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होम / एन्गेज / संस्कृति / पॉप-कल्चर

बचपन के बगीचे से अब भी जवां है वो ‘अक्टूबर फूल’ की खुशबू

टीम Her Circle |  अक्टूबर 05, 2023

अक्टूबर महीने की शुरुआत हो चुकी है, ऐसे में हरसिंगार या पारिजात के फूल से भी गुड मॉर्निंग करने का समय आ जाता है, अक्टूबर फूल के रूप में जाना जाने वाला यह फूल कई खासियत से भरपूर होता है, आइए जानें क्यों यह फूल आज भी कई रूपों में आपके बचपन की यादों की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। 

बचपन की गुल्लक में खुशबू 

सुबह-सुबह आपकी आंखें खुलें, आप अपने बगीचे में पहुंचें और वहां फर्श पर ढेर सारे प्यारे सफेद फूल, केसरिया रंग की अपनी पूंछ के साथ नजर आएं, तो आपका सिर्फ एक ही मन करता है कि उन फूलों को अपनी डलिया में लेकर आएं और फिर उन्हें घर में सजा दें, देवी दुर्गा को अर्पित कर दें या फिर खूबसूरत तरीके से उसका गजरा बना कर बालों में लगा लें, दरअसल, हरसिंगार अक्टूबर महीने में ही सामने आता है और इसी महीने में देवी दुर्गा की पूजा होती है और शायद इसलिए इसे देवी का खास पुष्प भी माना जाता है। इस फूल को लेकर एक याद यह भी है कि सारे बच्चे सुबह उठ कर इसे चुनते थे और फिर तरह-तरह के घर तैयार करते थे, इससे तरह-तरह के खेल-खेल में मालाएं बनती थीं, खासतौर से लड़कियां बहुत खूबसूरत कंगन भी सजा लेती थीं और बचपन में गुड्डे-गुड्डियों की शादियों में भी तो वरमाला के लिए यही फूल खास भूमिका निभाते थे, उस वक्त यही फूल जयमाला से लेकर, पूजा की थाल से लेकर घर के डेकोरेशन का हिस्सा बनते थे, छठ पूजा में भी हर दीये को पत्ती के साथ रखते हुए उसमें ये फूल जरूर सजा दिए जाते थे, यह फूल बचपन में मां के साथ जल्दी उठा कर, फूलों की टोकरियां सजाने, देवी दुर्गा की आराधना से लेकर, दोस्तों के साथ सुबह ताजगी भरी मस्ती से भरपूर की यादों से जुड़ी है, आज भी महक हर किसी को अपने बचपन के घरों तक ही ले जायेंगे, फिर चाहे आप कितनी भी दूर बैठी हों। 

हरसिंगार का महत्व 

हरसिंगार के पौधे को हम पारिजात के नाम से भी जानते हैं, बता दें कि शास्त्रों में भी इस फूल के बारे में काफी जानकारी उपलब्ध है, इसे कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई है और इसकी खूबी यही है कि इस फूल को लेकर मान्यता है कि जब समुद्र मंथन हुआ था, तो उन 14 रत्नों में से एक रत्न पौधा हरसिंगार भी था, इसे इसलिए काफी सकारात्मक पौधा भी माना जाता है। इस पौधे को लेकर यह भी मान्यता है कि इसे अगर घर के उत्तर-पूर्व में भी रखा जाए, तो वास्तु दोष खत्म होता है, यह मां लक्ष्मी और देवी दुर्गा के अति प्रिय फूलों में से एक है। इस फूल की खूबी यह भी है कि इसकी जो सुगंध होती है, वो चुटकियों में तनाव को दूर कर देती है और आस-पास के माहौल को खुशनुमा बना देती है, माना जाता है कि यह जहां भी लगाई जाती है, वहां नेगेटिव एनर्जी दूर हो जाती है। इसका एक महत्व यह भी है कि यह जोड़ों के दर्द, सर्दी-खांसी, सूखी खांसी या सूजन या दर्द में भी मदद करती है। यह स्मृति को भी बढ़ाने में मदद करती है। 

पौराणिक सन्दर्भ 

इस फूल के बारे में पौराणिक रूप से काफी जानकारी मिलती है, जिसमें एक यह कथा भी जानने को मिलती है कि इस फूल की उत्पत्ति समुद्रमंथन से हुई, इस फूल को इंद्र को इतना मोहित किया कि उन्होंने इसे स्वर्ग ले जाकर वहां लगाया, फिर एक सन्दर्भ यह भी मिलता है कि पांडवों के अज्ञातवास के समय कृष्ण ने इसे स्वर्ग से लाकर बाराबंकी के रामनगर क्षेत्र में लगा दिया था, उस जगह का नाम है बोरोलिया। आज भी वहां इसके वृक्ष हैं। वहीं हरिवंश पुराण में उल्लेख मिलता है कि माता कुंती हरसिंगार के फूलों से भगवान शिव की उपासना करती थीं। दिलचस्प है कि इस फूल को कभी तोड़ा नहीं जाता है, बल्कि यह खुद पेड़ से झड़ कर नीचे आ जाते हैं। साथ ही इन फूलों को सुखा कर बौद्ध भिक्षुकों के लिए वस्त्र रंगे जाते थे, जो स्वास्थ्य वर्धक भी होते थे। 

कैसे लगाएं घर में 

इसे वसंत ऋतू में रोपा जाता है, ठंड के मौसम में इसे लगाने से हमेशा ही बचना चाहिए। इसके पेड़ बड़े होते हैं, तो आपको इसको अधिक जगह देनी चाहिए, इसे धूप की जरूरत बहुत होती है। यह एक ऐसा पौधा होता है, जो 10 से 11 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ सकता है, इस पौधे की छाल बहुत कठोर होती है। यह पौधा मुख्य रूप से अगस्त माह से लेकर दिसंबर माह तक आता है। 

हर राज्य में अलग-अलग है नाम 

आपको यह बात जान कर हैरानी होगी, मगर हरसिंगार को भारत के हर राज्य में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे जहां हिंदी में पारिजात, प्राजक्ता और शेफाली भी कह कर पुकारते हैं, वहीं संस्कृत में पारिजात, शेफालिका भी कहते हैं, महाराष्ट्र में इस फूल को लोग पारिजातक या प्राजक्ता कहा जाता है, तो गुजराती इसे  हरशणगार, बंगाली में शेफाली, शिउली और  तेलुगू में पारिजातमु, पगडमल्लै कहते हैं, तो तमिल में पवलमल्लिकै, मज्जपु, मलयालम में पारिजातकोय भी कहते हैं, उर्दू की कई शायरी में इसका जिक्र है, जिसमें इसे गुलजाफरी पुकारते हैं, तो कोरल में जेस्मिन के नाम से जाना जाता है। 

रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में हरसिंगार 

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी अपनी रचनाओं में हरसिंगार फूल की चर्चा की है। उन्होंने इस फूल के बारे में लिखा है 

हे सुंदर तुम आए थे प्रात: आज

लेकर हाथों मैं अरुणवर्णी पारिजात !"

दरअसल, भारतीय साहित्य और संस्कृति में हरसिंगार के खास महत्व के कारण, इस फूल को पश्चिम बंगाल में आधिकारिक फूल का सम्मान प्राप्त है। साथ ही यह भारत के अलावा थाईलैंड के कंचनबूरी प्रांत का भी आधिकारिक पुष्प माना जाता है।

 

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