हमारी परंपरा हमेशा अपनों से छोटों को प्यार दिखाने पर रही है, फिर चाहे वह शादी या त्योहारों का मौसम हो या फिर जब घर से छोटे बच्चे जा रहे हों, आइए जानें भारत में किस-किस तरह से यह प्यार दिखाया जाता है।
मिठाइयां और उपहार

अतिथिदेवो भव: के अनुसार मिठाइयां और उपहार देने की भी पारिवारिक परंपरा का ही एक तरीका होता है। दरअसल, गौर करें तो भारतीय संस्कृति ने हमेशा से ही दुनिया भर में होने वाले उत्सवों में मिठाइयों को एक अनिवार्य हिस्सा बनाया है। भारतीय संस्कृति में मिठाइयों से बढ़कर कुछ भी नहीं है। त्यौहार, शादी और गृह प्रवेश समारोह भी मिठाइयों के बिना अधूरे हैं। चाहे दिवाली की खुशियां हों या सफलता का जश्न या गृह प्रवेश समारोह या मिठाइयां समृद्धि, सद्भावना और खुशी का प्रतीक मानी जाती है, इसलिए उपहार स्वरूप खूब दी जाती है।
हाथ में देते हैं आशीर्वाद या शगुन का लिफाफा

यह ट्रेडिशन या परम्परा भारत में लगभग हर प्रांतों में होती है कि जब भी छोटे बच्चे बड़ों के पैर छूते हैं, फिर चाहे वह शादी में आये हों, छुट्टियों में घर आये हों या फिर किसी त्यौहार का मौका हो, जब छोटे बच्चे बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं, तो उन्हें प्यार से आशीर्वाद के रूप में कुछ पैसे या नकद देने की परम्परा है, कई बार सीधे हाथों में तो कई बार सुंदर लिफाफों में कैश बंद करके शगुन के रूप में दिया जाता है और इसे शगुन का लिफाफा कहा जाता है। ऐसा इसलिए भी किया जाता है कि भारतीय परम्परा में बच्चों या खुद से छोटों या अतिथियों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। अमूमन बड़े यही कहते हैं, बेटा या बेटी आओ ये लो, कुछ खरीद लेना और फिर छोटे बच्चे भी बड़ी खुशी-खुशी इसे स्वीकार करते हैं और एन्जॉय करते हैं कि उन्हें अपने बड़ों से आशीर्वाद मिला है।
एक रुपया शगुन का
अमूमन आपने देखा होगा कि किसी भी नेक काम में या शगुन में हमेशा एक रुपया जोड़ा जाता ही है, कई लिफाफों में भी एक रुपये लगे हुए आते हैं, ऐसे में उसे शगुन का एक रुपया कहा जाता है, यह देने वाले इसलिए देते हैं कि उस एक रुपये को लोन के रूप में दिया जाता है कि आपको उसे लौटाने के लिए वापस से ही मिलना होगा। एक रुपया अतिरिक्त जोड़ने का मतलब है कि आपके द्वारा दी गई शुभकामनाओं और आशीर्वाद का कोई मोल नहीं, बल्कि वह अतिरिक्त एक रुपया ऋण माना जाता है और यह कि आपको फिर से मिलना होगा। दरअसल, एक रुपया निरंतरता का प्रतीक है। एक बात और माना जाता है कि किसी भी चीज की शुरुआत 0 से जीरो यानी शून्य से कैसे हो सकती है, इसलिए भी उसमें एक रुपया जोड़ा जाता है। दरअसल, भारतीय 100, 200, 50 जैसी संख्याओं को स्थिर संख्याएं मानते हैं। इसका मतलब है कि वे घटेंगी या बढ़ेंगी नहीं या अधिक सटीक रूप से कहें तो वे बिना किसी प्रवृत्ति के हैं। जब आप इसमें एक जोड़ते हैं, तो यह एक बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है कि आपकी संख्या बढ़ेगी।
खोइछा

