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फैशन

फ़ैशन सस्टैनबिलिटी को अपना कर भी बन सकती हैं स्टाइलिश

प्रिया श्रीवास्तव |  मार्च 05, 2022

फ़ैशन का मतलब है, हर दिन नयापन. कुछ नए एक्स्पेरिमेंट. लेकिन एक्स्पेरिमेंट के चक्कर में, पर्यावरण का क्या? फ़ैशन की दुनिया से निकली गंदगी व कचरा, पर्यावरण के लिए कई मायनों में हानिकारक साबित होता है. कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि एविएशन इंडस्ट्री से अधिक ग्रीन हाउस गैसेस टेक्स्टाइल इंडस्ट्री से प्रोड्यूस हो रही हैं. लेकिन अब फ़ैशन की दुनिया के धुरंधर भी सजग हो गए हैं और वे अपनी स्टाइलिंग के साथ-साथ पर्यावरण से खिलवाड़ न करने का प्रण ले रहे हैं. अब वे अपने मॉडल्स, इन्फ़्लूएंसर्स और सेलेब्स को भी इस बात के लिए तैयार कर रहे हैं कि वे पब्लिक फ़िगर होते हुए, वे न सिर्फ़ लोगों से गुज़ारिश करें कि एक ही ड्रेस को नई तरह से स्टाइल करके पहनने में इसमें कोई ख़राबी नहीं है, बल्कि ख़ुद भी इस बात को फ़ॉलो करें.. किसी फ़ैशन पुलिस को अब इस बात पर पोस्टमार्टम नहीं करना चाहिए कि किसी सेलेब ने अपने कपड़े रिपीट किए हैं, क्योंकि अब पर्यावरण को कम नुक़सान पहुंचाने के लिए, रीसाइकल और रीयूज़ का फ़ंडा अपनाया जा रहा है. तापसी पन्नू ने तो एक ही टॉप पहनकर अपने लुक की 25 तरह से स्टाइलिंग की थी. फ़ैशन सस्टैनबिलिटी यानी पर्यावरण फ्रेंडली फ़ैशन के क्रेज़ को बरक़रार रखना क्यों ज़रूरी है. आइए जानें इसके बारे में विस्तार से.

फ़ैब्रिक वेस्ट से होता है नुक़सान 

एक्सपेरिमेंट होंगे तो ज़ाहिर है, किसी न किसी का नुक़सान तो होगा. और फ़ैशन की दुनिया की वजह से ये नुक़सान हमारी धरती, हमारा पर्यावरण झेलता है. लम्बे समय से फ़ैशन डिज़ाइनिंग के क्षेत्र से जुड़ीं फ़ैशन डिज़ाइनर तनिका शेट्टी बताती हैं कि फ़ैशन की दुनिया में हमारे लिए हर दिन चैलेंज होता है कि हम कैसे नयापन लाएं और इस वजह से हम लगातार फ़ैब्रिक्स में और बाक़ी चीज़ों में एक्स्पेरिमेंट करते हैं. ज़ाहिर  है, इससे काफ़ी वेस्ट या कचरा निकलता है और ये कचरा अगर रीसाइकल न हो तो पर्यावरण को बहुत अधिक नुक़सान पहुंचाता है. इसलिए विदेशों में तो काफ़ी  समय से फ़ैशन सस्टैनबिलिटी पर काम हो रहा है. भारत में पिछले दो तीन सालों से कई फ़ैशन डिज़ाइनर ने इस तरफ़ रुख किया है.

सेलेब्स हैं तो क्या? रिपीट करने में कोई हर्ज नहीं है 

सुपर 30, जर्सी, तूफ़ान, धमाका जैसी कई फ़िल्मों में अभिनय कर चुकीं  मृणाल ठाकुर कहती हैं कि वे इस फ़ैशन पर बहुत यक़ीन करती हैं. उन्हें इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि उनके बारे में लोग क्या कहेंगे, वह अपने उन बूट्स को भी अभी पहन लेती हैं, जो उनके पास कॉलेज के दिनों से थे. एक ही डेनिम जींस पर वह कई टॉप बदल कर पहन लेती हैं. वह हर दिन कपड़े ख़रीदने में यक़ीन नहीं रखती हैं. वह कहती हैं कि पब्लिक फ़िगर होने की वजह से हमारी एक ज़िम्मेदारी भी है कि हम पर्यावरण को कम से कम नुक़सान पहुंचाएं. इसलिए वह कपड़ों पर नहीं, बल्कि स्टाइलिंग पर ध्यान देती हैं.

हैंड मेड काम की डिमांड 

कई डिज़ाइनर इस बात की हामी भरते हैं कि टिकाऊ फ़ैशन को बरक़रार रखने के लिए, हमें हैंडलूम और अपनी मेड इन इंडिया चीज़ों को बढ़ावा देना होगा, इससे स्थानीय कलाकारों को भी फ़ायदा मिलेगा. साथ ही पर्यावरण को भी बेहतर रखने में आसानी होगी. 

