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होम / एन्गेज / संस्कृति / पॉप-कल्चर

बंजारा समुदाय के साथ पूर्वांचली महिलाओं की अमूल्य धरोहर हंसुली

रजनी गुप्ता |  अप्रैल 14, 2025

गुजरे जमाने से ताल्लुक रखनेवाले इस बात से अच्छी तरह वाकिफ होंगे कि गले में पहनी जानेवाली हंसुली सिर्फ एक आभूषण नहीं, बल्कि संस्कृति, समृद्धि, परंपरा और सौंदर्य का प्रतीक है। आइए जानते हैं इसकी विशेषता। 

हंसुली का ऐतिहासिक महत्व

image courtesy: @https://in.pinterest.com

बंजारा कम्युनिटी के साथ पूर्वांचल यानी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ की महिलाओं की समृद्ध विरासत रही हंसुली की लोकप्रियता आधुनिक समय में भी बरकरार है। हालांकि यदि यह कहें तो गलत नहीं होगा कि हंसुली पारंपरिक एवं समकालीन दोनों रूपों में अपनी जगह बनाए हुए है। सौंदर्य और समृद्धि का प्रतीक रही हंसुली की जड़ें, भारतीय संस्कृति और इतिहास में गहराई तक जमी हुई हैं। दरअसल हंसुली का प्रचलन भारत में प्राचीन काल से चला आ रहा है। यह न केवल महिलाओं, बल्कि पुरुषों और योद्धाओं द्वारा भी पहनी जाती थी। ऐतिहासिक रूप से, हंसुली को राजस्थान और मध्य प्रदेश के राजपूत तथा मराठा परिवारों में पहना जाता था। इसके अलावा ग्रामीण और आदिवासी परंपरा में बंजारा, भील, गोंड और अन्य आदिवासी समुदायों में यह पहले भी पहनी जाती थी, और आज भी परंपरागत रूप से पहनी जाती है।

हंसुली का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

हंसुली के सांस्कृतिक महत्व की बात करें तो बंजारा महिलाएं इसे अपनी संस्कृति और पहचान के प्रतीक के रूप में पहनती हैं। उदाहरण के तौर पर शादीशुदा महिलाएं इसे खासतौर पर विवाह और उत्सवों में पहनती हैं। हालांकि पुराने समय में यह परिवार की संपत्ति का प्रतीक भी मानी जाती थी, जिसे दहेज या पारिवारिक धरोहर के रूप में आनेवाली बहू को दिया जाता था। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाओं की बात करें तो उनके लिए हंसुली पवित्रता के साथ समृद्धि का प्रतीक हुआ करती थी, जिसे वे विशेष रूप से करवा चौथ, तीज, छठ पूजा और विवाह समारोहों में पहनती थी और कुछ परिवारों में यह परंपरा आज भी कायम है। हालांकि कई बुजुर्ग महिलाएं इसे अब भी लगातार पहनती हैं, क्योंकि यह उनके सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा को दर्शाता है।

धार्मिक और स्वास्थ्य से जुड़ी मान्यताएं

image courtesy: @amazone.in

यूं तो अब हंसुली सोने और पीतल में भी बनने लगी हैं, लेकिन स्वास्थ्य के लिए आज भी कई महिलाएं चांदी की हंसुली ही पहनती हैं, क्योंकि चांदी की हँसुली शरीर की गर्मी को संतुलित करती है और मानसिक शांति देती है। यह उन्हें निगेटिव एनर्जी के साथ बुरी नजर से भी बचाती हैं। विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी समुदायों में ये मान्यता है कि हंसुली पहनने से वे गले की बीमारियों से दूर रह सकती हैं। हालांकि पहले हंसुली सिर्फ पारंपरिक परिधानों के साथ पहनी जाती थी, लेकिन अब इसे फैशन ज्वेलरी के रूप में भी अपनाया जा रहा है। विशेष रूप से डिजाइनरों द्वारा बनाई जा रही हल्की और नए डिजाइन की हंसुली को आप आधुनिक और पारंपरिक दोनों तरह की पोशाकों के साथ पहन सकती हैं।

फैशन इंडस्ट्री के साथ बॉलीवुड में भी है इसका क्रेज 

बॉलीवुड फिल्मों और सेलिब्रिटीज की फैशन चॉइस ने हंसुली को एक ग्लैमरस और ट्रेंडी ज्वेलरी पीस बना दिया है। ‘पद्मावत’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ जैसी ऐतिहासिक फिल्मों में दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा ने जहां भारी-भरकम हंसुली पहनी, वहीं ‘कलंक’ फिल्म में इसे राजसी अंदाज में प्रस्तुत किया गया है। फिल्मों के साथ-साथ रियल लाइफ में भी सोनम कपूर, आलिया भट्ट और जाह्नवी कपूर जैसी फैशन आइकॉन ने हंसुली को इंडो-वेस्टर्न आउटफिट्स के साथ पेयर किया है। इसके अलावा कई फैशन वीक और रेड कार्पेट इवेंट्स में डिजाइनर हंसुली पहने मॉडल्स ने इसे ग्लोबल फैशन ट्रेंड बना दिया है। हालांकि फैशन इंडस्ट्री में मॉडर्न और ट्रेडिशनल हंसुली की तरफ नई पीढ़ी को आकर्षित करने का श्रेय जाता है, सब्यसाची, मनीष मल्होत्रा और अनामिका खन्ना जैसे डिजाइनर्स को, जिन्होंने इसे अपने कलेक्शन्स में शामिल किया है। यही वजह है कि अब हंसुली को सिर्फ पारंपरिक परिधानों के साथ ही नहीं, बल्कि वेस्टर्न ड्रेसेज और फ्यूजन आउटफिट्स के साथ भी स्टाइल किया जा रहा है। साथ ही यह चोकर और स्टेटमेंट ज्वेलरी के रूप में इंटरनेशनल फैशन सीन में भी उभर रही है और सिल्वर, गोल्ड, कुंदन और मीनाकारी वर्क वाली हंसुली की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

हंसुली का स्वरूप और निर्माण

image courtesy: @https://in.pinterest.com

आमतौर पर हंसुली अर्धचंद्राकार या फिर U-आकार की होती है, जो गले में कसी हुई होती है। अन्य आभूषणों की तुलना में अधिक वजनी हंसुली, पारंपरिक रूप से चाँदी की बनाई और पहनी जाती है. हालांकि कुछ क्षेत्रों में इसे सोने या पीतल में भी बनाया जाता है। परंपरा के अनुसार कुछ हंसुलियों में घुंघरू, मोती, नक्काशीदार आकृतियां और धार्मिक प्रतीक उकेरे जाते हैं। वैसे, आजकल हंसुली के हल्के और आधुनिक संस्करण भी बनाए जा रहे हैं। इसमें चांदी को पिघलाकर उसे सांचे में ढाला जाता है। उसके बाद उसे हथौड़े से पीटकर या नक्काशी करके डिजाइन दिया जाता है। अंतिम रूप देते हुए इसे चमकाकर तैयार किया जाता है। आम तौर पर ग्रामीण इलाकों में इसे लोकल ज्वेलर्स बनाते हैं। इसके अलावा पारंपरिक हंसुली आप राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र के मेलों में भी खरीद सकती हैं। साथ ही आधुनिक डिजाइनों वाली हंसुली ऑनलाइन ज्वेलरी स्टोर्स और हैंडीक्राफ्ट एक्सपो में आपको आसानी से मिल जाएगी।

 

 

Lead image courtesy: @instagram.com

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