एक बार फिर से ट्राइबल ज्वेलरी ट्रेंड में है। इसलिए लोगों ने इसे फिर से पहनना शुरू किया है। आइए जानें विस्तार से।
क्या है ट्राइबल ज्वेलरी

आदिवासी समुदायों के बीच आभूषण विशेष दर्जे और वरिष्ठता का प्रतीक हैं, जबकि कुछ आध्यात्मिक मान्यताओं और कार्यात्मक आदतों से भी जुड़े हैं। ये आकर्षक आभूषण सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं और दुनिया भर के फैशन प्रेमियों का ध्यान आकर्षित करते रहते हैं। लकड़ी, धातु, पंखों और जंगली घास के व्यापक उपयोग से बने ये आभूषण एक रचनात्मक अभिव्यक्ति हैं और इन समुदायों की अद्भुत दृष्टि और शिल्प कौशल को दर्शाते हैं।
खास होता है अंदाज
आपको बता दें कि इनको बनाने वाली सामग्रियों की बात की जाए, तो प्राकृतिक और आसानी से उपलब्ध सामग्रियों, जैसे चांदी, पीतल, तांबा, लकड़ी, बीज, मनके, और यहां तक कि पंख और सीपियों जैसी प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग है। साथ ही यह शैली अपने साहसिक, देहाती और खास डिजाइनों के लिए जानी जाती है जो खूबसूरती और प्रकृति से जुड़ाव दोनों को दर्शाते हैं। इन दिनों ऑक्सीडाइज्ड चांदी के आभूषण विशेष रूप से प्रचलन में हैं। वहीं अगर शिल्पकला की बात की जाए, तो बीडवर्क काफी पसंद किया जाता है। साथ ही कारीगर विशिष्ट कलाकृतियां बनाने के लिए सिक्के, कांच और घास जैसी अनूठी वस्तुओं का भी उपयोग करते हैं।
क्षेत्रीय शैलियां

अगर क्षेत्रीय शैलियों की बात करें, तो बंजारा स्टाइल राजस्थान से ज्वेलरी खूब बनाते हैं और यह सिक्कों, सीपियों और धातु की जाली से सजे रंगीन और भारी आभूषणों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। वहीं मध्य प्रदेश के बस्तर की बात करें, तो वहां सिक्कों, घास, मोतियों, कांच और पंखों से बने आभूषण लोकप्रिय हैं। वहीं अगर सांस्कृतिक महत्व की बात करें, तो आदिवासी आभूषणों का गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अर्थ होता है, जो अक्सर आदिवासी जुड़ाव को दर्शाते हैं, जिससे ये उपभोक्ताओं के लिए एक भावनात्मक और सार्थक विकल्प बन जाते हैं।
मॉडर्न ऐडप्टेशन
अगर मॉडर्न ऐडप्टेशन की बात करें, तो आधुनिक वार्डरोब के लिए अपनाया जा रहा है, जहां कपड़ों को नए और समकालीन तरीकों से स्टाइल किया जा रहा है, ताकि अनोखा और एक्सप्रेसिव लुक तैयार किया जा सके। यह बड़े पैमाने पर उत्पादित कपड़ों की बजाय व्यक्तिगत और सार्थक कपड़ों की तलाश करने के व्यापक फैशन ट्रेंड के साथ मेल खाता है।
तरह-तरह की ज्वेलरीज, तरह-तरह के राज्यों से

मेघालय की काफी लोकप्रिय ज्वेलरीज में से एक होती हैं ट्राइबल ज्वेलरीज। इन मनमोहक मोतियों और तनों को एक साथ पिरोकर कंगन, गहने, बेल्ट, झुमके और हार बनाए जाते हैं, जिन्हें विशेष अवसरों पर और कुछ तो रोजाना पहना जाता है। गौरतलब है कि 'लहू' नृत्य के दौरान महिलाएं सिर पर एक टोपी पहनती हैं, जो बेहद खूबसूरत लगती हैं। बस्तर की बात करें, तो बस्तर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध जनजातीय क्षेत्र है और यह एक रुपये के सिक्कों का उपयोग करके आकर्षक हार बनाने के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय है, जो पूरे देश में लोकप्रिय हैं। इनके अलावा, वे कांच, चांदी, लकड़ी, मोर पंख और अन्य अनोखी धातुओं का उपयोग घास, प्राकृतिक मोतियों और जंगली फूलों के साथ मिलकर हार, टोपी, झुमके बनाने के लिए भी करते हैं। राजस्थान में बीड्स इस्तेमाल किये जाते हैं। अरुणाचल प्रदेश में पंखों का इस्तेमाल अधिक होता है। वहीं महाराष्ट्र की ज्वेलरी में शानदार तरीके से सिल्वर, गोल्ड और अल्युमिनम का इस्तेमाल होता है। कर्नाटक में सिल्वर और कॉपर के सिक्के का इस्तेमाल होता है। वहीं हिमाचल प्रदेश के चंबा, कांगड़ा, मंडी और कुल्लू की जनजातियां पायल, लोहे की चूड़ियां, हंसली नामक कॉलर जैसे आभूषण और कच नामक चांदी से बने चोक पहनती हैं, जिनके साथ आकर्षक सजावटी खंजर होते हैं, और वे अपने क्षेत्रीय त्योहारों के दौरान इनका प्रदर्शन करती हैं।