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भारतीय संस्कृति को आईने की तरह दिखातीं 5 दिलचस्प किताबें

टीम Her Circle |  मार्च 28, 2025

भारतीय संस्कृति को समझने और उससे रूबरू होने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि आप किताबों का सहारा लें। भारत की संस्कृति और परंपरा पर आधारित हिंदी और अंग्रेजी में कई सारी किताबें हैं। अगर आप भी भारतीय संस्कृति से मुलाकात करना चाहती हैं, तो आप इन किताबों को जरूर एक बार पढ़ें। आइए जानते हैं विस्तार से।

धर्मवीर भारती की किताब ‘भारत-एक खोज’

‘भारत एक खोज’ धर्मवीर भारती द्वारा लिखी हुई एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपन्यास है, जो कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति को व्यापक तौर पर प्रस्तुत करती है। उल्लेखनीय है कि यह उपन्यास एक समय यात्रा के रूप में प्रस्तुत की गई है, जिसमें लेखक ने भूतकाल, वर्तमान और भविष्य को जोड़ते हुए भारत की ऐतिहासिक यात्रा को एक गहरी समझ और व्यापक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। दिलचस्प है कि धर्मवीर भारती की यह किताब भारतीय इतिहास के विभिन्न युगों को एकता के सूत्र में बांधते हुए प्रस्तुत करती है। इस उपन्यास में भारतीय संस्कृति धारा को वर्तमान से जोड़ते हुए प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच का संतुलन स्थापित करती है।  इस किताब में लेखक ने भारतीय राष्ट्रवाद और उसकी पहचान के सवालों को बहुत ही संवेदनशील तरीके से उठाया है। यह प्रश्न करते हुए कि भारत के विविधताओं के बीच एकता की भावना कैसे उत्पन्न की जा सकती है, लेखक ने भारतीयता की मौलिकता को उकेरा है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो इस किताब में धर्मवीर भारती ने अपनी लेखनी में भारतीय समाज और संस्कृति को समझने की एक नई दिशा दी है। इस किताब में उनके लिखने की शैली साधारण होते हुए भी काफी विचारशील है। आसान भाषा में भी उन्होंने भारतीय संस्कृति की अद्भुत झलक दिखाई है। 

राम शरण शर्मा की किताब ‘गुप्तकालीन भारत’

राम शरण शर्मा की यह किताब नायाब ऐतिहासिक काव्य है, जो कि भारत की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं का विस्तार से विश्लेषण करती है। यह किताब गुप्त काल को भारतीय इतिहास में स्वर्ण काल के रूप में प्रस्तुत करती है, क्योंकि इसी काल में भारत में समृद्धि, शांति और कला-संस्कृति का उत्कर्ष हुआ था। उल्लेखनीय है कि काव्यात्मक शैली से लिखी हुई यह किताब भारत के गुप्तकालीन समय को दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत करती है। इस किताब में भारत के सांस्कृतिक इतिहास का गहरा विश्लेषण किया गया है। उन्होंने इस दृष्टिकोण के साथ गुप्तकालीन भारत को दिखाया है, जो कि पूरी तरह से अपनी समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन करता है। इस पुस्तक में गुप्तकालीन भारत में समाज की संरचना, जाति व्यवस्था और धर्म के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई है। गुप्त काल में कला, साहित्य, और विज्ञान का उत्कर्ष हुआ था। राम शरण शर्मा ने इस काल के काव्य साहित्य, शिल्पकला, स्थापत्य कला और विज्ञान की उन्नति पर ध्यान केंद्रित किया है। देखा जाए, तो राम शरण शर्मा की यह किताब गुप्त काल को समझने के लिए एक बड़ा स्त्रोत बन चुकी है। इसके साथ ही उनकी लेखनी में गुप्तकालीन भारत के इतिहास को एक नया दृष्टिकोण दिया है, जो न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से प्रमुख है, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता को समझने के लिए प्रेरणादायक किताब भी है।