मशहूर फ़ैशन डिज़ाइनर गौरांग शाह फ़ैशन सस्टैनबिलिटी की अगुवाई की बात करते हुए कहते हैं कि वे इन दिनों ऐसी डिज़ाइनिंग स्टाइल्स पर फ़ोकस कर रहे हैं, जो सस्टैनबल हों. जिसमें कचरा कम हो. हम लोग इन दिनों ऐसे ही फ़ैशन को प्रोमोट कर रहे हैं. हाथ से बनी चीज़ों  को बढ़ावा दे रहे हैं और लगातार ऐसी चीज़ों  की डिमांड भी बढ़ रही है, क्योंकि ऐसे फ़ैब्रिक और वर्क आपकी स्किन को भी कोई नुक़सान नहीं पहुंचाते हैं.  हैंडलूम, फ़ैशन में एक ऐसा क्षेत्र है जहां आपको हर दिन डिज़ाइन को लेकर जो कॉम्पटिशन है, उसका सामना नहीं करना पड़ता. यह सदाबाहर फ़ैशन में से एक माना जाता है. किसी भी फ़ैशन की सस्टैनबिलिटी इसी बात पर निर्भर करती है कि ग्राहक उसे किस रूप में अपनी डे टू डे लाइफ़ में अपनाते हैं. ख़ासतौर से वेडिंग सीज़न और फ़ेस्टिव सीज़न पर यह बहुत निर्भर करता है. तो अच्छी बात है कि पिछले कुछ सालों से लोग भी इसे लेकर सजग हुए हैं और ऐसे ही एलिमेंट्स की वे डिमांड कर रहे हैं, जो सस्टैनबल हो. हैंडलूम की डिमांड भारत और विदेश दोनों ही मार्केट में तेज़ी से बढ़ी है.

कपड़ों को करें रीयूज़ 

ऑनलाइन शॉपिंग ने हमें एक बुरी लत लगा दी है कि हम दिनभर सिर्फ़ नए कपड़े ख़रीदने के लिए सर्च करते रहते हैं. ऐसे में शायद ही आप इस बात से अवगत हों कि आप जो जींस पहनते हैं, उसे बनाने में 6800 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है. इन विषयों के जानकारों का मानना है कि 2050 तक कई लैंडफ़िल्स 150 मिलियन टन क्लोदिंग वेस्ट के कारण बंद हो जाएंगे. इसलिए ज़रूरी है कि हम अभी से इसे लेकर सचेत हों. ऐसी कई चीज़ें हैं, जिसे हम काफ़ी बार रीयूज़ कर सकते हैं. जैसे डेनिम जैकेट्स, डेनिम जींस, क्रॉप टॉप्स, बेल्ट ऐसी चीज़ों कीआसानी से कई अंदाज़ में स्टाइलिंग हो सकती है. हर बार, हर ओकेज़न में कपड़े ख़रीदने ज़रूरी नहीं हैं.

वोकल फॉर लोकल 

इस समस्या को कम करने के लिए फ़ैंसी चीज़ों की तरफ़ प्रभावित होने की बजाय, स्थानीय लोगों के काम को भी बढ़ावा देना चाहिए. ये स्थानीय आर्टिस्ट भी फ़ैशन के साथ क़दम ताल कर पाएं, इसके लिए ज़रूरी है कि उनके लिए वर्कशॉप्स हों. लोक संस्कृति व पारम्परिक परिधानों को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय आर्टिस्ट और उनके काम को प्रोमोट किया जाए. उनके द्वारा बनाए गए शर्ट्स, टी शर्ट्स, हैट्स और यहां तक कि वेडिंग ड्रेसेस भी प्रोमोट किए जाए तो इससे भी पर्यावरण की बेहतरी  हो सकती है.

कपड़े ख़रीदने से पहले उसके लेबल को देखें 

इन दिनों से कई फ़ैशन डिज़ाइनर अपने लेबल पर गर्व से फ़ैशन सस्टैनबिलिटी की बात का प्रचार कर रहे हैं. आप भी जब कपड़ें ख़रीदें तो वैसे ही मटिरीयल्स लेने की कोशिश करें, जो कि  हानिकारक केमिकल्स से फ्री हों, जिनमें डाई का प्रयोग न किया गया हो.

रफ़ू करके देखें ज़िंदगी नई सी लगेगी 

कई बार आपके कपड़ों में छोटा सा कट आ जाता है तो आप उसे फ़ेंकने के बारे में सोचने लगते हैं. पर ऐसा न करें. नए कपड़ों में पैसे लगाने की बजाय उन्हीं कपड़ों को रफ़ू कर लें या उकी मरम्मत करवा लें, इससे पर्यावरण को नुक़सान भी नहीं पहुंचेगा और रफ़ू या कपड़े की मरम्मत करने वाले कारीगरों को काम भी मिलेगा. 

 

 

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