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होम / एन्गेज / संस्कृति / पॉप-कल्चर

जर्मनी में अब भी लोग कहते हैं 'चिट्ठी आयी है आई है चिट्ठी आई है'

रजनी गुप्ता |  अक्टूबर 20, 2024

आज के डिजिटल युग में कागजी पत्रों का व्यवहार लगभग खत्म-सा हो चुका है, किंतु जर्मनी एक ऐसा देश हैं जिन्होंने इस परंपरा का दामन अब भी थामें रखा है। आइए जानते हैं विस्तार से। 

जर्मनी के कागजी नियम 

जर्मनी में ऐसे कानून और नियम हैं, जो इस बात को पुख्ता करते हैं कि कानूनी लेन-देन यानी स्क्रिफ्टलिच लिखित रूप में कागज पर होनी चाहिए और उस पर स्याही के जरिए हाथों से सिग्नेचर किए गए हों। सिर्फ यही नहीं कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालने और उन्हें रखते समय जिन पत्रों का आदान-प्रदान करती हैं, वे भी इसी तरह कागजी पत्रों के जरिए अपना व्यवहार करती हैं। इसके साथ इनके नियम और जटिल हैं, जिसके अंतर्गत पत्र के बाहर लिखा गया व्यक्ति का आधिकारिक रजिस्टर्ड पता भी हाथों से लिखा होना चाहिए। गौरतलब है कि यह नियम 20वीं शताब्दी में ई-मेल से पहले बनाए गए थे, जिनका पालन अब भी सख्ती से किया जा रहा है। हालांकि समय के साथ चीजें धीरे-धीरे बदल रही हैं, किंतु अब भी कई कानून हैं, जो इस बात का ख्याल रखते हैं कि अनुबंधों पर डिजिटल सिग्नेचर की बजाय हाथों से किए गए सिग्नेचर हों।  

क्यों है कागजी पत्र की प्रधानता 

जर्मनी में कानूनी प्रक्रिया और कंपनियों के अलावा व्यक्तिगत तौर पर भी एक-दूसरे का हाल-चाल पत्रों द्वारा लेने की परंपरा है। हालांकि इसमें कितना समय और धैर्य की जरूरत पड़ती है, इससे आप भी वाकीफ होंगी, लेकिन उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल, यह उनकी दिनचर्या में इस तरह घुल-मिल चुका है कि उन्हें कहीं भी नहीं खटकता। दिलचस्प बात यह है कि अगर आप किसी संस्था से ई-मेल के जरिए संपर्क साधने की कोशिश भी करती हैं, तो उनका जवाब आपको डाक के जरिए ही आता है। हालांकि इस परंपरा को सहेजे रखने की जर्मनी की अपनी निति है। उनका मानना है कि ई-मेल की बजाय पेपर मेल ज्यादा फायदेमंद इसलिए हैं, क्योंकि एक फाइल पर दर्ज डाक पते जस के तस रहते हैं, वहीं ई-मेल पते बदल जाते हैं। इसके अलावा उन ई-मेल को सहेजना मुश्किल काम हैं, जिन्हें किसी कारणवश भेजा नहीं जा सका। साथ ही उनके लिए भी ई-मेल मुसीबत जैसा है, जो उन्हें सहेज नहीं पाते या ई-मेल पता अपडेट नहीं कर पाते। जर्मनी में आज भी ऐसे लोगों की संख्या काफी है, जिनके पास ई-मेल ही नहीं हैं। 

कागजी पत्र और समस्याएं 

आज के डिजिटल युग में जर्मनी की यह परंपरा आपको थोड़ी आकर्षक लग सकती है, किंतु कुछ लोगों के अनुसार ई-मेल की तुलना में पेपर मेल को अधिक गंभीरता से लिया जाना काफी खतरनाक है। उदाहरण स्वरूप यदि किसी बैंक खाते को ट्रांसफर करने के लिए आप अपने हाथों से सिग्नेचर किया हुआ एक पत्र भेजते हैं, तो इसकी आसानी से नकल की जा सकती है, क्योंकि बैंकवाले नहीं जानते हैं कि ये पत्र आपने ही भेजा है या किसी और ने। वहीं पर्सनल ई-मेल तक पहुंचकर किसी तरह की धोखाधड़ी का जोखिम, कागजी पत्रों के मुकाबले काफी कम होता है। बैंकिंग कागजात के अलावा पेपर मेल के जरिए हेल्थ इंश्योरंस और क्रेडिट कार्ड पासवर्ड के साथ अन्य जरूरी कागजात प्राप्त करना भी काफी जोखिम भरा होता है, क्योंकि आप नहीं जानती कि रास्ते में यह किन-किन हाथों से होकर गुजरा है। साथ ही ये कागजात जिन्हें भेजा गया है, उन्हें मिले भी हैं या नहीं, इसकी कोई भी गारंटी नहीं होती। सिर्फ यही नहीं कई कंपनियां तो इन पत्रों की जिम्मेदारी भी नहीं लेती, ऐसे में यह कितने सुरक्षित होंगे इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। 

जर्मन नौकरशाही और रूढ़िवाद

अगर ये कहें तो गलत नहीं होगा कि ई-मेल की तुलना में कागजी पत्रों को अधिक वैध बनाने में रूढ़िवादिता के साथ जर्मन नौकरशाही भी जिम्मेदार है। यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में  में अब भी पांच में से चार कंपनियां, फैक्स मशीनों के साथ कागज और रबर स्टैम्प पर निर्भर है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में संसद के निर्देशों के बाद इसमें थोड़ी कमी आई है, क्योंकि विशेष रूप से संसदीय बजट समिति ने अपने सांसदों को निर्देश दिया है कि वे अपने अधीन आनेवाली कार्यप्रणालियों से भरोसेमंद फैक्स मशीनों को विदा कर ऑफिशियल बातचीत के लिए ई-मेल का सहारा लें। गौरतलब है कि फैक्स मशीनों से कोई संदेश भेजने के दौरान जब तक उस पर उक्त अधिकारी के हस्ताक्षर न हो, वे मान्य नहीं होते, लेकिन ई-मेल में ये सुविधा नहीं है। फिर भी जर्मनी के गवर्निंग सदस्य ई-मेल को बातचीत का कानूनी स्वरूप देने की कोशिश में लगे हैं। हालांकि डिजिटलीकरण की बात आते ही जर्मनी के लोग हजार बहाने बनाकर पुरानी परंपराओं का गुणगान करने लगते हैं, ऐसे में दूसरे देशों से वहां बसे कुछ लोगों के लिए कष्टप्रद भी हो जाता है। 

 

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