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‘गुल्लक’ के भी रूप बदलते हैं : भारतीय संस्कृति में सेविंग्स के बदलते दौर की एक झलक

शिखा शर्मा |  मई 07, 2025

‘सेविंग्स करनी चाहिए, क्या पता कल क्या हो’- मां ने कई बार यह पंक्ति आपके सामने दोहराई होगी और सच में ठोकर खाए बिना आपने इस पंक्ति को आपने कभी गंभीरता से नहीं लिया होगा। यही कारण हैं कि बचपन में हमें ‘गुल्लक’ तोहफे के रूप में खूब मिला करते थे। बचपन से ही सेविंग्स यानी बचत का बीज हमारे अंदर बोया जाता था और न जाने कैसे-कैसे तरीकों से घर में सेविंग्स की जाती थी। कभी कपड़े धोने वाले  को छुट्टे पैसे देने हो, तो मां अपने आंचल से चिल्लर निकाल देती। कभी दादी पुराने बक्से में रखे छोटे से पर्स से कुछ पैसे निकाल कर हम पर वार देती। उस जमाने की घरेलू सेविंग्स एक तरफ है और फिर आज की जनरेशन है जो सेविंग्स स्मार्ट तरीके से करती है, जैसे बैंकिंग सुविधाओं का लाभ उठाकर, शेयर्स खरीदकर और गोल्ड इंवेस्टमेंट  भी सालों से भारत के सेविंग्स कल्चर से जुड़ा रहा है, जो आज भी प्रचलित है। सेविंग्स हर दौर में, तरह-तरह से की जाती रही है, बस ‘गुल्लक’ के रूप बदलते चले गए। आइए जानते हैं सालों से बदलता भारत का ‘गुल्लक’ कल्चर।

भारत में सेविंग्स का कल्चर लगभग हर दशक में बदलता नजर आया है। ऐसा अवधारणा पिछली पीढ़ी की तुलना में आज की जनरेशन ज्यादा खर्चीली है। लेकिन, वे अच्छी तरह जानती हैं कि सेविंग्स करना भी काफी जरूरी है, इसलिए वो सेविंग्स भी अपने तरीके से करती है। इस बदलाव का प्रमुख कारण बेहतर निवेश के अवसर, ऋण और बैंकिंग सुविधाएं हैं।

इतिहास में झांकें, तो भारत की बचत करने की क्षमता के कई तथ्य सामने आ सकते हैं। हालांकि, 200 साल के 'ब्रिटिश राज' ने देश की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ दिया था और भारत की संपत्ति को समाप्त कर दिया। इसलिए 1950 के बाद से युवा वर्ग सेविंग्स पर खासा ध्यान देने लगे हैं। आजादी के बाद देश की आय इतिहास में सबसे कम थी, जिसमें 87 प्रतिशत बचत घर से या घरेलू काम से आता था। यह सिलसिला कुछ दशकों तक चलता रहा। इसके बाद, लोगों ने अपनी बचत का अधिकांश हिस्सा सोना खरीदने में लगाया।

बाद में, मिलेनियल्स या जिसे आज के लोग जनरेशन वाई (Generation Y)कहते हैं, उन्होंने अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया। उन्होंने धन की खपत से बचत को धीरे-धीरे बदल दिया। उनके सामने कई तरह के गुल्लक आ गए, जिससे उन्हें काफी लाभ भी हुआ।

लाइफ इंश्योरेंस

1956 में, सरकार के द्वारा LIC बनाने के लिए सभी 245 बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। 1970 के दशक तक, जीवन बीमा भारत के तकरीबन हर घर तक पहुंच गया था। "एलआईसी करा लो" अभी भी मध्यम वर्ग के घरों में सुनी जाने वाली कॉमन सलाह है, खास कर  तब, जब घर के युवा वर्ग कमाने लग जाएं। सरकार ने अप्रैल 2000 में बीमा के इस बाजार को प्राइवेट सेक्टर्स के लिए खोल दिया। हालांकि, समय चलते-चलते आज कई धोखाधड़ी के केस सामने आते हैं। लेकिन आज से 10 से 12 साल पहले तक हर घर का गुल्लक ‘लाइफ इंश्योरेंस’ ही था, जिसे जरूरत पड़ने पर फोड़ दिया जाता था और जमा की गई राशि का इस्तेमाल किया जाता था।

म्यूचुअल फंड

यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई) ने जब सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं, जैसे बैंकों और बीमा कंपनियों को 1987 में म्यूचुअल फंड कारोबार में प्रवेश करने की अनुमति दी। लेकिन वास्तविक परिवर्तन साल 1993 में शुरू हुआ जब प्प्राइवेट सेक्टर्स को भी इसमें अनुमति मिली। साल 2001 में यूटीआई ने सेबी के म्यूचुअल फंड नियमों का पालन करने के लिए लोगों को प्रेरित किया। साल 2006 से 2016 तक, सेबी ने इंडस्ट्री को इन्वेस्टर के लिए बहुत आसान बना दिया। साल 2017 तक लोग सिस्टमेटिक इंवेस्टमेंट प्लान्स (एसआईपी) के माध्यम से एक महीने में इक्विटी फंड में 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कर रहे थे। गुल्लक ने आज म्यूचुअल फंड का आकार ले लिया है और देश भर में यह गुल्लक लोगों के स्मार्ट फोन तक पहुंच गया है।

पेंशन

लेबर मिनिस्ट्री ने एम्प्लोयी प्रोविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) की शुरुआत की जो काम करने वाले हर एम्प्लोयी के वेतन का एक हिस्सा होगा। पेंशन भी बीमा इंडस्ट्री और म्युचुअल फंड इंडस्ट्री द्वारा निर्धारित है। पेंशन की कई स्कीम्स आपको प्राइवेट म्युचुअल फंड कंपनीज की तरफ से भी मिलती है। जिसे गुल्लक समझकर लोग अपन पैसे जमा करते हैं और एक तय उम्र के बाद इसका लाभ उठाते हैं। सरकारी नौकरी करने वालों के लिए यह काफी आसान प्रक्रिया रही है लेकिन अब इस गुल्लक को हर बड़ी-छोटी कम्पनी तक पहुंचा दिया गया है, जिसका पूरा-पूरा लाभ कंपनी के कर्मचारी उठा सकते हैं।

इस बीच इकोनॉमिक सर्वे 2022 ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारतीय कैपिटल मार्केट में अधिक पैसा खर्च कर रहे हैं। इक्विटी कैश सेगमेंट में इंवेटर्स की वृद्धि हुई है और कुल कारोबार में निवेशकों की हिस्सेदारी अप्रैल-अक्टूबर 2021 की अवधि में 39% से बढ़कर 45% हो गई है। भारत में सत्तर साल से गुल्लक के बदलते किरदार ने बाजार में बड़े बदलाव देखे हैं। अगले 10 वर्षों में ये गुल्लक और क्या-क्या अवतार लेता है यह देखने लायक होगा।

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