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कान फिल्मोत्सव में महिलाओं ने लहराया परचम, पायल और अनसूया ने रचा इतिहास

टीम Her Circle |  जून 25, 2024

कान फिल्म महोत्सव जैसे प्रतिष्ठित में पहली बार फिल्ममेकर पायल कपाड़िया फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ ने इतिहास रचा, तो अनसूया सेनगुप्ता को भी बड़ा सम्मान हासिल हुआ। दरअसल, कान फिल्मोत्सव में अगर गौर करें, तो महिलाओं का दबदबा नजर आया। ऐसे में महिला प्रधान फिल्म और महिलाओं की मौजूदगी ने किस तरह से कान में योगदान दिया है, आइए जानते हैं इस फिल्म, फिल्म की निर्देशिका और इससे जुड़ी और कुछ महत्वपूर्ण बातें। 

कान फिल्म फेस्टिवल में भारतीय फिल्में

गौरतलब है कि पिछले कई सालों से कान फिल्म महोत्सव में भारतीय फिल्में लगातार फिल्म का हिस्सा बन रही हैं। अगर पिछली फिल्म की बात की जाए, जो कान फिल्मोत्सव के किसी प्रतिस्पर्धा में शामिल हुई थी, वह थी वर्ष 1982 में आई फिल्म ‘खारिज’ थी, इस फिल्म का निर्देशन मृणाल सेन ने किया था। यह फिल्म कान फिल्मोत्सव के प्रतिष्ठित पाल्मे डि'ओर पुरस्कार के लिए शामिल हुई थी। वहीं अगर बाकी फिल्मों की बात करें, तो इससे पहले, एमएस सथ्यू की फिल्म ‘गर्म हवा’,  सत्यजीत रे की फिल्म ‘पारस पत्थर’ फिल्मोत्सव का हिस्सा बनीं, तो राज कपूर की फिल्म आवारा भी, जो कि 1951 में रिलीज हुई थी और दो साल के बाद कान फिल्मोत्सव का हिस्सा बनीं। वहीं वी शांताराम की अमर भूपाली और चेतन आनंद की ‘नीचा नगर’जैसी फिल्में कान प्रतियोगिता के लिए चुनी गई थीं। बता दें कि वर्ष 1946 में फिल्म 'नीचा नगर' शीर्ष सम्मान जीतने वाली एकमात्र भारतीय फिल्म बनी थीं। और उस वक्त उस पुरस्कार को ग्रां प्री डू फेस्टिवल इंटरनेशनल डू फिल्म के नाम से जाना जाता था। गौरतलब है कि यह 30 वर्ष में मुख्य प्रतियोगिता में प्रदर्शित होने वाली किसी भारतीय महिला निर्देशक की पहली भारतीय फिल्म है। जबकि यह जानना भी दिलचस्प है कि मुख्य प्रतियोगिता के लिए चयनित की गयी आखिरी भारतीय फिल्म शाजी एन करुण की 1994 में आयी ‘स्वाहम’ थी।

जानें क्या है खास फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ में 

‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ पहली भारतीय फिल्म है, जिसे पायल कपाड़िया ने निर्देशित किया है। और इस फेस्टिवल में 'ग्रैंड प्रिक्स' अवॉर्ड जीता है। बता दें कि 'ग्रांड प्रिक्स पाल्मे डी' अवॉर्ड फिल्म फेस्टिवल का दूसरा सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। इस फिल्म की सबसे खास बात यह है कि यह एक महिला प्रधान फिल्म है। मुख्य अभिनेत्रियों की बात करें तो कानी कुश्रुति, दिव्या प्रभा और छाया कदम प्रमुख भूमिकाओं में से हैं, उन्होंने अवार्ड जीतने के बाद कान के सम्मानित मंच से फिल्म का निर्देशन करने वालीं फिल्म मेकर पायल कपाड़िया ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि यह फिल्म मित्रता या फ्रेंडशिप को सेलिब्रेट करती हैं। इस फिल्म की कहानी तीन बहुत ही अलग-अलग मिजाज की महिलाओं की जिंदगी पर आधारित है, जो कई बार एक दूसरे के खिलाफ भी खड़ी हो जाती हैं परिस्थितियों के कारण। दरअसल, हमारा समाज इसी तरीके से बनाया गया है और यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है,  लेकिन मेरे लिए दोस्ती बहुत महत्वपूर्ण रिश्ता है, क्योंकि इससे अधिक एकजुटता, समावेशिता और सहानुभूति पैदा होती है। बता दें कि यह फिल्म मलयालम-हिंदी फीचर फिल्म के रूप में देखी जा रही है। ‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’ एक नर्स प्रभा के बारे में है, जिसे लंबे समय से अलग रह रहे अपने पति से एक ऐसा अनोखा उपहार मिलता है, जिससे उसके पूरे जीवन काफी उथल-पुथल हो जाती है। ऐसे में वह कैसे परिस्थिति का सामना करती है। फिल्म में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। इस फिल्म की लोगों ने इस कदर तारीफ की कि फिल्म के लिए लोगों ने स्क्रीनिंग के बाद आठ मिनट तक तालियां बजायीं। फिल्म की अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई समीक्षकों ने प्रशंसा की। 

