महाकुंभ की महिलाएं। जी हां, बीते कुछ सालों से महाकुंभ में लगातार महिलाओं की भूमिका ठोस होती जा रही है। नतीजा यह हुआ है कि महाकुंभ नारी शक्ति कुंभ के नाम से भी अपनी दूसरी पहचान बना चुका है। महाकुंभ के मेले के लोकप्रियता की यह सबसे बड़ी पहचान है कि यहां पर पहुंचने वालों की गिनती उंगलियों पर नहीं बल्कि भीड़ के तौर पर की जाती है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि महाकुंभ मेला भारत की कला,संस्कृति और परंपराओं का महासंगम कहलाता है। जनवरी 2025 में इस मेले का आयोजन व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। इस साल 13 जनवरी से 26 फरवरी के दौरान इस मेले में भारतीय संस्कृति में महिलाओं की भागीदारी की अलौकिक संगम देखने को मिल रहा है। आइए विस्तार से जानते हैं महाकुंभ ने किस तरह ग्रामीण महिलाओं की प्रबलता के लिए बड़ा मंच साबित हुआ है।
महाकुंभ मेले का ऐतिहासिक महत्व

प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम को प्रस्तुत करता हुआ महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति के अद्भुत संगम को भी दर्शाता आता रहा है। महाकुंभ को लेकर यह मान्यता है कि नदियों के संगम में स्नान कर लोग न केवल खुद को बाहरी तौर पर साफ करते हैं, बल्कि अंदरूनी तौर पर नकारात्मकता को भी पानी में बहा देते हैं। पौराणिक कथाओं में अमृत मंथन का जिक्र महाकुंभ की खूबी को दर्शाता है। कथा के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच हुए सागर मंथन में अमृत से भरा कलश मिला था, जिसकी कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं और इसी आधार पर इन चारों जगह पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। देखा जाए, तो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक कुंभ मेला है।
नारी शक्ति को दर्शाता महाकुंभ

गंगा, जमुना और सरस्वती नदी का संगम जहां महिला शक्ति के एक होने की छवि को दर्शाता है, तो वहीं इस बार का महाकुंभ महिलाओं की कला और प्रतिभा का भी वर्णन करता हुआ दिख रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है, रोजगार। राज्य आजीविका मिशन से जुड़ी ग्रामीण क्षेत्र की स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अपनी कला के जरिए आर्थिक तौर पर खुद को मजबूती देती हुई आयेंगी। उल्लेखनीय है कि महाकुंभ 2025 में 40 से अधिक दुकानें ग्रामीण महिलाओं को दी गई हैं। जहां पर महिलाएं ग्रामीण वस्तुएं जैसे जौ, ज्वार, बाजरा, देसी गुड़ की ब्रिकी करते हुए नजर आयेंगी। इसके साथ महिलाओं की संख्या को देखते हुए 30 से 40 पिंक टैक्सी की भी सुविधा है। टैक्सी में मौजूद महिला चालक कुंभ मेले में पहुंचने वाली महिलाओं की सुरक्षा सखी बनकर उन्हें सुरक्षित यात्रा का अनुभव देंगी।
महिलाओं की महाकुंभ भागीदारी
महाकुंभ में हर साल नारी शक्ति अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए खुद को शक्तिशाली तौर पर प्रस्तुत करते हुए नजर आती रही हैं। महाकुंभ भारत की सांस्कृतिक गतिविधियों को भी दिखाता है। जहां पर महिलाएं समाज में अपने महत्व को उजागर करती हुई नजर आती हैं। उल्लेखनीय है कि महाकुंभ में अलग-अलग आयोजन के जरिए महिलाएं पारंपरिक नृत्य, संगीत और नाट्य प्रस्तुति भी करती हैं। साथ ही हस्तशिल्प के जरिए अपनी कलाकारी को भी पेश करती हैं। महाकुंभ में इसी वजह से महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक मानी जाती है। इसी वजह से समाज के बीच महिलाओं की छवि को लेकर महाकुंभ सांस्कृतिक और सामाजिक नजरिए से भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है।
महिला शक्ति का त्रिवेणी संगम

महाकुंभ एक नजरिए से यह भी बताता है कि भारत अपने समृद्ध इतिहास और आस्था की गंगा में महिलाओं की मौजूदगी को हमेशा से ही ऊपरी स्थान पर रखता हुआ आ रहा है। महाकुंभ जहां नदियों के त्रिवेणी संगम का पर्व है, तो वहीं इसी के आधार पर महिलाएं भी अपनी प्रतिभा के संगम को शक्तिशाली तौर पर प्रदर्शित करती हुई दिखती हैं। कुंभ में कैंटीन संभालती हुई महिलाएं, नृत्य और संगीत प्रदर्शित करती हुई महिलाएं, रोजगार करती हुई महिलाएं लाखों की संख्या में प्रस्तुत होकर अपनी शक्ति का परिचय देती हैं।
महाकुंभ में पंख पसारती हुईं नारी

महाकुंभ हमेशा से धार्मिक परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक माना गया है, लेकिन इन सबको पीछे छोड़ते हुए महाकुंभ ग्रामीण महिलाओं को प्रबल करने का कारगर जरिया भी साबित हुआ है। महाकुंभ कहीं न कहीं महिलाओं को बंदिशें तोड़कर चूल्हे की आग से बाहर निकलकर खुद दो उज्जवल करके समाज के बीच अपनी पहचान बनाने के साथ पंख पसारने का मंच भी बन गया है। सही मायने में महाकुंभ महिलाओं के लिए गंगा, यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम बन गया है। यानी कि जहां पर महिलाएं गंगा नदी की तरह अपने काम की पवित्रता, सरस्वती नदी की तरह अपने ज्ञान और यमुना नदी की तरह प्रबलता का संगम करते हुए सर्वोपरि दिखाई दे रही हैं।