'विश्व धरोहर दिवस' अथवा 'विश्व विरासत दिवस' हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाता है। देखा जाए, तो अपनी धरोहर की कीमत समझना और उसकी कदर करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं होती है। लेकिन किसी खास दिन को लेते हुए हम अपनी धरोहर की रक्षा को पुख्ता कर सकते हैं। विश्व धरोहर दिवस के जरिए लोगों को मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है। यह दिन एक तरह से प्राचीन स्मारकों, कलाओं और स्थलों की सराहना करना और उसे संजोकर उनका जश्न मनाता है। हमें अपने देश की धरोहर तक पहुंचने के लिए इको-टूरिज्म को समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह पर्यटन के साथ-साथ प्राकृतिक धरोहरों और संस्कृति की रक्षा का भी जरिया है। आइए जानते हैं विस्तार से।
क्या है इको-टूरिज्म और विरासत का नाता?

इको-टूरिज्म एक तरह से प्रकृति के करीब रहना और प्रकृति से जुड़े हुए इलाकों की यात्रा को बढ़ावा देने का जरिया है। यह एक तरह से प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी को पूरा करने का जरिया है। एक तरह से इसे टिकाऊ तरीके से पर्यटन करने का जरिया भी आप समझ सकती हैं। इको-टूरिज्म के जरिए पर्यावरण को बचाना, स्थानीय जगहों की विरासत को लोगों तक पहुंचाना है। इको- टूरिज्म का विरासत से गहरा नाता रहा है। दोनों का लक्ष्य प्रकृति और संस्कृति का संरक्षण करना है और साथ ही स्थानीय समुदायों को लाभ देना है। इसे सरल भाषा में समझा जाए, तो इको- टूरिज्म का मतलब प्रकृति का संरक्षण, स्थानीय संस्कृति की समझ, सस्टेनेबल विकास और पर्यावरण की तरफ जागरूक रहना है। विरासत को साफ शब्दों से समझा जाए, तो प्राकृतिक विरासत में जंगल,झीलें, पर्वत,वन्यजीव शामिल हैं। सांस्कृतिक विरासत में ऐतिहासिक विरासतें, इमारतें, देश की परंपराएं , रीति-रिवाज, लोककला और हस्तशिल्प कला शामिल है।
सांस्कृतिक विरासत का अनुभव
इको-टूरिज्म और विरासत का हमेशा से ही नाता गहरा रहा है। एक तरह से इको-टूरिज्म से पर्यटकों को प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत का अनुभव मिलता रहा है। इससे संरक्षण के लिए जागरूकता और फंडिंग दोनों मिलते हैं। यह भी जान लें कि जब इको-टूरिज्म स्थानीय संस्कृति और विरासत से जुड़ा होता है, तब स्थानीय लोग पर्यटक से आजीविका कमा सकते हैं। इसके जरिए विरासत को जीवित रखा जा सकता है।
प्रकृति की रक्षा में योगदान

इको-टूरिज्म का हमेशा से पर्यावरण के लिए रक्षा का योगदान रहा है। इको-टूरिज्म स्थलों पर कई सारी गतिविधियां होती हैं। जहां पर पर्यावरण को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। इको-टूरिज्म के दौरान ट्रैकिंग, बर्ड वाचिंग और साइक्लिंग जैसी एक्टिविटी होती है, इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है। कहीं न कहीं इको- टूरिज्म से मिलने वाली आमदनी का एक हिस्सा वन्यजीव और वहां मौजूद गार्डन के रखरखाव को जाता है। यह भी जान लें कि इको-टूरिज्म स्थानीय लोगों को रोजगार देता है। प्रकृति की रखरखाव की अहमियत को इको-टूरिज्म के जरिए बढ़ाया जाता है। इको- टूरिज्म स्थलों पर जीरो वेस्ट, प्लास्टिक फ्री जोन की नीति अपनाई जाती हैष। यह नदियों, झीलों और जमीन को साफ रखने के साथ सुरक्षित रखने में मदद करती है। इको-टूरिज्म से जुड़ी हुई जगहों का जिक्र किया जाए, तो पश्चिम बंगाल का टाइगर रिजर्व, काजीरंगा असम में मौजूद है। यहां पर्यटक आते हैं और उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जाता है।
इको-टूरिज्म के जरिए स्थानीय समुदायों को रोजगार