बिहार और उत्तर प्रदेश में लड़कियां जब अपने मायके से ससुराल वापस जाती हैं तो उन्हें गोद में खोएचा दिया है, उनकी आंचल में चावल, गुड़, हल्दी, दूब और सिंदूर बिंदी रखा जाता है, कई जगहों पर जीरा भी देते हैं। दरअसल, खोइछा एक रस्म होती है, जो विदाई के समय दी जाती है, खासकर जब कोई बेटी मायके से ससुराल जाती है या फिर किसी देवी-देवता को विदाई देते समय। यह फिर से उन्हें वापस बुलाने का एक निवेदन होता है। यह शुभता और समृद्धि के प्रतीक की परंपरा है। यह खोइछा विदाई के समय माता-पिता अपनी बेटी को देते हैं कि वह खुशी-खुशी नयी जिंदगी की शुरुआत करें। यह खोइछा देने से परिवार और समाज में रिश्तों को मजबूत करने का काम करता है, गौरतलब है कि नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को खोइछा भरकर विदाई की जाती है, क्योंकि उन्हें मायके आना होता है। कई जगह सोने चांदी की चीजें भी देते हैं। इसे भरने के लिए पूजा का स्थान ही चुना जाता है।
सिंदूर- चूड़ी

कई जगहों पर विदाई में लड़कियों और महिलाओं को सिंदूर और चूड़ी गिफ्ट की जाती है। महिलाएं हर तरह के फंक्शन में एक दूसरे को इसे गिफ्ट करती हैं, क्योंकि माना जाता है कि यह सुहाग का प्रतीक होता हो। मान्यताओं के अनुसार सिन्दूर को पार्वती और देवी सीता से भी जोड़ा जाता है।
ब्लाउज पीस

ब्लाउज पीस को भी भारत में तोहफे में देने की परंपरा रही है। खास अवसरों पर यह एक तरह का उपहार होता है, जो अक्सर दुल्हन या किसी महिला को दिया जाता है। इसे आमतौर पर साड़ी के साथ दिया जाता है, और इसका मतलब है कि यह एक विशेष और महत्वपूर्ण उपहार है, भारत में, साड़ी और ब्लॉउज को एक साथ पहना जाता है और ब्लाउज पीस को उपहार में देना एक पारंपरिक तरीका है जिससे साड़ी के साथ इसका संबंध दर्शाया जाता है, दरअसल, यह दर्शाता है कि यह उपहार केवल एक कपड़ा नहीं है, बल्कि एक पूरा ड्रेस है, कुछ लोग इसे शुभ संकेत भी मानते हैं कि जो व्यक्ति इसे दे रहा है वह उस व्यक्ति के लिए अच्छा सोचता है और उसकी बेहतरी की कामना करता है। अगर इतिहास की बात की जाये, तो प्राचीन समय में, लोग कपड़े को बहुत महत्व देते थे, क्योंकि इसे बनाना कठिन था और यह बहुत अच्छा लगता था। अगर गौर करें तो एशिया से यूरोप तक रेशम के कपड़े के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। भारत जैसे स्थानों पर कपड़े का इस्तेमाल न केवल कपड़ों के लिए बल्कि पैसे के लिए या दूसरे देशों से बात करने के लिए भी किया जाता था। पुराने समय में कपड़ा काफी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह दिखाता था कि कोई कितना अमीर या खास है। इसलिए इसका इस्तेमाल अक्सर उपहार लपेटने के लिए किया जाता था, फिर बाद में मध्यकालीन समय में, लोग उपहार के रूप में देने के लिए प्रतीकों और डिज़ाइनों के साथ बहुत ही शानदार कपड़े बनाते थे। अब लोग, कागज की बजाय उपहार लपेटने के लिए कपड़े का उपयोग करते हैं।
बच्चों को बर्तन

भारत में जब कभी बच्चे की बर्थ डे पार्टी या अन्नप्राशन संस्कार या जन्मोत्सव होता है, तब भी बच्चों को चांदी और स्टील के बर्तन तोहफे के रूप में दिए जाते हैं। दरअसल, सांस्कृतिक रूप में देखें तो बर्तन को शुभ माना जाता है और बच्चे के जीवन में खुशियां और समृद्धि लाने का इसे प्रतीक माना जाता है। तो वहीं बच्चों को बर्तन तोहफे में देना एक व्यावहारिक कदम भी हो सकता है, ताकि दैनिक रूप से बच्चे इसका उपयोग कर सकें। इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि बच्चे के जन्म पर बर्तन बजाने या थाली-चम्मच पीटने की परंपरा भी है। ऐसा माना जाता है कि इससे बच्चे को नकारात्मक ऊर्जा से बचाया जा सकता है और उसका मन शांत होता है। और इसे विस्तार से देखा जाये, तो कुछ लोग बच्चों को जन्म पर बर्तन देकर उनका स्वागत करते हैं और दर्शाते हैं कि बच्चे के आने से वे कितने खुश हैं।