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संस्कृति

प्रेग्नेंसी को सेलिब्रेट करती है फिल्म 'वंडर वुमेन', जानिए प्रेग्नेंट महिला को क्यों देखनी चाहिए फिल्म

अनुप्रिया वर्मा |  नवंबर 21, 2022

एक महिला की जिंदगी में सबसे खास पल उस वक्त आता है, जब वह मां बनती हैं। ऐसे में दुनिया भर की नसीहतें, कई तरह के नुस्खे और जेहन में कई बातें चलती रहती हैं। उन 9 महीनों में मूड स्विंग से लेकर भावनात्मक रूप से भी एक महिला एक अलग सफर पर होती हैं। ऐसे बेहद आम से दिखने वाले विषय पर भी भला कभी कोई फिल्म बन सकती थी? लेकिन अंजलि मेनन ने एक ऐसी कहानी फिल्म ‘वंडर वुमेन’ के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की है, जिसमें छह गर्भवती महिला के बहाने हम महिलाओं की जिंदगी के कई आयाम को देखते हैं। आइए जानें, क्यों यह फिल्म हर महिला और खास कर वे महिलाएं, जो प्रेग्नेंसी की योजना बना रही हैं, उन्हें क्यों देखनी चाहिए। 

मदरहुड केवल एक मां का कर्तव्य नहीं है

इस फिल्म की सबसे खास बात जो आकर्षित करती है कि फिल्म पूरी तरह से महिलाओं को दृष्टिकोण में रखते हुए बनाई गई है, लेकिन फिल्म में भाषणबाजी नहीं है। एक जगह, जो सुमोना के नाम से जाना जाता है, वहां छह महिलाएं एकत्रित होती हैं और एक दूसरे की जिंदगी के बहाने काफी कुछ पहलू सामने आते हैं। फिल्म दर्शाती है कि मदरहुड की जिम्मेदारी केवल मां का कर्तव्य नहीं है, एक व्यस्त पुरुष होते हुए भी आपको अपनी पत्नी के साथ भरपूर सहयोग करना ही होगा। 

आपसी बहनापा को बढ़ावा देती है फिल्म 

फिल्म की शुरुआत में छह महिलाएं, जो अलग-अलग प्रांतों से हैं, भाषा भी एक नहीं है, लेकिन फिर भी किस तरह से एक दूसरे के सुख-दुःख को समझने की कोशिश करती हैं, किस तरह से वह अपनी बोरिंग, तानों से भरी एकरस जिंदगी में भी नयापन और सेलिब्रेशन लाने की कोशिश करती हैं, इसे भी बेहद खूबसूरती से दर्शाया गया है।

महिला अस्तित्व की बात

 फिल्म में महिलाओं के अस्तित्व को लेकर भी बात रखी गई है कि शादी के बाद किस तरह से अगर एक महिला सरनेम बदलती है तो उसकी पहचान उसके पति के ओहदे से ही हो जाती है, लेकिन किस तरह से इन छोटे मुद्दों पर भी अपनी मन की बात रखनी जरूरी है। 

समाज और एक महिला का मां बनना 

फिल्म की एक किरदार जो लगातार तीन मिसकैरेज के बाद भी मां बनने के लिए पूरी मशक्कत कर रही है, क्योंकि उसके पति को बच्चा चाहिए, लेकिन एक समय के बाद, उस पति में बदलाव कि उसके लिए अपनी पत्नी बच्चे से ज्यादा जरूरी है, इसे परिवर्तन को दर्शाया गया है। किसी महिला के लिए शादी के बाद, बच्चा पैदा करना किस तरह किसी टास्क की तरह समाज की तरफ से थोप दिया जाता है, इन बारीकियों को भी काफी खूबसूरती से दर्शाया है। 

सिंगल मदर का जश्न

 

फिल्म ने सिंगल मदर के जज्बे को भी सलाम किया है, किस तरह से एक महिला मजबूत इरादों के साथ एक बच्चे को जन्म दे सकती हैं, इसे बेहद खूबसूरती से फिल्म में दर्शाया गया है। इस फिल्म से सिंगल मदर को और हिम्मत मिलेगी।

पुरुषों को नीचा दिखाने की नहीं है कोशिश 

फिल्म की यह भी खासियत है कि फिल्म में पुरुषों को जबरन नीचे दिखाने की कोशिश नहीं है और न ही उन्हें बेवजह विलेन बनाने की कोशिश है, महिलाओं को महान बनाने के चक्कर में पुरुषों को गलत साबित करने की फिल्म में कोशिश नहीं की गई है, बल्कि किस तरह से दोनों साथ चल कर एक दूसरे का साथ दे सकते हैं और एक दूसरे के बीच बातचीत से किस तरह से परेशानियों को हल किया जा सकता है, इन बातों को फिल्म में स्पष्ट तरीके से दर्शाया गया है। 

*lead image credit : instagram

 

 

 

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