भारत की संस्कृति में पान न केवल किसी त्योहार या शादी की शान बनता है, लेकिन भारतीय संस्कृति के आहार में पान ने अपनी खास जगह बनाई है। पान न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि यह भारत की पारंपरिक मेहमाननवाजी में भी एक खास भूमिका निभाता है। आइए जानते हैं विस्तार से।
पान का भारत की संस्कृति में महत्व

पान यानी कि 'बीतल लीफ' इसका भारतीय संस्कृति में खास स्थान है। पान न केवल खाद्य सामग्री है, बल्कि पूजा-पाठ से लेकर मेहमानों के सत्कार में स्वाद का तड़का भी पान के जरिए मिलता है। अगर खाने के सेवन के बाद पान से स्वाद का अंत न, हो तो भोजन अधूरा लगता है। उल्लेखनीय है कि हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में पान के पत्ते का विशेष स्थान होता है। यह भगवान को भोग अर्पित करने, कलश की स्थापना, यज्ञ आदि में उपयोग किया जाता है। दूसरी तरफ पान को शुद्धता का प्रतीक भी माना जाता है। नारियल और सुपारी को भी पान के पत्ते के साथ रखा जाता है। साथ ही विवाह और सामाजिक परंपराओं के दौरान पान और सुुपारी देना शुभ माना जाता है। पान का वर्णन कई कविताओं, लोकगीतों और मुहावरों में मिलता है। उदाहरण की बात करें तो पान खाए सैंया हमारो... या खइके पान बनारस वाला भी प्रमुख हैं।
पान की दरबारी संस्कृति खान पान से

राजा-महाराजाओं के दरबार में पान की संस्कृति खास रही है। यह एक तरह से भारतीय खान-पान की दिलचस्प और भव्य परंपरा दर्शाती है। पान को केवल एक खाने की चीज नहीं समझी जाती रही है, पान दरबार की शान, सामाजिक प्रतिष्ठा और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक रही है। उल्लेखनीय है कि राजाओं, नवाबों और दरबारियों के पास चांदी या सोने से जड़ा हुआ पानदान होता था। यह केवल पान रखने का बर्तन नहीं, बल्कि उनकी शान, औकात और सुरुचि का प्रतीक होता था।
दरबार में पान को लेकर बनाए गए नियम
रानियां और उच्चवर्गीय महिलाएं भी अपनी सेवा में पानदान लिए नौकरानियां रखती थीं। साथ ही दरबारी के शिष्टाचार में पान को लेकर कई जरूरी नियम भी बनाए गए थे। खासतौर पर यह कि किसी भी पान को पेश करना सम्मान और प्रेम का प्रतीक माना जाता था। जब कोई अतिथि दरबार में आता, तो उसे पान, इत्र और फूल देकर उसका सत्कार से भरा स्वागत किया जाता था। दूसरी तरफ पान का एक विशेष रूप "इलायची पान" या "सुगंधित पान" खास मेहमानों के लिए बनवाया जाता। दूसरी तफ मुगलों और अन्य दरबारों में पान द्वारा कई जरूरी संकेत देने की भी परंपरा रहती थी। जहां पर अगर पान वापस भेजा गया, तो उसे इंकार और नाराजगी का एक संकेत माना जाता था। खुशी के अवसर पर पान में लौंग या गुलाब डालकर भेजना विशेष प्रेम या मित्रता का प्रतीक माना जाता था। कवि, शायर और संगीतज्ञ पान के शौकीन होते थे। कई मुशायरों और दरबारों में पान पेश करना एक रस्म होती थी।
खान-पान में 'पान' की भूमिका

शाही दावतों के बाद पान को परोसना शिष्टाचार का अहम भाग माना गया है। यह भी जान लें कि पान पाचक में पूरी तरह से सहायक होने के साथ भोजन खान के बाद मुंह की ताजगी के लिए भी प्रयोग किया जाता रहा है। दरबाई रसोई में पान को कई तरह के मसालों के साथ परोसते थे, खासतौर पर गुलकंद, केसर, इलायची और चांदी के वर्क से सजाया जाता रहा है। साथ ही पान में कई तरह के पर्याय भी मौजूद रहे हैं। मीठा पान,सादा पान, इलायची पान और जर्दा पान के साथ और भी कई तरह के पान राजा-महाराजाओं की पसंद के अनुसार बनाए जाते थे। उल्लेखनीय है कि बड़े दरबारों में पान को शादी तरीके से बनाने और पेश करने के लिए खास तौर पर प्रशिक्षित महिलाएं मौजूद रहती थीं, जो कि खास तौर पर पान बनाने और उसे पेश करने के लिए नियुक्त की जाती थी। आप यह समझ सकती हैं कि शाही परिवार में और शाही खान-पान में पान का वही स्थान है, जो मिठाई का होता है, जिसे अंत में खाना जरूरी और खास माना जाता था।
भारत के अलग-अलग शहरों में पान की परंपरा

