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होम / एन्गेज / संस्कृति / पॉप-कल्चर

मणिपुर की संस्कृति को आगे बढ़ा रही हैं 90 वर्षीय ड्रेस डिजाइनर हंजाबाम ओंगबी

रजनी गुप्ता |  जून 18, 2025

मणिपुर के थौबल जिले के वांगजिंग गांव की 90 वर्षीय हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी, ड्रेस डिजाइनर के तौर पर मणिपुर के मैतेई समुदाय की पारंपरिक दुल्हन के पोशाक पोटलोई सेटपी कला को न सिर्फ आगे बढ़ा रही हैं, बल्कि इसके लिए उन्होंने हाल ही में भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री पुरस्कार भी प्राप्त किया है। आइए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं।  

अपने समृद्ध परिवार के साथ रहती हैं अपने पुश्तैनी घर में

image courtesy:@x.com

मणिपुर के थौबल जिले के समाराम गांव में जन्मीं हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी, अपने पांच भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थीं। गरीब परिवार में जन्मीं हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी के पिता एक मंदिर के पुजारी और मां गृहिणी थीं। मात्र 13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह मणि शर्मा से हो गया, जो पेशे से एक ज्योतिषी और रसोइयां थे। अपने माता-पिता के घर से मात्र 3 किलोमीटर दूर वांगजिंग गांव में अपने ससुराल आईं 13 वर्षीय हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी आज भी अपने पुश्तैनी घर में अपने चार बेटों और 24 पोते-पोतियों के साथ रहती हैं। फिलहाल उनके बड़े बेटे का देहांत हो चुका है, लेकिन उनका पूरा परिवार आज भी एक ही छत के नीचे उसी तरह रह रहा है, जैसे पहले रहता था। 

पद्मश्री पुरस्कार पाने की खबर ने भरा रोमांच 

अपने गांव से कभी नहीं निकली हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी बताती हैं कि जब उन्हें पद्मश्री मिलने का समाचार मिला तो वे चकित हो गईं। दिल्ली जाकर पुरस्कार प्राप्त करने के ख्याल से ही उनका दिल रोमांचित हो गया था। हालांकि पिछले 70 वर्षों से मणिपुर के मैतेई समुदाय की पारंपरिक वधू पोशाक पोटलोई सेटपी कला को आगे बढ़ा रहीं हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी आर्थिक विपन्नता को बहुत पहले पीछे छोड़ चुकी हैं, लेकिन अपने संघर्ष और गरीबी के दिनों की याद आज भी उनके दिलो-दिमाग में ताजा है। वे बताती हैं कि जब उन्हें दिल्ली आने का न्यौता मिला तो उन्हें लगा जैसे आखिरकार उनके इतने वर्षों की तपस्या सफल हो ही गई। दिल्ली जाकर पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त कर चुकीं हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी ने हालांकि सरकार से उन जैसे वृद्ध कलाकारों के लिए पेंशन की गुहार लगाई है। 

परिवार की आर्थिक मदद के लिए बढ़ाए कदम

image courtesy:@Nepolean Leitongbam/Instagram

अपने पिछले दिनों को याद करते हुए वे बताती हैं कि शादी के बाद देखते ही देखते वे 7 बच्चों की मां बन गईं। हालांकि उनके पति की मासिक आय से उनका परिवार ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन अपने पति को आर्थिक सहयोग देने की गरज से उन्होंने एक चाय की दुकान खोली थी। उसी दौरान वे अपनी पड़ोस में रह रही एक महिला से पोटलोई सेटपी बनाना भी सीख रही थी, जिसमें उनकी काफी रूचि थी। आखिरकार चाय की दुकान की बजाय उन्होंने दुल्हन के कपड़े डिजाइनिंग का काम चुना और चाय की दुकान बंद करके पूरी तरह डिजाइनिंग में जुट गईं। पूरी लगन से अपनी पड़ोसन से दुल्हन के कपड़े बनाना सिखने के बाद उन्होंने लगभग पांच साल तक न सिर्फ उनके साथ प्रशिक्षु के तौर पर काम किया, बल्कि उनसे व्यापार की बारीकियां भी सीखीं। 

अपनी पूरी कमाई लगाई बच्चों की शिक्षा में 

30 वर्ष की उम्र में हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी एक बेहतरीन डिजाइनर बन चुकी थीं, जिनकी चर्चा दूर तक फैली थी। उसी का परिणाम था कि उन्हें कई गांवों से दुल्हन के कपड़े बनाने का ऑर्डर मिलता रहता था। उन दिनों एक पोटलोई सेटपी बनाने के 150 रूपये मिलते थे, जिसे बनाने में लगभग 20 दिन लगते थे। वे बताती हैं कि इन पैसों से न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी, बल्कि उन्होंने इन पैसों का उपयोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में किया। धीरे-धीरे उन्होंने दुल्हन के पहनावे के अलावा रास-लीला शास्त्रीय नृत्य और मणिपुर में मनाए जानेवाले कई त्यौहारों के लिए भी पोशाक बनानी शुरू कर दी। आज अपनी कला के जरिए उन्होंने अपना नाम सिर्फ देश ही नहीं विदेश में भी बना लिया है। अपने पति की मृत्यु के बाद पिछले 40 सालों से अपने परिवार की जिम्मेदारी अकेले निभा रहीं हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी के बेटे ही नहीं, बहुएं भी अब उनके इस काम को सीखकर मणिपुर की कला को आगे बढ़ा रहे हैं। 

90 वर्ष की उम्र में भी हैं मजबूत इच्छा-शक्ति की मालकिन

image courtesy:@x.com

उम्र के इस पड़ाव पर जहां उनकी आंखों की रौशनी और शरीर की ऊर्जा बेहद कम हो चुकी है, तब भी वे अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर कुछ न कुछ काम करती रहती हैं। अपनी तरह कई अन्य कारीगरों को प्रशिक्षित कर चुकीं हंजाबाम ओंगबी राधे शर्मी अब भी सलाह की तलाश में अपने घर आनेवालों से अपना ज्ञान साझा करती हैं। हालांकि उनकी तरह आज भी कई ऐसे कारीगर हैं, जो मणिपुर की संस्कृति को आगे बढ़ाने के बावजूद आर्थिक संघर्ष का सामना कर रहे हैं। उनके लिए वे सरकार से मासिक पेंशन की गुहार भी लगा चुकी हैं, जिससे आनेवाली पीढ़ी इस कला की तरफ आकर्षित हो और उनकी विरासत को आगे बढ़ाएं।

 

Lead image courtesy:@theprint.in

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