उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में घरेलू महिलाओं का ज्ञान का भंडार बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें रोजगार के भी अवसर देने की कोशिशों में जुटा है ‘हमारा गांव घर फाउंडेशन’, यहां की महिलाओं ने बनाई हैं चीड़ नीडल्स की राखियां, आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से।
लाइब्रेरी विलेज की नींव
अपने शहर या गांव के लिए कुछ करने का जज्बा कितने लोगों में होता है। कभी पीछे मुड़ कर देखना और सिर्फ कभी-कभी नॉस्टेलजिक होकर अपनी नानी-दादी के गांव को याद करने तक खुद को सीमित करना एक आम बात है, लेकिन जो कुछ करना चाहते हैं, वे खुद को किसी भी शिकायतों या बंदिशों में बांध कर रखने के बारे में नहीं सोचते हैं, वे खुद कदम उठाते हैं और आगे बढ़ते हैं, कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बीना मिश्रा ने, जिन्होंने एमबीए के बाद एक अच्छी नौकरी की, लेकिन नौकरी से ब्रेक लेकर एक नेक काम में खुद के कदम बढ़ाये और उत्तराखंड में स्थित अपने नानी गांव मणिगुह में ‘हमारा गांव घर’ फाउंडेशन के तहत लाइब्री विलेज की शुरुआत की। जी हां, बीना अपने जीवनसाथी सुमन मिश्रा के साथ थीम गांव के कॉन्सेप्ट पर काम कर रही हैं, कई वर्षों तक सोच-विचार और परिकल्पना के बाद जनवरी 2023 में लाइब्रेरी विलेज की शुरुआत की और वहां की स्थानीय महिलाओं को एक राह दिखायी। गौरतलब है कि इन्हें लाइब्रेरी विलेज का आइडिया महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से 17 किलोमीटर स्थित भिलार गांव से मिला, जो कि ‘पुस्तकांच गांव’ के रूप में लोकप्रिय है।
क्या है लाइब्रेरी विलेज
बीना बताती हैं कि यह गांव के लिए बेहद जरूरी था कि पूरी दुनिया से वे ज्ञान के माध्यम से जुड़ पाएं, खासतौर से वहां की महिलाओं और बच्चों के लिए, क्योंकि वहां की हर महिलाओं के लिए संभव नहीं है कि वे गांव से कोसों दूर जाकर कुछ कर पाएं, साथ ही वहां संसाधनों की कमी भौगौलिक रूप से भी रही है, ऐसे में जाहिर है कि वे ज्ञान से वंचित रह जा रही थीं, इसलिए इस कॉन्सेप्ट के साथ वह आगे आयीं, और जिस तरह से मंदिर जगह-जगह पर होते हैं, उस तरह से किताबों की छोटी-छोटी लाइब्रेरी जगह-जगह बनीं, जहां महिलाएं और बच्चे जब चाहें जाकर, उनमें से किताबें लेकर पढ़ सकेंगे। साथ ही उनके पास दुनियाभर की किताबें पढ़ने के विकल्प होंगे। उल्लेखनीय यह है कि इसकी नींव इस सोच से हुई है कि ज्ञान बढ़ेगा तो वहां की रुढ़िवादी सोच आगे नहीं बढ़ेगी, महिलाओं का विकास भी होगा। हमारा गांव घर फाउंडेशन के इस प्रयास ने गांव में एक सेंट्रल लाइब्रेरी की भी शुरुआत की है, जहां महिलाएं आकर पढ़ाई के साथ-साथ दूसरा हुनर भी सीख रही हैं। इस लाइब्रेरी में दुर्लभ किताबों के साथ-साथ पांडुलिपियां भी उपलब्ध हैं, साथ ही बच्चों क्लास के अलावा कम्प्यूटर की शिक्षा भी दी जा रही हैं, अच्छी बात यह है कि यहां विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के लिए जरूरी पाठ्य पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। बीना का मानना है कि पढ़ना एक आवश्यक संस्कृति है, जो धीरे-धीरे विकसित होती है, इसलिए आपके पूरे विकास के लिए किताबें आपके जीवन का हिस्सा होना ही चाहिए।
चीड़ नीडल्स की सस्टेनेबल राखियां
बीना बताती हैं कि वह और उनके जीवनसाथी सुमन मिश्रा को इस बात की ख़ुशी है कि इस वर्ष रक्षाबन्धन के मौके पर यहां की महिलाओं ने चीड़ नीडल्स ( पाइन नीडल्स) से प्राकृतिक राखियां बनायीं और वह भी पूरी तरह से प्रशिक्षण लेकर, जी हां, गौरतलब है कि पाइन नीडल्स को कलात्मक रूप देने वालीं सुप्रसिद्ध आर्टिस्ट मंजू आर साह ने बाकायदा, एक महीने पहले आकर यहां की महिलाओं को राखियां बनाने की ट्रेनिंग दी थी और कमाल की बात यह हुई है कि कुछ ही दिनों में महिलाएं इस कदर इसे बनाने में माहिर हो गयीं कि उनकी राखियां लगातार लोगों ने खरीदीं, लगभग 200 से ज्यादा राखियां बिकी हैं। कई साहित्यकारों, लेखकों, पेंटर्स, रेडियो जॉकी और कला प्रेमियों ने खरीदे हैं और इस साल इसकी खूब चर्चा हो रही है। हमारा गांव घर फॉउंडेशन की अगली योजना यही है कि वे यहां की महिलाओं को स्थानीय रूप से खाद्य पदार्थ बनाने का भी सही तरह से प्रशिक्षण दिलवाना चाहेंगे, ताकि वहां रहते हुए ही महिलाएं खुद को आत्म-निर्भर बना सकें और अपनी जीविका के लिए रोजगार का माध्यम जुटा सकें। इसके लिए समय-समय पर वर्कशॉप के साथ-साथ कई सांस्कृतिक गतिविधियों के आयोजन की भी योजना है।