सर्दियों के साथ गर्म कपड़ों का मौसम भी शुरू हो जाता है, जिसमें आप अपनी रूचि अनुसार कभी स्वेटर, तो कभी मफलर, कभी कोट, तो कभी ओवरकोट और कभी शॉल का उपयोप्ग करती हैं। इनमें विशेष रूप से यदि शॉल की बात करें तो ये गर्माहट देने के साथ स्टाइल स्टेटमेंट मानी जाती है। तो आइए जानते हैं भारत के अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग शॉल के बारे में।
महिलाओं की शॉल के साथ पुरुषों की दुशाला भी

image courtesy: @craftmaestros.com
कमोबेश भारत के हर राज्य में सर्दियों का अपना मौसम होता है। कहीं ज्यादा तो कहीं कम सर्दी पड़ती है, और इसी के मद्देनजर अलग-अलग राज्यों का अपना पहनावा, अपने कपड़े और उनकी अपनी संस्कृति होती है। यदि हम शॉल की बात करें तो यहां हर राज्य के शॉल की अपनी विशेषता है। कश्मीर की शान पश्मीना है, तो गुजरात की ढ़ाबला, नागालैंड की रंग-बिरंगी नागा शॉल है, तो हिमाचल प्रदेश की कुल्लू शॉल। इसके अलावा विभिन्न रंगों में बनी शादियों के अवसर पर दुल्हन द्वारा पहनी जानेवाली वेलवेट शॉल और कलमकारी शॉल के साथ पुरुषों के लिए दुशाला भी काफी लोकप्रिय है। हालांकि भारतीय संस्कृति में शॉल की शुरुआत ही दुशाला से हुई थी, जिसे अक्सर पुरुष पहनते थे। इसका जिक्र रामायण और महाभारत में भी मिलता है। इसके अलावा मुगल शासक अकबर को भी शॉल काफी पसंद थे और उनकी शॉल पर सोने और चांदी के धागों से कढ़ाई की जाती थी। आम तौर पर दुशाला एक ही रंग जैसे सफेद, भूरी, काली या मैरून रंग की होती है, जिस पर एम्ब्रॉयडरी बेहद कम होती है। हालिया वर्षों में दुशाला में भी काफी परिवर्तन आ चुके हैं और अब विभिन्न रंगों के साथ विभिन्न डिजाइनों में ये मिलने लगे हैं।
लक्जरी शॉल का इतिहास
ऐसी मान्यता है कि शॉल की शुरुआत कश्मीर में हुई थी। ऊन से बने इन शॉलों पर वहां की संस्कृति स्वरूप चिनार के पत्ते और फ्लोरल डिजाइन हुआ करती थी। हाथों से बनाने के कारण इनका निर्माण सिमित था, लेकिन फारस से नक्शा नामक मशीन के आने से भारत में शॉल बनाने का काम जोरो-शोरों से होने लगा था। हालांकि पूरे भारत में मशहूर कश्मीर की ये शॉल उस समय भी लक्जरी मानी जाती थी, क्योंकि यह काफी महंगी हुआ करती थी। भारत में शॉल के उत्पादन में आई तेजी से यह शॉल 19784 के आस-पास इंग्लैंड और फ्रांस के साथ पूरी दुनिया पर छा गई। गौरतलब है कि शॉल पर मोटिफ वर्क मुगलों ने 250 वर्ष पहले शुरू किया था, क्योंकि उस दौर में मुस्लिम महिलाएं बिना शॉल के घर से बाहर नहीं निकलती थीं। ऐसे में शॉल मौसमी जरूरत न होकर, पर्दे की तरह इस्तेमाल की जाती थी। साधारण महिलाएं जहां ऊनी और कॉटन शॉल इस्तेमाल करती थीं, वहीं संपन्न घरों की महिलाएं चमकीले गोटों और मोती की शॉल पहनती थीं।पश्मीना और कलमकारी शॉल की अलग है बात

