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होम / एन्गेज / संस्कृति / पॉप-कल्चर

वर्ल्ड मिल्क डे : दूध की सादगी में बसा है जीवन का हर रंग, न छल, न कपट

प्राची |  जून 01, 2023

क्या आपने कभी सोचा है कि अगर दूध न होता तो क्या हो, न बनती सेहतमंद दही, न बनता पौष्टिक पनीर और हड्डियों को मजबूत करने के लिए दूध के बिना कैसे मिलता बचपन में प्रोटीन। दूध का महत्व हमारे जीवन में क्या है, यह समझने के लिए इतना ही काफी है कि जन्म के बाद बच्चे के मुंह में मां के दूध के जरिए पहला निवाला पहुंचता है। 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस के मौके पर हम यह बताने जा रहे हैं कि कैसे दूध न केवल हमारे खान-पान का अहम हिस्सा है, बल्कि वह जीवन की हर संस्कृति से जुड़ा हुआ। आइए जानते हैं विस्तार से।

मां के दूध से बड़ा कोई आहार नहीं

जीवन में कदम रखने के बाद से ही बच्चे के लिए सबसे जरूरी और अहम मां का दूध माना जाता है। आर्युर्वेद से लेकर बड़े वैज्ञानिक तक, हर किसी का मानना है कि मां का दूध बच्चे की सेहत के लिए सबसे अहम आहार है। चिकित्सकों का कहना है कि जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध बच्चे को पिलाना जरूरी है, साथ ही यह शिशु का मौलिक अधिकार भी है। कहावत है कि मां के दूध से बड़ा कोई दूसरा आहार इस धरती पर मौजूद नहीं है, तभी तो बच्चे की मानसिक और शारीरिक वृद्धि प्रबल तरीके से होती है,जो कि मां के दूध पर निर्भर रहता है।

पौधों की दुनिया में दूध बना जीवन रस

दूध जैसा पर्दाथ जीवन के तौर पर पेड़ और पत्तों से भी जुड़ा हुआ है, क्या आपने कभी गौर किया है कि बचपन में जब भी किसी पत्ते को उसके जीवन रूपी पेड़ से अलग किया जाता है, तो दूध जैसा चिपचिपा पदार्थ टूटे हुए पत्ते पर दिखाई देता है। इसे लेकर माना गया है कि दूध जैसा दिखने वाला चिपचिपा पदार्थ पेड़ और पौधों के लिए जीवन रस होता है। मुख्यतौर पर बरगद, दूधिया, चीकू,आम,कटहल और नीम के पेड़ों से दूध जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि 20 हजार से अधिक पौधों की प्रजातियों के पत्तों या तने के ऊतक जब फटते हैं, तो उनसे दूध जैसा चिपचिपा पर्दाथ निकलता है। आप इसे इस तरह मान सकते हैं कि हाथ के कटने पर शरीर से खून निकलना। ठीक इसी तरह पौधों और पत्तों से दूध निकलता है। पौधों में से निकलने वाले इस दूध को लेटैक्स कहते हैं। इसमें कई रसायनों का मिश्रण होता है। यह भी जान लें कि दूध जैसे निकलने वाला तरल पदार्थ कई तरह से मनुष्यों के काम भी आते हैं। इससे रबर और कई तरह के रसायन बनते हैं।

गाय और बछड़े के बीच दूध बना ममता की बोली

प्रकृति के सबसे मनमोहक दृश्य में से एक है, गाय का बछड़े से नाता, वो भी तब खासतौर पर दिखाई देता है, जब बछड़ा अपनी मां का दूध पी रहा होता है। यह ठीक उसी तरह है, जिस तरह एक जन्मा बच्चा अपनी मां का दूध पीता है। दूध से जुड़ी प्रकृति की यह देन अद्भुत है। यह प्रतीक है कि बच्चा चाहे इंसान का हो या फिर किसी पशु का, हर किसी को मां के दूध के तौर पर प्यार और दुलार की जरूरत होती है। पशु जहां अपने प्यार किसी भाषा में जाहिर नहीं कर पाते, वहीं गाय और उसके बछड़े के बीच दूध के जरिए ही ममता का प्रवाह होता है।

प्रकृति की गोद में दूध की गंगा 

दूध सागर का भी जिक्र आज के दिन प्रमुख होता जाता है, जहां पर प्रकृति की गोद में दूध की गंगा बहती हुई दिखाई देती है। आप खुद इसका अलौकिक नजारा कर्नाटक और गोवा की सीमा पर देख सकते हैं। इसे दूध सागर कहते हैं। दूर से देखने पर ऐसा मालूम होता है कि किसी ने दूध को आसमान से धरती की तरफ बहा दिया है। बताया जाता है कि दूधसागर भारत के सबसे ऊंचे झरनों में से एक है। इसकी ऊंचाई 310 मीटर है। दुग्ध दिवस के मौके पर प्रकृति की खूबसूरती में लिप्त इस दूध के झरने का वर्णन जरूरी है।




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