इको-टूरिज्म में पर्यटन स्थलों पर स्थानीय गाइड्स और टूर ऑपरेटर काम करते हैं, जो पर्यटकों को जगह की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विशेषताओं के बारे में बताते हैं। यह एक तरह स्थानीय संस्कृति की विरासत को प्रकाश में लाने के साथ स्थानीय लोगों के लिए रोजगार लेकर आता है और उन्हें आर्थिक लाभ भी देता है। इको- टूरिज्म के तहत स्थानीय लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं का आदान-प्रदान करते हुए पर्यटकों को आकर्षित अनुभव भी प्रदान करती है। यह एक तरह से वहां की स्थानीय हस्तशिल्प और लोक कला खरीदने के लिए आते हैं। इससे स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों को आय का एक स्थिर स्रोत मिलता है। उदाहरण के तौर पर, आदिवासी इलाकों में लोक कला और शिल्प कार्यों की बिक्री के जरिए एक तरह से स्थानीय लोगों की कला को भी बढ़ावा देता है और साथ ही कला की विरासत को भी बढ़ावा देता है। इसके जरिए नृत्य,संगीत और लोक नाटकों का प्रदर्शन कर स्थानीय कला की विरासत को मंच देने का कार्य भी करती है।
इको- टूरिज्म और सस्टेनेबल विरासत की तरफ बढ़ता रास्ता

इको- टूरिज्म एक तरह से जहां जाएं, वहां कुछ भी नुकसान न हो की सभ्यता को बढ़ावा देता है। आने वाले पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखता है। सस्टेनबल विरासत का मतलब होता है कि संस्कृति,इतिहास और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना। अगर इसे समझा जाए, तो जब भी लोग सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत स्थलों पर इको-टूरिज्म के लिए आते हैं, तो उन्हें पर्यावरण की सुरक्षा के महत्व के बारे में जानकारी मिलती है। पर्यटन स्थलों पर गाइड्स और कई तरह के कार्यक्रमों के जरिए यह भी बताया जाता है कि उस स्थल की विरासत कितनी प्रमुख है और उसे नुकसान से बचाना क्यों जरूरी है।
इको-टूरिज्म से जुड़े स्थानों के नाम

इको-टूरिज्म से जुड़े कई सारे उदाहरण मौजूद हैं। साथ ही प्रकृति से जुड़े कई सारे खूबसूरत स्थान भी हैं। भारत में ऐसे कई सारे स्थान हैं, जो कि इको-टूरिज्म के लिए लोकप्रिय है। इनमें सबसे पहले नाम आता है, ‘नैनीताल’ का। यह एक प्रमुख हिल स्टेशन है और यहां ‘नैनी’ की झील इको-टूरिज्म का एक बेहतरीन उदाहरण है। नैनीताल के करीब पहाड़ियों और जंगलों में हाइकिंग और बर्ड वाचिंग की भी सुविधाएं मौजूद हैं। इसके बाद बारी आती है कर्नाटक के ‘कुर्ग’ की हरी-भरी घाटियां, जो कि प्रकृति का गहना ओढ़ कर बैठी है। यहां के कॉफी के बागान और जलप्रपात इसे एक बेहतरीन इको-टूरिज्म स्थल बनाते हैं। यहां पर आप वॉटरफॉल, बर्ड वाचिंग और ट्रैकिंग का आनंद ले सकती हैं। ‘उत्तराखंड’ का ‘भीमताल’ भी इसी में शामिल है। यह भी ‘नैनीताल’ के पास स्थित एक शांत झील है, जो कि इको-टूरिज्म के लिए लोकप्रिय है। यहां आप नाव की सवारी, ट्रैकिंग और जैविक खेती का अनुभव कर सकती हैं। ‘असम’ का ‘काजीरंगा’ नेशनल पार्क भी इसी फेहरिस्त में शामिल है। यह पार्क भी विश्व धरोहर स्थल है और यहां सींग वाले गैंडे की बड़ी संख्या पाई जाती है। ‘उत्तराखंड’ का ‘जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क’ भारत में सबसे पुराना है, जहां पर बाघों की संख्या सबसे अधिक है। ‘मध्य प्रदेश’ में मौजूद ‘सांची’ प्राचीन बौद्ध स्थलों के साथ-साथ सुंदर प्राकृतिक दृश्य भी दिखाता है। ‘गुजरात’ में मौजूद ‘दहाना’ भी प्रकृति का अद्भुत संदेश देती है। ‘महाराष्ट्र’ के ‘ताम्हिणी’ घाट भी प्रकृति का अद्भुत नजारा देता है।
क्यों जुड़े विरासत की धरोहर को संजोने के लिए इको-टूरिज्म से
अगर आप भी घूमने का शौक रखती है और विरासत की अहमियत को समझती हैं, तो उसके लिए आपको भी इको-टूरिज्म से जरूर जोड़ना चाहिए। यह भी जान लें कि विरासत की धरोहर, चाहे वह प्राकृतिक हो या सांस्कृतिक, हमारे इतिहास और पहचान का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए जब भी आप प्रकृति के जरिए हमारी धरोहर से मिलना चाहती हैं, तो उसके लिए इको-टूरिज्म से बढ़िया दूसरा पर्याय कोई और नहीं हो सकता है।