अपनी गुणवत्ता के लिए मशहूर कश्मीर की पश्मीना या पेशवई शॉल वर्षों से पूरे भारत ही नहीं, बल्कि विश्व में प्रसिद्ध है। पश्मीना शॉल बनाने के लिए विशेह रूप से लद्दाख की चांग्रा भेड़ या पूर्वी हिमालय की चेंगू भेड़ों से निकली ऊन का इस्तेमाल किया जाता है, जो बेहद हल्की और काफी गर्म होती है। फ्लोरल डिजाइन वाली पश्मीना शॉल सबसे महंगी शॉल मानी जाती है। इसके महंगे होने की एक वजह यह भी है कि ये मशीनों की बजाय हाथों से बुनी जाती है। परंपरागत कढ़ाई, जिसे राखी या जामवार भी कहते हैं, से सजी ये शॉल अपनी बारीक कढ़ाई, चमकदार रंगों और सुंदर डिजाइन के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। उत्तर भारत की पश्मीना शॉल की तरह ही दक्षिण भारत की कलमकारी शॉल भारतीय कढ़ाई कला का अद्भुत प्रमाण है। विशेष रूप से हैदराबाद और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में बनी ये शॉल, पारंपरिक हस्तकला के साथ सूती कपड़ों पर ब्लॉक छापों से बनाए जाते हैं। नाम के मुताबिक इसे बनाने के लिए एक विशेष तरह की कलम का इस्तेमाल किया जाता है। उस कलम के जरिए रेशम या ऊन पर फूल, पत्तियों पक्षियों और प्रकृति की जटिल कढ़ाई की जाती है, जो काफी आकर्षक लगती है। शादी या किसी फंक्शन में शरीर को गर्माहट देने के साथ-साथ ये आपको एक फैशनेबल लुक भी देता है।
गुजरात की ढाबला शॉल से भी महंगी है नागा शॉल

गुजरात के कच्छ प्रांत की कला का प्रतीक ढ़ाबला शॉल की बात करें तो सफेद, काले, क्रीम, बेज और आइवरी रंगों से बनी ये शॉल दिखने में काफी साधारण सी लगती है, लेकिन इसे पहननेवाले को ये रॉयल लुक देती है। अपनी विशेष एंब्रॉयडरी के साथ ब्लॉक प्रिंटिंग और नेचुरल डाइज के लिए प्रसिद्ध ढ़ाबला शॉल काफी महंगी होती है। पश्मीना की तरह इस पर भी मोटिफ वर्क किया जाता है, जो इसे और खास बनाता है। ढ़ाबला शॉल की तरह ही नागा लैंड की पारंपरिक नागा शॉल भी दिखने में काफी साधारण होती है, लेकिन काफी महंगी होती है। हाथ से बुनी गई रंग-बिरंगी इस शॉल की कीमत बाजार में 20 से 50 हजार तक होती है। मैट और चिकनी नामक इन दो तरह की ऊन से बनी ये शॉल चटख नीले, लाल, काले और सफेद रंगों में मिलती है। इनमें मैट ऊन, जहां आसानी से मिलनेवाली कठोर ऊन होती है, वहीं चिकनी ऊन एक दुर्लभ कीड़े से मिलने के कारण काफी दुर्लभ होती है। ज्योमैट्रिक पैटर्न के साथ बनी ये नागा शॉल यदि मशीन के जरिए मैट ऊन से बनी है, तो आपको 2 हजार में मिल जाएगी, लेकिन यदि ये चिकनी ऊन के जरिए हाथों से बुनी गई है, तो इसकी कीमत 50 हजार तक हो सकती है।
स्थानीय कारीगरों की पहचान है परंपरागत कुल्लू शॉल

