तेरे आने की जब खबर महके
तेरी खुशबू से सारा घर महके
नवाज़ देओबंदी ने बड़े ही खूबसूरत शब्दों में खुशबू के बारे में बखान किया है, निर्देशक सचिन ने फिल्म ‘अईय्या’ में खुशबू की खासियत को दर्शाया भी है। दरअसल, हम सबके जीवन में हम कई तरह की खुशबूओं से रूबरू होते हैं, यही वजह है कि किसी न किसी रूप में हमारी संस्कृति का यह अहम हिस्सा भी बन चुका है। तो आइए जानते हैं कि आखिर कैसे परफ्यूम हमारी नियमित जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है।
ऐसे शुरू हुई परफ्यूम की कहानी
दुनिया का पहला परफ्यूम या इत्र, मेसोपोटिया में बनाया गया था और इसे बनाने वालीं एक महिला ही रही हैं, जिनका नाम तापुत्ती है, उन्होंने तेल और फूल को मिलाकर पहला परफ्यूम बनाया था और यह 1200 ईसा पूर्व (बीसीई) के दौर की बात है। इतिहासकारों का मानना है कि इत्र बनाने की तकनीक बाद में फारसियों के हाथों में लगी। वहीं भारत में यह सिंधु घाटी सभ्यता से आया। हिंदू आयुर्वेद में इत्र का जिक्र पहली बार चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में मिलता है, दरअसल 7 वीं शताब्दी की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के कन्नौज में इत्र बनाने की परम्परा की शुरुआत हुई, यहां परफ्यूम बनाने का तरीका फारस (ईरान) से आया, खासियत यही रही है कि दुनिया भर में कन्नौज से ही इत्र बन कर जाता है, भारत में हैदराबाद इत्र के लिए काफी लोकप्रिय है। व्यवसाय की बात की जाए, तो 1190 में पेरिस में इसे बनाने की शुरुआत हुई और आधुनिक परफ्यूम की शुरुआत इसे ही माना जाता है।
मुगल और इत्र
मुगल दौर की बात करें, तो उन्होंने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इत्र का इस्तेमाल शुरू किया और इस इत्र में सबसे ज्यादा कस्तूरी और गुलाब का इस्तेमाल हुआ करता था, बाद में व्यापारी अरब के लोगों और फारसियों की मसलों, जड़ी-बूटी और कस्तूरी व्यापक रूप से पहुंचने लगी।
कन्नौज और इत्र की दुनिया
कम लोगों को ही इस बात की जानकारी है कि किसी दौर में कन्नौज सिर्फ एक शहर के रूप में नहीं, बल्कि उत्तर भारत के रूप में जाने जाते थे, जिसे 600 ईसवी के आसपास राजा हर्षवर्धन के अधीन कन्नौज राज्य कहा जाता है, यह भी दिलचस्प बात है कि किसी दौर में कुसुमपुरा यानी फूलों का शहर कहा जाता था। उल्लेखनीय है कि कन्नौज अपने लगभग दर्जन भर से भी ज्यादा सुगंधित तत्वों के लिए लोकप्रिय है, लेकिन मिट्टी के इत्र और बारिश के बाद गीली मिट्टी की सुगंध के रूप में जाने जाने वाले पदार्थ के लिए खासतौर से जाने जाते हैं। यहां की मिट्टी खुशबूदार होती है और इसलिए भी यहां इत्र बनाने का काम किया जाता है। खाड़ी देशों में इसकी सबसे अधिक मांग है। इतिहास में एक जिक्र यह भी है कि मुगल बेगम नूरजहां ने फ़ारसी कारीगरों को बुलवाया था और गुलाब के फूलों से बनने वाले एक खास प्रकार के इत्र को बनाया गया था। तब से लेकर आज के दौर में भी कन्नौज में उसी तरीके से इत्र का निर्माण होता आ रहा है। गौरतलब है कि अलीगढ़ के दशमक गुलाबों वाला इत्र दुनियाभर में काफी मशहूर है। आपको जान कर हैरानी होगी कि सबसे कीमती इत्र अदर उद है।
कैसे तैयार होता है इत्र
वर्तमान दौर में इत्र को भट्टियों पर बनाया जाता है, गुलाब, गेंदा, बेला या चमेली जैसी फूलों को ताम्बे के बड़े से बर्तन में डाल कर, फिर उसमें पानी भरकर उसे भट्टी पर चढ़ाया जाता है, फिर इस भट्ठी पर पानी को लगातार गर्म किया जाता है, जिससे निकलने वाली भाप पात्र में रखी फूलों की पंखुड़ियां गर्म करती हैं। फिर इन पंखुड़ियों को गर्म करके खुशबू या तेल निकाला जाता है, फिर इसे सुराही के आकार के बर्तन में इसे इकट्ठा किया जाता है और फिर भभका में इकट्ठा हुए तेल को अलग करके पैकिंग की जाती है। फिर इसे पूरे देश और विदेश में भेजा जाता है, यहां के इत्र दुबई और बाकी इलाकों में भी काफी लोकप्रिय रहे हैं।