दुर्गा पूजा में खास तौर से सिंदूर खेला के दौरान लाल पाड़ वाली जरूर पहनी जाती है। आइए जानें विस्तार से कि इस दिन पहने जाने को लेकर क्या महत्ता है।
दुर्गा पूजा की आत्मा है ये साड़ी

दुर्गा पूजा के दौरान, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में, लाल और सफेड साड़ी, जिसे लाल पार या गरद के नाम से जाना जाता है, पवित्रता और शक्ति का प्रतीक एक प्रतिष्ठित और बेहद लोकप्रिय पारंपरिक परिधान है। सफेद के आधार पर लाल बॉर्डर वाली इस साड़ी को महिलाएं सिंदूर खेला जैसे प्रमुख अनुष्ठानों के लिए पहनती हैं। लाल और सफेद के अलावा, डार्क और गोल्डन रंगों या रेशमी और सूती रंगों में अन्य उत्सव और पारंपरिक साड़ियां भी पहनी जाती हैं, जिनका चयन कभी-कभी पूजा के दिन के अनुसार अलग-अलग होता है। अगर हम इसके प्रतीकात्मक महत्व की बात करें, तो यह लाल रंग शक्ति, प्रेम और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं सफेद मासूमियत और शांति का प्रतीक है। वहीं संयोजन लाल और सफेद का संयोजन एक संतुलित और शुभ रूप प्रदान करता है, जो भक्ति और उत्सव की भावना को दर्शाता है।
एक किवदंती यह भी
जगजाहिर मान्यता है कि दुर्गा पूजा, राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का स्मरण करती है और इस साड़ी के रंग दिव्य स्त्री ऊर्जा और देवी की विजयी शक्ति से जुड़े हैं। इस परिधान का इतिहास देवी दुर्गा की पूजा और बंगाली महिलाओं की सांस्कृतिक पहचान में शामिल मानी जाती है, जो विवाहित स्थिति के प्रतीक से भक्ति और उत्सव के व्यापक प्रतीक के रूप में विकसित हुआ है।
साड़ी के विकल्प और स्टाइल

अगर हम इसके पारंपरिक लाल बॉर्डर वाली पारंपरिक सफेद साड़ी की बात करें, तो एक क्लासिक विकल्प है। साथ ही इसके जो फैब्रिक हैं, वह पारंपरिक रेशम और सूती से लेकर शिफॉन जैसे आधुनिक फैब्रिक तक, कई विकल्पों में उपलब्ध हैं। साथ ही लाल और सफेद रंग तो खास हैं ही, लेकिन शाही नीला, गहरा हरा या पीला जैसे अन्य त्यौहारी रंग भी लोकप्रिय हैं। आपको बता दें कि अमूमन सप्तमी के लिए हल्के रंग की टेंट या सूती जामदानी साड़ियां चुनी जाती हैं, जबकि अष्टमी के लिए लाल-सफेद साड़ियां अक्सर पसंद की जाती हैं। वहीं इनके साथ एक्सेसरीज में एक साधारण बिंदी, काजल से सजी आंखें और आकर्षक ज्वेलरी इस लुक को पूरा कर सकती हैं। ये साड़ियां इसलिए भी लोकप्रिय हैं, क्योंकि सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में जैसी गर्मी पड़ती है, उसमें सूती कपड़े हवादार, हल्के और पहनने में आसान होते हैं, जिससे यह लंबे समय तक आपको पहनने में परेशानी नहीं होती है, वहीं सूती साड़ियों का रख-रखाव भी आसान होता है और वे बेहद आरामदायक भी होती हैं, जो दुर्गा पूजा समारोहों के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
है खास महत्व
अगर हम रंगों के प्रतीक की बात करें, तो सफेद रंग पवित्रता, शांति और स्थिरता का प्रतीक है, जबकि लाल पाड़ उर्वरता, शुभ और नई शुरुआत और देवी की दिव्य शक्ति और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही साथ यह संयोजन, जिसे अक्सर सफेद शंख की चूड़ियां, जिसे शाखा और पोला जो कि लाल मूंगा की चूड़ियां होती हैं, उनके साथ जोड़ा जाता है, इसे पहनने वालीं महिलाओं को विवाहित महिला माना जाता है, जो हर विवाहित बंगाली महिला में देवी की उपस्थिति का प्रतीक है, वहीं अगर अनुष्ठानिक महत्व की बात करें, तो साड़ी धार्मिक और शुभ अवसरों का एक अनिवार्य हिस्सा है, जिसमें महालया (दुर्गा का स्वागत) और सिन्दूर खेला के दिन खूब पहना जाता है। इस साड़ी की उत्पत्ति प्राचीन बंगाल में हुई थी, जब हथकरघा बुनकर प्राकृतिक कपास का उपयोग करके इन साड़ियों को तैयार करते थे। परंपरागत रूप से, किनारियों को पौधों पर आधारित लाल रंगों से रंगा जाता था, जो समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक थे।
है सांस्कृतिक संदर्भ ऐसा भी
पश्चिम बंगाल में इसे पहनने की शुरुआत कैसे हुई, इसकी अगर हम बात करें, तो इसके इतिहास और सांस्कृतिक संदर्भ को भी समझना जरूरी होगा। दरअसल, इसकी बंगाल में पहनने की शुरुआत हुई और सफेद और लाल रंग का संयोजन बंगाली महिलाओं के लिए एक विशिष्ट पहचान बन गया है, जो उनकी परंपराओं के साथ गहराई से जुड़ी एक सांस्कृतिक पहचान है। वहीं दुर्गा पूजा से जुड़ाव की बात करें, तो यह त्योहार का पर्याय बन गया है, देवी का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका। लोग मानते हैं, लाल पाड़ आंखों की ओर ध्यान आकर्षित करता है और देवी का प्रतीक है। वहीं गरद, ढाकाई जामदानी और तंगैल जैसी हथकरघा साड़ियों के पारंपरिक डिजाइन अभी भी पहने जाते हैं, वहीं आधुनिक रूपांतरों में अब हल्के कपड़े और समकालीन ब्लाउज शामिल हैं, जो इस पोशाक को और अधिक खास बना देते हैं।
तरह-तरह की लाल पाड़ वालीं साड़ियां

भारत की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता में महिलाएं कई तरीकों से लाल पाड़ की साड़ियां पहनती हैं, जैसे जामदानी अपनी खास पुष्प आकृतियों और पारदर्शी बनावट के लिए जानी जाती है। वहीं विशेष अवसरों के लिए एक पसंदीदा विकल्प हैं। ये साड़ियां कई पीढ़ियों से चली आ रही हैं। इसके अलावा, तांत साड़ियां भी काफी लोकप्रिय हैं, यह हल्की और आरामदायक होती हैं। वहीं रोजाना पहनने से लेकर किसी भी खास मौके पर पहनने के लिए, ये हर मौके पर अच्छी लगती हैं। लाल और सफेद तांत की साड़ियां साधारण होने के साथ-साथ खूबसूरत लगती हैं। दुर्गा अष्टमी के दिन से लेकर सिंदूर खेला तक में ये साड़ियां पहनी जाती हैं। इनके अलावा, चंदेरी सिल्क, गरद और इकट प्रिंट में भी ये साड़ियां पहनी जाती हैं। इनके अलावा, बालूचूरी साड़ियां भी बेहद दिलचस्प तरीके से लोगों के पास पहुंचती हैं।