ऐसा हो सकता है कि एक प्लेट रबड़ी में भी आपका मन भर सकता है, लेकिन पश्चिम बंगाल का एक खास गांव है, जहां कई किलो रबड़ी रोज बनती है और लोग बड़े चाव से इसे खाते हैं और इसकी तारीफ करते नहीं थकते हैं। इतना ही नहीं यह व्यवसाय अब महिला सशक्तिकरण का कारण बन गया है। कैसे। आइए जानें विस्तार में।
कहां है

पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के मध्य में स्थित है गंगपुर, इसे अब लोग रबडीग्राम के नाम से अधिक जानते हैं। जी हां, एक दौर में यहां आर्थिक रूप से कमाने के लिए कोई भी विकल्प स्थित नहीं थे, लेकिन अब यहां लोगों के जीवन में रबड़ी की मिठास घुल गई है, क्योंकि रबड़ी यहां के लोगों को आर्थिक रूप से स्ट्रांग बना रही हैं।
महिलाओं के लिए आय का स्रोत

खास बात यह है कि महिलाएं रबड़ी बनाने के काम में लगी हुई हैं और इसके माध्यम से जीविका कमा रही हैं। जी हां, यह परिवर्तन उन ग्रामीणों की कलात्मकता को दर्शाता है, जो रबड़ी बनाने में माहिर हैं। रबड़ी एक तरह की मिठाई है और यह गाढ़े, मीठे दूध से बनी एक डिश है, जिस पर मोटी मलाई लगी होती है। यहां एक दिन में कई किलो रबड़ी बन जाती है और लोग इसे शौक से खाने और खरीदने आते हैं। बता दें कि कोलकाता के 'होइचोई' (हलचल) से मात्र 39 किमी दूर स्थित यह गांव अपनी महिलाओं की कला-कुशलता के कारण प्रसिद्धि में आया है और जम कर इसकी खरीदारी लोग करते हैं और इसका स्वाद चखते हैं। गौरतलब है कि लगभग 35 साल पहले रबड़ी बनाने का काम पुरुषों से महिलाओं ने लिया और रबड़ी की बढ़ती मांग और पारिवारिक आय में वृद्धि की इसकी क्षमता को देखते हुए, गृहिणियों ने इस कला को अपनाया। खास बात यह है कि महिलाएं रबड़ी बनाने के लिए जुटने से पहले अपने घर के भी सारे काम निबटा लेती हैं। फिर वे इस काम से जुड़ती हैं। महिलाएं यहां रबड़ी बना कर देती हैं, फिर घर के पुरुष कोलकाता की मिठाई दुकानों में इसे बेच कर आते हैं।
कैसे आया चर्चे में

रबड़ीग्राम के उत्थान की बात करें, तो लगभग चार दशक पहले लगाया जा सकता है, जब कोलकाता के भवानीपुर में एक मिठाई की दुकान पर कुशल कन्फेक्शनरी हलवाई पन्नालाल बाल्टी ने यह महसूस किया कि उनके साथ अन्याय हो रहा है और उनका शोषण किया जा रहा है, क्योंकि वे पन्नालाल द्वारा बनाई गई रबड़ी से अधिक मुनाफा कमा रहे थे, लेकिन उन्हें नामात्र का वेतन दिया जा रहा था। सो, उन्होंने जो उनके द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की गई रबड़ी से अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे थे, जबकि उन्हें बहुत कम वेतन दिया जा रहा था। उन्होंने वह नौकरी छोड़ी और अपने गांव लौट आये। इसके बाद उन्होंने दोस्तों के साथ मिल कर इसकी शुरुआत की। खास बात यह रही कि उन्होंने इस काम से कई महिलाओं को लगातार जोड़ा और उन्हें जीविका कमाने के लिए प्रेरित किया। गौरतलब है कि लगभग 50 घरों का चूल्हा इस आय के माध्यम से ही जलता है। यह रबड़ी 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम बिकती है और त्योहारों के समय डिमांड और बढ़ जाती है।
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