामना किया। इस किताब में मलाला ने अपने अपवे बचपन की यादों के साथ शिक्षा और परिवार के बारे में भी बात की है। यह किताब बताती है कि शिक्षा न केवल खुद का विकास करती है, बल्कि समाज को भी शिक्षित करने का रास्ता अग्रसर करती है। यह किताब लड़कियों के लिए इसलिए उपयुक्त है, क्योंकि यह किताब शिक्षा का महत्व बताती है। साथ ही सामाजिक न्याय और मानवाधिकार के बारे में सीख देती है। महिला अधिकारों के बारे में ज्ञान देती है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो  मलाला की कहानी साहस और उम्मीद का प्रतीक है। यह किताब पढ़कर लगता है कि अगर एक छोटी सी लड़की इतनी बड़ी आवाज़ उठा सकती है, तो हम सब भी अपने-अपने क्षेत्र में कुछ बड़ा कर सकते हैं। भाषा सरल और दिल को छू लेने वाली है, जो बच्चों और बड़ों दोनों के लिए उपयुक्त है। यह किताब न सिर्फ पढ़ाई की अहमियत बताती है, बल्कि आत्मबल और हिम्मत की भी सीख देती है।

‘कल्पना चावला- एक सपना, एक उड़ान’ किताब समीक्षा 

भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की जीवन यात्रा पर यह किताब आधारित है। पंजाब के एक गांव से निकलकर कल्पना चावला ने अपनी उड़ान को चांद तक पहुंचाया। किताब में उनके बचपन, पढ़ाई, अमेरिका जाने की यात्रा, अंतरिक्ष मिशन और उनके सपनों को पूरा करने की कहानी विस्तार से बताई गई है।पुस्तक में कल्पना चावला के बचपन से लेकर उनके अंतरिक्ष मिशन तक के सफर को बड़ी खूबसूरती से दर्शाया गया है। हरियाणा के एक छोटे शहर करनाल से निकलकर नासा तक का सफर आसान नहीं था। इस कहानी में उनका आत्मविश्वास, चुनौतियों से लड़ने की शक्ति और कभी हार न मानने वाला रवैया झलकता है।पुस्तक की भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और भावनात्मक है। यह खासकर युवाओं और छात्रों को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है, जिससे वे आसानी से जुड़ सकें और प्रेरणा ले सकें। कुल मिलाकर देखा जाए, तो यह किताब केवल एक जीवनी नहीं है,बल्कि एक प्रेरणा है। यह किताब हमें बताती है कि सीमाएं केवल मन की होती हैं। कल्पना चावला ने यह साबित किया है कि अगर सपने चांद पर जाना का है, तो हौसला भी आपके पास आसमान जितना बड़ा होना चाहिए। 

‘द डायरी ऑफ़ ऐनी फ्रैंक’ की किताब समीक्षा

इस किताब को खुद को ऐनी फ्रैंक ने लिखा है। यह एक तरह से ऐनी फ्रैंक की आत्मकथा है। ऐनी ने नाजी शासन के दौरान 1942 से 1944 तक अपने घर में छिपकर एक डायरी लिखी थी। यह डायरी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान के दर्दनाक हालात को भी बयान करती है। ऐनी 13 साल की यहूदी लड़की थी, जो अपने माता-पिता,बहन और कुछ और लोगों के साथ एक गुप्त अटारी में नाजी सेना से छिप कर रहा करती थी। वहां रहते हुए ऐनी ने अपने विचार, डर, आशाएं और हर दिन की घटनाओं को एक काल्पनिक दोस्त बनाते हुए एक डायरी में दर्ज कर दिया। ऐनी की डायरी हमें इस बात का अहसास दिलाती है कि कैसे बुनियादी आजादी, जैसे बोलना या फिर खुलकर जीना यह एक बहुत बड़ी देन है। ऐनी के डायरी में हमें युद्ध, नस्लभेद, आतंक और भय का सीधा अनुभव होता है। दूसरे युद्ध के बीच में रहते हुए भी ऐनी ने अपनी डायरी में लिखा है कि मैं अब भी मानती हूं कि दुनिया में लोग मूल रूप से अच्छे है। ऐनी की यह डायरी अंग्रेजी में प्रकाशित हुई है। इसका आपको हिंदी संस्करण भी मिल जाएगा। इस पुस्तक की खूबी यह है कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ होने के साथ-साथ एक संवेदनशील साहित्यिक कृति है। इसके अलावा पाठकों को इतिहास के उस भयानक दौर से जोड़ती है जो पाठ्यपुस्तकों से संभव नहीं है। यह डायरी हमें यह सीख देती है कि हालात कितने भी कठिन क्यों न हो, आशा, प्रेम और इंसानियत की भावना हमेशा बनाए रखनी चाहिए। 