दिलचस्प है कि भारत के अलग-अलग शहरों में पान को लेकर कई तरह की वैरायटी रही है। कहते हैं हर शहर का पान उसकी संस्कृति की पहचान का हिस्सा रहती है। बनारस में बनारसी पान लोकप्रिय है। इसे खासतौर पर गुलकंद, सुपारी, खोपरा, चेरी, लौंग, इलायची और चांदी के वर्क के साथ तैयार किया जाता है। इसे खासतौर पर बनारसी पान, सादा पान या राजा पान कहा जाता है। बनारस के पान की खूबी यह बताई जाती है कि उसे खाने के बाद उसके रस को भी निगलने का रिवाज है फिर उसे थूकना एक स्टाइल माना जाता है।
कोलकाता और लखनऊ का पान
यहां के पान की खूबी यह रहती है कि इसका पत्ता पतला होता है। साथ ही इसमें मिठास कम रहती है। इसे सादा कलकत्ता पान या फिर चूना-कत्था पान भी कहा जाता है। यहां के पान की खूबी यह है कि बारीकी और सुंदरता के साथ इसे बनाया जाता रहा है। लखनऊ के पान को केवड़ा, गुलाब जल, मेवा, मखाने के साथ खूबसूरत मसालों का प्रयोग कर तैयार किया जाता है। इसे लखनऊ के पान को शाही पान , नवाबी मीठा पान भी कहा जाता है। नवाबी संस्कृति से प्रेरित इस पान में लखनऊ का ठाठ नजर आता है। बनारसी पान में आमतौर पर बंगला या महोब्बा किस्म के पत्ते का इस्तेमाल होता है, जो मुलायम और स्वादिष्ट होते हैं। 'रजवाड़ी पान' या 'शाही पान' में सूखे मेवे और कभी-कभी चॉकलेट जैसी मॉडर्न भरावन भी जोड़ी जाती है। बनारस में पान सिर्फ खाने की चीज़ नहीं, एक बातचीत का बहाना, एक संस्कार, एक भाव है।
मुंबई ,पटना और भोपाल का पान

मुंबई के पान को बॉम्बे पान कहा जाता है, जो कि तेज मसालेदार स्वाद, सुपारी, खोपरा का उपयोग किया जाता है। इसे बॅाम्बे सादा पान या फिर मीठा पान के नाम से पुकारा जाता है। यह कहा जाता है कि अगर आपको तीखा या पारंपरिक के साथ झटपट वाला पान चाहिए तो आपको मुंबई के इस खास पान को चुनना चाहिए। अगर आपको मिठास,ताजगी चाहिए, तो इसके लिए बॉम्बे का मीठा पान बेस्ट माना गया है। पटना में मगही पान काफी लोकप्रिय है। मगध क्षेत्र का पतला और खुशबूदार पत्ता, आमतौर पर सादा चुना-कत्था लगाया जाता है। इसे सबसे बेहतरीन गुणवत्ता वाले पान में गिना जाता है और निर्यात भी होता है। मगही पान के पत्ते पतले, मुलायम और अत्यंत सुगंधित होते हैं। इनमें तीखापन नहीं होता, इसलिए सादा या मीठा दोनों रूपों में पसंद किया जाता है। पत्ता जल्दी गल जाता है और मुंह में मेल्ट होने जैसा एहसास देता है।
भोपाल में मसाला पान

दूसरी तरफ भोपाल में मसाला पान मिलता है, जिसे शाही तरीके से तैयार किया जाता है। इसे तैयार करने के लिए मसालेदार, सौंफ, गुलकंद और मेवे का इस्तेमाल किया जाता है। यह पान न तो पूरी तरह सादा होता है, न ही बहुत मीठा। इसमें चटपटा मसाला, तीखी सुपारी और ताजगी का अनोखा संतुलन होता है। कई लोग पान में भोपाली जायका मसाला भी डालते हैं। इसके अलावा, कत्था, चूना,मसालेदार सुपारी,लौंग, इलायची और कई बार पीसा हुआ सौंठ भी डाला जाता है। देखा जाए, तो भारत का ऐसा कोई भी शहर नहीं है, जहां पर पान नहीं मिलता है। आप भारत में कहीं पर भी घूम लें या फिर चले जाएं, आपको पान की तलाश नहीं करनी पड़ेगी।
दरअसल, खान-पान और पान इनका ताल्लुक सुई और धागे की तरह है, जो कि एक दूसरे के बिना अधूरे लगते हैं। शायद यही वजह यह है कि शादी-ब्याह में पान-बीड़ा एक रस्म है। त्योहार के मौके पर मिठाई के बाद पान परोसना शुभ माना जाता है। मेहमानों की विदाई के समय पान शेयरिंग केयर करने का एक तरीका बन जाता है।