कुछ लोकप्रिय ग्रामीण संस्थाएं हैं, जिन्होंने भारतीय फैशन को नया रूप दिया है और महिलाओं को नया रोजगार भी दिलवाया है। आइए जानें विस्तार से।
सिरोही

सिरोही की बात करें, तो सिरोही सस्टेनेबल या टिकाऊ सजावट और उपहार उत्पादों पर केंद्रित है। इसकी खूबी लाजवाब है। दरअसल,भारत के पांच राज्यों में 1500 से ज्यादा कारीगरों के साथ, जिनमें से 97 प्रतिशत हाशिए के समुदायों की महिलाएं हैं, सिरोही महिलाओं को आर्थिक आजादी, आत्मविश्वास और सामाजिक बंधनों को तोड़ने के अवसर प्रदान कर रहा है। दरअसल, कपास, जूट, घास और कपड़े के कचरे जैसी प्राकृतिक और पुनर्चक्रित सामग्रियों का उपयोग करके, सिरोही न केवल सुंदर उत्पाद बना रहा है, बल्कि कचरे को कम करने और पर्यावरण के प्रति जागरूक प्रथाओं को भी बढ़ावा दे रहा है। सिरोही उत्पादन के बाद के कपड़ों के कचरे, खासकर सूती कपड़ों से और रस्सियां बनाता है, जिनका उपयोग उनके उत्पादों की बुनाई में किया जाता है। यह सस्टेनेबिलिटी को पूरा बढ़ावा देता है।
सहेली
अगर महिलाओं के उत्थान की बात करें, तो ‘सहेली’ महिलाओं की कहानी 2014 में भीकमकोर नामक एक छोटे से गांव से शुरू हुई थी, जहां किसी दौर में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर थे ही नहीं, ऐसे में महिलाओं के लिए उम्मीद की ज्योति बना सहेली संस्थान। जी हां, महिला सशक्तिकरण के समर्थन में एक छोटे से प्रयास के रूप में शुरू हुआ, यह उद्यम आज एक सफल उद्यम बन गया है, जिसमें 150 से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं। खुशी की बात यह है कि हर एक महिला अपने दृढ़ संकल्प के लिए जानी जाती हैं, महिलाओं ने अपने लिए यहां रोजगार के अच्छे अवसर तैयार किये हैं। यहां मुख्य रूप से महिलाएं हथकरघा बुनाई और कताई से लेकर प्राकृतिक रंगाई, सिलाई, कढ़ाई और ब्लॉक प्रिंटिंग तक के कौशल चुन सकती हैं, जिन्हें वे सीखना चाहती हैं। साथ ही अपने लिए आय का साधान भी तलाश रही हैं। संस्थान की पूरी कोशिश महिलाओं के लिए एक बेहतर काम करने की जगह बनाना, ताकि वे काम करते हुए किसी भी तरह की असुरक्षा महसूस न करें।
रासलीला

रासलीला एक ऐसी संस्था है, जो महिलाओं को लगातार काम करने के लिए बढ़ावा दे रहा है। यह समग्र विकास के अवसर प्रदान करके डिजाइनरों और आर्टिस्ट के बीच एक पुल का काम कर रहा है, जो महिलाओं को ग्रामीण इलाके में आय का स्रोत मुहैया करा रहा है, महिलाएं यहां कलात्मक काम करती हैं, उन्हें डिजाइनर्स तक पहुंचाने का एक बेहतरीन जरिया बन रहा है।
दस्तकार
दस्तकार एक निजी गैर-लाभकारी गैर सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 1981 में हुई थी, जो पारंपरिक भारतीय शिल्पकारों को समर्थन दे,ने के लिए काम करता है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं और गांव आधारित हैं, जिसका उद्देश्य शिल्पकारों को आर्थिक मुख्यधारा में अपना स्थान पुनः प्राप्त करने में मदद करना है। यह लगातार महिलाओं और बाकी आर्टिस्ट के काम को बढ़ावा दे रहा है।