कौन हैं पायल कपाड़िया 

पायल ने इससे पहले भी फिल्मों का निर्माण किया है। पायल की फिल्म 'ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग' को वर्ष 2021 में कान फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए 'गोल्डन आई' अवार्ड मिला था। उनकी फिल्म ‘आफ्टरनून क्लाउड्स’ एक ऐसी भारतीय फिल्म थी, जिसे 70वें कान फिल्म फेस्टिवल के लिए चुना गया था। गौरतलब है कि पायल मुंबई में ही पली-बढ़ी हैं। उन्होंने मुंबई के संत जेवियर्स से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की है। साथ ही फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट से निर्देशन की पढ़ाई पूरी की। 

अनसूया सेनगुप्ता ने भी रचा इतिहास 

‘ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट’के साथ-साथ भारतीय महिलाओं का दबदबा और भी रहा। दरअसल, इसी फिल्मोत्सव में बुल्गारिया के निर्देशक कॉन्स्टांटिन बोजानोव की हिंदी भाषी फिल्म ‘द शेमलेस’ के प्रमुख कलाकारों में से एक अनसूया सेनगुप्ता को भी वर्ष 2024 के कान फिल्म महोत्सव में ‘अन सर्टेन रिगार्ड’ श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतकर इतिहास रचा। यह भी भारत के लिए एक गर्व की बात है कि अनसूया सेनगुप्ता को यह सम्मान हासिल हुआ है। उनकी यह फिल्म क्वीर कम्युनिटी और दुनिया भर में अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदाय पर आधारित है। किस तरह वे आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे होते हैं। किस तरह वे समाज में अपनी बराबरी की हिस्सेदारी को लेकर संघर्ष कर रहे होते हैं। 

कौन हैं अनसूया सेनगुप्ता

बता दें कि अनसूया का ताल्लुक पश्चिम बंगाल से हैं, जी हां, उनका जन्म पश्चिम बंगाल में ही हुआ और उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई की थी। साथ ही आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वह पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढ़ने की चाहत रखती थीं। लेकिन उन्हें फिल्मों में भी दिलचस्पी रही और फिर उन्हें फिल्म 'मैडली बंगाली' में काम करने का मौका मिला। यह फिल्म वर्ष 2009 में रिलीज हुई थी। फिल्म में उन्होंने सपोर्टिंग किरदार निभाया था। फिर वर्ष 2009 में ही उन्होंने मुंबई का रुख किया।  मुंबई में रुख करने की सबसे बड़ी वजह यह रही कि अनसूया के भाई अभिषेक सेनगुप्ता पहले से ही फिल्मों में काम करते थे। ऐसे में वह मुंबई आयीं और फिल्मों के कला विभाग में काम करना शुरू कर दिया। अभिनय की मुख्यधारा में शामिल होने से पहले उन्होंने एक प्रोडक्शन डिजाइनर के रूप में काम करना शुरू किया। साथ ही साथ आपको जान कर हैरानी होगी कि अनुसूया ने शो 'मसाबा मसाबा' के लिए प्रोडक्शन डिजाइन भी किया है। ऐसे में जाहिर है यह स्पष्ट है कि अनसूया कई क्षेत्रों में माहिर रही हैं और इतना बड़ा सम्मान हासिल करके उन्होंने इतिहास रच दिया है। दिलचस्प बात यह है कि जब इस फिल्म के निर्देशक पहली बार अनसूया से मिले थे, तब उनसे वह कैरेक्टर विज्युलाइजर के रूप में मिले थे, क्योंकि वह इस फिल्म को एनिमेटेड फिल्म के रूप में बनाने का मन बना चुके थे। लेकिन बाद में अनसूया से मिलने के बाद, उनके जेहन में यह बात आयी कि उन्हें अनसूया को ही कास्ट करना चाहिए।

यह भी जानें 

इस साल बड़ी उपलब्धियों के साथ-साथ मानसी महेश्वरी की ‘बनीहुड’ ने इस वर्ष कान फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट का तीसरा पुरस्कार जीता है। जी हां, भारतीय सिनेमा के लिए एक और महत्वपूर्ण उपलब्धियों में इस फिल्म का नाम भी जुड़ा है, यह फिल्म एक हॉरर कॉमेडी है, जो बचपन से वयस्कता तक के बदलाव को दर्शाती है।

picture credit : Instagram

 

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