इंडियन पोस्ट सर्विस एक ऐसी सर्विस है, जिसका इस्तेमाल कई सालों से हम करते आये हैं। भले ही सोशल मीडिया कितना भी हावी हो जाये, लेकिन इंडियन पोस्ट सर्विस को तवज्जो मिलती रही है, एक खास बात अब यह है कि इसकी रजिस्टर पोस्ट सेवा अब बंद हो चुकी है, आइए इसी बहाने समझते हैं कि कैसे इंडियन पोस्ट सेवा हमारे प्रतिदिन के जीवन और कल्चर का अहम हिस्सा रहा ।
सेवाएं हुईं बंद

गौरतलब है कि भारतीय डाक विभाग ने अपनी प्रतिष्ठित पंजीकृत डाक सेवा को हाल ही में बंद किया, जिससे 50 साल पुराने युग का अंत हो गया। 1 सितंबर, 2025 से, यह सेवा स्पीड पोस्ट के साथ रणनीतिक एकीकरण के तहत चरणबद्ध तरीके से समाप्त हुई और इसका उद्देश्य परिचालन को आधुनिक बनाना है। पंजीकृत डाक, जो 50 से अधिक वर्षों से एक विश्वसनीय सेवा रही है, अपनी विश्वसनीयता, सामर्थ्य और कानूनी वैधता के लिए जानी जाती थी। इस सेवा का उपयोग नौकरी के प्रस्ताव, कानूनी नोटिस और सरकारी पत्राचार जैसे महत्वपूर्ण दस्तवेजों को पहुंचाने के लिए किया जाता था, जो लाखों भारतीयों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। यह निर्णय आधिकारिक आंकड़ों के बाद आया है, जिसमें 2011-12 में पंजीकृत वस्तुओं की संख्या 244.4 मिलियन से 2019-20 में 184.6 मिलियन तक 25 प्रतिशत की गिरावट दिखाई गई है, जो डिजिटल अपनाने और निजी कूरियर और ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स से प्रतिस्पर्धा के कारण तेज हुई है।
पुरानी यादों में फिर से झांकना

अगर हम पंजीकृत डाक की बात करें, तो ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से ही यह है, जो सुरक्षित, कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त दस्तावेज भेजने के लिए एक विश्वसनीय माध्यम के रूप में कार्य करता था। बुजुर्गों के लिए यह एक अहम माध्यम था। बैंकों, विश्वविद्यालयों और सरकारी निकायों जैसे संस्थानों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किए जाने के कारण, इसकी डिलीवरी के प्रमाण और सामर्थ्य के कारण इसे महत्व दिया जाता था। डिलीवरी और पोस्टिंग का प्रमाण अदालतों में स्वीकार्य था, जिससे यह सरकारी विभागों, बैंकों, अदालतों और शैक्षणिक संस्थानों के लिए अनुपालन और दस्तावेजीकरण सुनिश्चित करने का एक विश्वसनीय तरीका बन गया।
भावनाएं लिखी जाती थीं खतों के माध्यम से
अब जबकि हर बात और काम मेसेंजर और सोशल मीडिया पर होने लगे हैं, एक दौर में यह काम पूरी तरह से खतों और पत्रों के माध्यम से होता था, जब हर बात अगर अपने चाहने वालों तक पहुंचानी होती थी, तो इमोशन और भावनाएं पूरी तरह से शब्दों में और खत या पत्र के नाम से लोगों तक पहुंचा दी जाती थी और यही खासियत होती थी कि उस वक्त एक दूसरे को कुछ कहने के लिए हमारे पास समय भी होता था और हुनर भी होता था कि हम बैठ कर चिट्ठी लिखा करते थे। धीरे-धीरे यह दौर बदल गया। अब लोग जल्दबाजी में रहते हैं और अपनी बात एक-एक लाइन में कह कर चुप हो जाते हैं और फिर आगे कुछ नहीं सोचते। अब न ज्यादा कहने का समय है, न ज्यादा सुनने का लोगों में धैर्य है और पढ़ने का हुनर भी लोग भूलते ही जा रहे हैं।
फेस्टिवल के वक्त अहम भूमिका
एक दौर था, जब राखियां पोस्ट से ही आया करती थीं, उसमें बहनें अपने हाथों से लिखी चिट्ठियों के साथ आया करती थीं और भाई खुशी-खुशी राखियां बांधा करते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे अब ऑनलाइन से चिट्ठियां भेजी जा रही हैं और उन्हें ही लोग बांधना पसंद कर रहे हैं, उसमें न तो लिखे हुए बहनों के कोई शब्द होते हैं और न ही कोई संदेश, सिर्फ रेडीमेड राखियां भेज दी जा रही हैं और तोहफे भी भेजे जा रहे हैं। लेकिन इमोशन कहीं न कहीं गौण हो चुके हैं, तो पहले तीज और बाकी त्योहारों में भी पैसों का आदान-प्रदान पोस्ट के माध्यम से ही हो जाया करता था।
संजोने की कला

हमें शायद ही इस बात का एहसास हो, लेकिन यही हकीकत है कि इंडियन पोस्ट सेवाओं ने हमें चीजों को सहेजना भी सिखाया है कि कैसे हम चिट्ठियों को सहेजा करते थे और इसी तरह से कई और चीजों को भी सहेज कर रखते थे। अपने साथ और भी चीजें रखा करते थे और आगे भी हमें और चीजें सहेज कर रखने की कला समझ आयी। इसलिए बेहद जरूरी है कि संजोने की कला को फिर से सीखा जाये, जो हमारी सभ्यता का एक अहम हिस्सा रही है।
लोकाचार की कला
आपको याद तो होगा, जब पोस्ट मैन हमारे घर आया करते थे, मां उन्हें गुड़ और पानी दिया करती थी मुस्कुरा कर हाल-चाल लिया करती थी और फिर जो भी पोस्ट से आता था, लेती थीं। हालांकि अब भी डाक सेवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन लोगों ने इसका इस्तेमाल अब बिल्कुल न के बराबर कर दिया है, इसलिए अब डाक बाबू उपाधि से संबोधित होने वाले शख्स कम दिखते हैं और हाल-चाल पूछे जाने की यह कला भी लगभग समाप्ति की तरफ है।