डॉ अंबिका प्रसाद की किताब भारतीय संस्कृति: एक विवेचन

इस किताब में भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों जैसे धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, और संगीत का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह किताब भारतीय संस्कृति की ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टि से गहरी जानकारी प्रदान करती है। डॉ अंबिका प्रसाद ने इस पुस्तक में भारतीय संस्कृति और ऐतिहासिक सांस्कृतिक धारा को गहराई से बताया है। इस किताब में भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को गहराई से प्रस्तुत किया है। इसमें खासतौर पर धर्म और आध्यात्मिकता, दर्शन और चिंतन, कला और साहित्य  के साथ समाज और संस्कृति का विश्लेषण किया है।  इस किताब में भारतीय संस्कृति की ऐतिहासिक यात्रा को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। लेखक ने प्राचीन भारतीय सभ्यता, मौर्य और गुप्त काल, और मध्यकाल में संस्कृति पर हुए प्रभावों को समझाने का प्रयास किया है। इसके जरिए पाठक भारतीय इतिहास और संस्कृति के आपसी संबंध को समझ सकते हैं। इस किताब की दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने भारतीय संस्कृति के गहरे और जटिल पहलुओं को आसानी से समझने योग्य तरीके से प्रस्तुत किया है। उन्होंने भारतीय संस्कृति को एक सतत प्रवाह के रूप में दिखाया है, जो समय के साथ-साथ विकसित और परिवर्तित होती रही है। दूसरी तरफ से किताब में भारतीय संस्कृति की आलोचनात्मक समीक्षा भी की गई है, जहां पर पारंपरिक मान्यताओं और प्रथाओं को दिखाया गया है। अगर आप भारतीय संस्कृति के विविध पहलुओं को जानने और समझने के इच्छुक हैं, तो यह किताब आपके लिए अत्यधिक लाभकारी साबित हो सकती है।

वाल्मीकि की ‘रामायण’

यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, जीवन दर्शन, और नैतिक मूल्यों का संपूर्ण सार है। रामायण में भगवान राम के जीवन, उनके कर्तव्यों, संघर्षों और नैतिकता की कथा है, जो आज भी भारतीय समाज में मार्गदर्शन के रूप में स्वीकार की जाती है। इस किताब की लेखन शैली बहुत ही सुंदर होने के साथ प्रभावी है।  यह ग्रंथ 24 हजार श्लोकों में लिखा गया है और प्रत्येक कांड एक अलग भावनात्मक और नैतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।  वाल्मीकि की भाषा अत्यंत सहज और सरल होते हुए भी गहन अर्थों से भरपूर है। यह शैली रामायण को न केवल धार्मिक ग्रंथ, बल्कि काव्यशास्त्र का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी बनाती है। इस किताब में मौजूद राम का किरदार एक आदर्श व्यक्ति का है। राम का आदर्श धर्म, सत्य और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उनका जीवन भारतीय समाज में एक आदर्श और नैतिक मार्ग के रूप में देखा जाता है। रामायण में धर्म की परिभाषा का निरूपण किया गया है। रामायण में परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों का बहुत महत्व है। रामायण धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हिंदू धर्म के प्रमुख सिद्धांतों को समझने में मदद करती है। यह ग्रंथ राम के द्वारा किए गए कार्यों और उनके द्वारा स्थापित नैतिकताओं को आदर्श रूप में प्रस्तुत करता है। यह न केवल धार्मिक ग्रंथ के रूप में, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी आदर्श प्रस्तुत करता है। भारतीय जीवनशैली, रीतियाँ और परंपराएँ रामायण से प्रभावित रही हैं। कुल मिलाकर देखा जाए, तो रामायण न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि यह जीवन के मूल और सिद्धांतों का संग्रह भी है। यह आज भी प्रासंगिक है।

‘भगवत गीता’ की समीक्षा

भारत की धार्मिक और दार्शनिक साहित्य का महत्वपूर्ण ग्रंथ भगवत गीता है। यह ग्रंथ भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों का संग्रह है। भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य जीवन के सत्य, धर्म, कर्म और आत्मा के रहस्यों को समझना है। भगवत गीता में 700 श्लोक हैं, जिसे 18 अध्यायों में बांटा गया है। संस्कृत भाषा में होने के बाद भी इसकी भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावी है। गीता के सभी श्लोक आपके जीवन की कई समस्याओं से राह दिखाने का काम करती है। गीता के श्लोक के गहरे अर्थ हैं, जो हर व्यक्ति के किसी न किसी पहलू को छूते हैं। गीता का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह जीवन के सभी कठिन सवालों का समाधान प्रस्तुत करती है। अर्जुन की मनोस्थिति युद्ध भूमि पर अत्यधिक अव्यक्त और दुविधापूर्ण थी। वह अपने कर्तव्य और अपने परिवार के बीच संतुलन बनाने में असमर्थ था। श्री कृष्ण ने उसे इस दुविधा से बाहर निकालने के लिए उसे कर्म, धर्म और जीवन के उच्चतम उद्देश्य के बारे में उपदेश दिए। गीता में यह सिखाया गया कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में आंतरिक संघर्षों का सामना करना पड़ता है, लेकिन सच्चा मार्ग वही है जो आत्मविश्वास, संकल्प, और निष्कलंक कर्म पर आधारित हो।

 






 

 

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