गर्मी की छुट्टियों में या किसी भी छुट्टी में नानी-दादी के घर जाना और फिर वहां खूब खेलना, बच्चों के लिए यह उस संस्कृति का हिस्सा है, जिससे उन्हें कभी अलग नहीं किया जाना चाहिए। आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।
बदली है सोच

कभी गर्मी की छुट्टियों या लंबी छुट्टियों का इंतजार बस इसलिए होता था कि गांव जायेंगे और वहां नानी-दादी और गली-मोहल्ले के बच्चों के साथ खूब होगी धमाचौकड़ी, लेकिन अब छुट्टियां भी सोशल मीडिया वाली हो गई हैं, लोग वेकेशन पर किसी डेस्टिनेशन जाना चाहते हैं, गांव घर पर नहीं, तो बच्चों को अब घर में रह कर अपने मोहल्ले या बिल्डिंग के बच्चों के साथ खेलना आउट डेटेड लगता है। अब उन्हें जब तक किसी ऐसी जगह ट्रिप नहीं ले जाया जाए, जिसे वह हॉलीडे का नाम दे सकें और दोस्तों को बता सकें, तब तक वे गर्मी की छुट्टियों को गर्मी की छुट्टियां नहीं मानेंगे, लेकिन यह बहुत हद तक पेरेंट्स पर निर्भर करता है कि वह गर्मी की छुट्टी की परंपरा को किस तरह बरकरार रखने की कोशिश करते हैं और उन्हें इस संस्कृति से कैसे रूबरू बना कर रखते हैं और उनका राब्ता करवाते हैं।
सोशल मीडिया के बहकावे में न आएं

बच्चों में यह सोच एक दिन में नहीं बदलेगी, यह बात आपको उनके जेहन में शुरुआती दौर से बिठाना होगा कि अपनी जड़ों को भूलना सही नहीं है। इसलिए उन्हें हमेशा सोशल मीडिया से दूर रखें, उन्हें यह साबित करने की कोशिश न करें कि वे अगर सोशल मीडिया से दूर रहेंगे, तो उन्हें ऑउटडेटेड समझा जायेगा, इसके लिए तो सबसे पहले यह जरूरी है कि आप खुद जुड़े रहें अपनी जड़ों से। सोशल मीडिया पर एक बड़ा दबाव बनता है कि हम दूसरों को देख कर खुद भी परेशान होते हैं कि वे इतनी शानदार जिंदगी जी रहे हैं, तो हम क्यों नहीं, फिर वे बच्चों को भी ठीक वैसी ही सीख देने लगते हैं, जबकि जरूरी इस बात को समझना है कि किसी भी छुट्टी का मतलब केवल बड़े पैकेज वाले ट्रिप नहीं, बल्कि उस जगह की सभ्यता और संस्कृति को समझना है। और इसके लिए बेहद जरूरी है कि बच्चों को उनकी छुट्टियों के दौरान ऐसी चीजों से अवगत कराएं कि वे कुछ चीजों को खुद की जिंदगी में जबरदस्ती का नहीं, बल्कि स्वाभाविक रूप से यह उनकी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहिए।
अपने पैतृक घर एक बार जरूर जाएं बच्चों के साथ

अपने बच्चों को अपने पैतृक घर पर छुट्टियों में जरूर लेकर जाएं। इससे उन्हें वहां की संस्कृति को समझने और जुड़ने का मौका मिलेगा और वे वहां के लोगों से जुड़ पाएंगे, उन्हें अपने ग्रैंड पेरेंट्स के साथ समय बिताने का मौका दें, उन्हें कहानियां सुनने का मौका दें, उन्हें वहां के लोगों से घुलने-मिलने दें, अपने बचपन की दुनिया से रूबरू कराने की कोशिश करें और फिर आप खुद देखेंगे कि बच्चों में वह जुड़ाव आ रहा है और बच्चे खुद वहां जाना चाहेंगे। पुराने एल्बम भी दिखाएं।
गांव की रोमांचक दुनिया से रूबरू

शहर में रहते हुए कई बार मिट्टी में खेलना या मिट्टी से खेलना जैसी चीजें नहीं कर पाते हैं बच्चे, ऐसे में जब वे गांव-घर जाएं, तो उन्हें रोके-टोके नहीं, उन्हें गांव के रोमांच का हिस्सा बनने दें, उन्हें समझाएं कि किस तरह शहर के लोग महंगे फार्म हाउस में एक दिन बिताने के लिए लाखों खर्च करते हैं, जबकि वहीं खुशियां और रोमांच उन्हें फ्री में अपने गांव में देखने और एन्जॉय करने का मौका मिल रहा है, ताजा फल-सब्जियों और बाकी चीजों को खाने मिल रहा है। उन्हें आम तोड़ने, अमरूद तोड़ने, बाकी के फल वगैरह तोड़ना सिखाएं, उनके साथ गांव के खेल खेलें, वहां के लोगों से स्थानीय भाषा में बात करना सिखाएं। यह सब उन्हें उनकी संस्कृति के करीब लाएगी।
अपने घर में रहते हुए भी कर सकते हैं

मुमकिन है कि कुछ कारणवश आप अपने बच्चों को छुट्टियों में कहीं भी नहीं ले जा पा रही हैं, ऐसे में जाहिर है उन्हें गुस्सा आएगा और वे दूसरों को देख कर महसूस करेंगे कि उनके साथ चीटिंग हो गई है, तो आपको इसकी तैयारी पहले से करनी चाहिए कि वे सांस्कृतिक तरीके से कैसे और अधिक अपनी परंपराओं के करीब लाएं। हमें याद है, हमें कॉमिक्स की किताबें दी जाती थीं, जिसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करके हम पढ़ा करते थे, यह फिर से किया जा सकता है और उन यादों को जिया जा सकता है, इसका बहुत असर बच्चों की समझ पर होता है, फिर उन्हें दोस्तों के साथ अंत्याक्षरी खेलना, बाकी के गेम्स खेलना, आम तोड़ना या कौन कितने आम खा सकता है, कुछ ऐसे कॉम्पटीशन करना, गप्पे लड़ाना, कुछ गेम्स खेलना या घर पर ही टेंट लगा कर मस्ती करना, दोस्तों के साथ पिकनिक करना या साथ में कुछ इवेंट्स प्लान करना, गर्मी छुट्टी या लंबी छुट्टियों में ये कुछ चीजें हैं, जो कभी बदलनी नहीं चाहिए।