अपने आकर्षक डिजाइनों के साथ-साथ अपनी बनावट और मुलायमियत के लिए प्रसिद्ध कुल्लू शॉल, मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के कुल्लू प्रांत की पहचान है। स्थानीय कारीगरों द्वारा विभिन्न रंगों और पैटर्न के साथ हाथों से बुनी ये शॉल, जितनी गर्म होती है, उतनी ही हल्की भी होती है। परंपरागत रूप से पहले कुल्लू शॉल काले, सफेद, भूरे या नैचुरल ग्रे होते थे, लेकिन समय के साथ इनमें पीले, लाल, हरे, नारंगी और नीले चटख रंगों का इस्तेमाल किया जाने लगा। वर्तमान समय में ये चमकीले रंग अब पेस्टल रंगों में बदल चुके हैं, जो अधिकतर शहरी ग्राहकों की पहली पसंद बन चुके हैं। कुल्लू शॉल में 1 से 8 रंगों का एक स्पेक्ट्रम होता है, जिन्हें सोच-समझकर आपस में जोड़कर एक नया पैटर्न बनाया जाता है। गौरतलब है कि कुल्लू शॉल में भेड़ की ऊनों के साथ पश्मीना, याक की ऊन, अंगोरा और हाथ से बुने रेशे भी होते हैं। इन धागों को बड़ी सफाई से वनस्पति या रासायनिक रंगों से रंगा जाता है, जिससे विभिन्न रंगों के कपड़े मिल सके।
शॉल के साथ यूं करें स्टायलिंग

पिछले कुछ वर्षों में विंटर कलेक्शन शॉलों में वेलवेट शॉल भी शामिल हो गया है। माइक्रो वेलवेट, जरी और सेक्विन वर्क से बने वेलवेट शॉल बेहद मुलायम होते हैं। विशेष रूप से सर्दियों के दौरान किसी शादी या फंक्शन में जाने के लिए ये एक आदर्श शॉल है। ठंडी हवाओं से बचाते हुए ये न सिर्फ आपको गर्माहट देते हैं, बल्कि काफी आरामदायक, आकर्षक और फैशनेबल भी लगते हैं। विशेष रूप से सर्दियों के मौसम में होनेवाली शादियों के दौरान दुल्हन इसे अपने लहंगे के साथ दुपट्टे के तौर पर कैरी करती हैं। हालांकि यदि आपको भी शॉल के साथ फैशन स्टेटमेंट बनाना है, तो इसे आप कंधों पर लेने की बजाय लेयरिंग कर सकती हैं। यदि आप इसे साड़ी के साथ पहनना चाहती हैं, तो आप एक तरफ साड़ी का पल्ला लेकर दूसरी तरफ शॉल का एक भाग साड़ी के अंदर डालकर इसे पल्ले की तरह भी पहन सकती हैं। आप चाहें तो इसे सीधे पल्ले की साड़ी की तरह प्लीट्स बनाकर भी पहन सकती हैं। विशेष रूप से यदि आप प्लेन सिल्क या वेलवेट साड़ी के साथ शॉल को पेयर करती हैं, तो आप काफी ग्रेसफुल लगेंगी। इसके अलावा शॉल को आप वेस्टर्न आउटफिट के साथ कार्डिगन की तरह वेस्ट बेल्ट लगाकर भी पहन सकती हैं। वैसे लंबी हाइट वालों पर शॉल काफी जंचती है।
रखना है सालों-साल, तो रखें बेहतर ख्याल

image courtesy: @taroob.in
अन्य कपड़ों की तुलना में शॉल काफी कीमती होती है, ऐसे में उसका ख्याल भी काफी खास होना चाहिए। यदि आप चाहती हैं कि आपके शॉल की चमक और उसकी क्वालिटी यूं ही बनी रहे, तो इसे धोते समय आपको खास ख्याल रखना होगा. जहां तक संभव हो शॉल को ड्राइक्लीन करवाएं। यदि आपके लिए ये मुमकिन नहीं है तो इसे वाशिंग मशीन में धोने की बजाय, हल्के गर्म पानी में हल्के हाथों से धोएं. हार्ड साबुन की बजाय ऊनी कपड़ों के लिए बने डिटर्जेंट से ही धोएं और उन्हें धोने के बाद बिना निचोड़ें इसे किसी साफ जगह पर फैला दें। कोशिश करें कि इसे सीधे धूप में सुखाने की बजाय, कहीं छांव में उलटा करके सुखाएं। इसके अलावा इसे रखते समय भी इस बात का ख्याल रखें कि इसे प्लास्टिक बैग की बजाय मलमल के कपड़े में लपेटकर रखें, जिससे उसकी चमक बरकरार रहे। हां, शॉल को स्टोर करते समय गलती से भी अन्य कपड़ों की तरह इनमें नेफ्थलीन की गोलियां न डालें।