फणीश्वरनाथ रेणु की ‘मैला आँचल’ की समीक्षा विस्तार से 

मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु का पहला और सबसे लोकप्रिय उपन्यास है, जिसे हिंदी साहित्य में आंचलिक उपन्यास का श्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है। यह उपन्यास एक तरह से आजादी मिलने के बाद भारत के ग्रामीण जीवन की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताओं का जीवंत चित्रण करता है। ज्ञात हो कि रेणु ने यह उपन्यास बिहार के एक गांव की पृष्ठभूमि पर रचा है। जहां पर केवल एक गांव नहीं, बल्कि पूरा भारतीय ग्रामीण जीवन बोलता है। रेणु ने गाँव की गरीबी, बेबसी, बीमारी, अंधविश्वास, सामंतवाद और राजनीतिक स्वार्थ को बिना किसी सजावट के लिखा है — बिलकुल जैसा वह था। रेणु ने बताया है कि कैसे आजादी के बाद भी ग्रामीण भारत आजादी के फलों से वंचित रहा है। यह उपन्यास एक तरह से करोड़ों भारतीयों की कहानी कहता है, जिनके लिए आजादी सपना है। रेणु ने ग्रामीण महिला की पीड़ा, शोषण और संघर्ष को भी बहुत सजीव रूप से प्रस्तुत किया है।कहानी में लोकगाथाएँ, लोकगीत, और लोक कथाएँ भरपूर हैं, जो ग्रामीण जनजीवन की आत्मा को पकड़ते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए, तो मेला आंचल न केवल एक साहित्यिक कृति है, बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है, जो आजाद भारत के उस चेहरे को दिखाता है, जिसे विकास और सत्ता ने अनदेखा किया है।  

‘माई साइलेंटली मदर’ किताब की समीक्षा

गीतांजलि श्री का यह उपन्यास एक पारंपरिक मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है। माई यानी की मां। यह कहानी माई की बेटी के नजरिए से कही गई है, जो मां को एक मौन, सहनशील और आत्म-बलिदान में रमी हुई महिला के रूप में देखती है। इस कहानी में माई की चुप्पी केवल कमजोरी नहीं दिखाती,बल्कि एक प्रतिरोध को भी दर्शाती है। सारी उथल-पुथल के बीच माई एक मौन शक्ति बनकर उभरती है। माई कोई क्रांतिकारी स्त्री नहीं है, वह चुप रहती है, घर संभालती है, सहती है। लेकिन उसका यही "चुप" होना, एक तरह का नारीवादी बयान है कि कभी‑कभी विरोध गुस्से में नहीं, बल्कि न मुँह खोलने में भी होता है। इसके साथ ही इस कहानी में पितृसत्तात्मक समाज की भी झलक दिखाई देती है। इस किताब की सबसे खूबी यह है कि यह एक मां की कहानी है, जो हर घर में हो सकती है। भारतीय सामाजिक ढांचे की नारी इस कहानी  में दिखाई गई है। इसके साथ ही पारिवारिक भावनाओं का गहराई से विश्लेषण भी यह कहानी करती है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो यह उपन्यास कोई नारीवादी घोषणापत्र नहीं है, न ही माई  किसी आक्रमण महिला को प्रस्तुत करती है। यह कहानी बताती है कि धैर्य के साथ मौन के हथियार को लेकर भी जिंदगी की कई जंग को जीता सकता है। माई की चुप्पी हमें सोचने पर मजबूर करती है। "माई: साइलेंटली मदर" एक मार्मिक, विचारोत्तेजक और संवेदनशील उपन्यास है, जो आपको अपनी माँ, अपने घर, और समाज में स्त्रियों की भूमिका को नए दृष्टिकोण से देखने को मजबूर करता है। यह किताब धीमी जरूर है, लेकिन इसका असर बहुत गहरा और स्थायी है।

 

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