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होम / एन्गेज / संस्कृति / इवेन्ट्स

जून में क्यों मनाते हैं ‘प्राइड मंथ’, जानें इतिहास और महत्व

टीम Her Circle |  जून 20, 2025

'प्राइड मंथ' यानी कि 'गौरव का महीना' हर साल जून में ही मनाया जाता है। इसके पीछे की एक खास वजह है। उल्लेखनीय है कि प्राइड मंथ हर साल जून महीने में एलजीबीटी समुदाय के लिए सबसे खास होता है। इस महीने उनके अधिकारों, संघर्षों और उपलब्धियों के सम्मान में मनाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि आखिर क्यों जून में ही इसे मनाया जाता है, बता दें कि इसके पीछे एक ऐतिहासिक घटना है। जिसे ‘स्टोन वॉल आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं विस्तार से।

क्या है प्राइड मंथ का इतिहास?

साल 1960 के दशक में अमेरिका में समलैंगिकता को अपराध माना जाता था। उस दौरान एलजीबीटी समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव किया जाता था। साथ ही हिंसा और सामाजिक बहिष्कार भी एक आम बात हो गई थी। इस दौरान न्यूयॉर्क सिटी के स्टोन वॉल इन नामक एक गे बार एलजीबीटी समुदाय के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया था। इस घटना की शुरुआत रात 28 जून को हुई थी। इस दौरान यह भी हुआ कि न्यूयॉर्क पुलिस ने स्टोन वॉल इन पर छापा मारा। यह उन दिनों के लिए आम बात हुआ करती थी। लेकिन उसी रात अपने खिलाफ उठते हुए आवाज के विरोध में एलजीबीटी समुदाय के लोगों ने पुलिस की ज्यादती के खिलाफ जोरदार विरोध किया। यह विरोध अगले कई दिनों तक लगातार चलता रहा और देखते ही देखते यह एक तरह से बड़ा आंदोलन बन गया। इस आंदोलन ने व्यापक रूप लिया और यह एलजीबीटी के हक की लड़ाई में मील का पत्थर साबित हुआ। 

अन्य देशों में एलजीबीटी समुदाय का आंदोलन

इसी से प्रेरित होकर अमेरिका और अन्य देशों में एलजीबीटी समुदाय ने खुलकर अपने अधिकारों की मांग शुरू की। उसी के ठीक एक साल बाद 28 जून 1970 को न्यूयॉर्क, लॉस एंजेलिस और शिकागो में पहली प्राइड परेड निकाली गई। इसे लेकर कई तरह की गतिविधियां भी की जाती है।

प्राइड मंथ में की जाने वाली गतिविधियां विस्तार से

प्राइड मंथ को दुनिया में कई तरह की गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। इसे रंगीन तरीके से मनाया जाता है। एलजीबीटी समुदाय के लोग और सहयोगी सड़कों पर मार्च करते हैं। परेड में रेनबो झंडे, रंग-बिरंगे कपड़े, संगीत, नाच और रचनात्मक झांकियां शामिल होती है। इन सारी गतिविधियों के पीछे का उद्देश्य केवल गर्व के साथ अपनी पहचान को स्वीकार करना और समान अधिकारों की मांग करना। कई सारे शैक्षिक कार्यक्रम और वर्कशॉप किए जाते हैं, जहां लिंग की पहचान, लैंगिक झुकाव, मानसिक स्वास्थ्य और कानूनी अधिकार के बारे में बात की जाती है। कई सारे आर्ट और कल्चर कार्यक्रम किया जाता है। एलजीबीटी (LGBTQIA+)  कलाकारों द्वारा आर्ट एग्जीबिशन, थिएटर, कविता पाठ, फिल्म स्क्रीनिंग आदि आयोजित किए जाते हैं। फिल्म फेस्टिवल भी आयोजित किया जाता है। डिजिटल युग में सामाजिक मीडिया अभियान भी चलाए जाते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रेनबो थीम वाले पोस्ट, #PrideMonth हैशटैग, और LGBTQIA+ से जुड़े सकारात्मक संदेश साझा किए जाते हैं। इस दौरान लोग अपने अनुभव शेयर करते हैं, और समुदाय को समर्थन देते हैं।

प्राइड मंथ का सपोर्ट

कई सारी ऐसी कंपनियां हैं, जो कि 'प्राइड मंथ' का सपोर्ट करती हैं। इसमें रेनबो लोगो को अपनाया जाता है। वर्कशॉप का आयोजन किया जाता है। एलजीबीटी( LGBTQIA+) कर्मचारियों को सपोर्ट करने वाले इवेंट्स आयोजित करती हैं। हालांकि कई देशों  में एलजीबीटी कम्युनिटी के लोगों को सेलिब्रेशन के कारण भेदभाव,हिंसा और कानूनी पाबंदियों का समाना करना पड़ता है। ऐसे में प्राइड मंथ केवल उत्सव नहीं, बल्कि जागरूकता फैलाने और बदलाव की मांग करने का समय भी है। हालांकि, जून में गौरव का महीना सेलिब्रेट करने का स्वरूप अलग-अलग होता है। दिल्ली में क्वीर प्राइड परेड नवंबर में होती है। कुछ देशों में एलजीबीटी समुदाय को खुलकर सामने आने की भी आजादी नहीं है। लेकिन छोटे-छोटे आंदोलन के जरिए इसे जारी रखा जाता है।

प्राइड फ्लैग के अलग-अलग रंग

प्राइड फ्लैग, जिसे रेनबो फ्लैग भी कहा जाता है, LGBTQIA+ समुदाय की विविधता, एकता और गौरव का प्रतीक है। इस झंडे के अलग-अलग रंगों का अपना एक खास अर्थ होता है। इस फ्लैग में पिंक सेक्स का प्रतीक है, रेड जीवन का, ऑरेंज उत्साह का, पीला रंग सूरज की रोशनी, ग्रीन प्रकृति का,टॅाक इंज जादू और कला का, रॉयल ब्लू शांति का और वायलेट आत्मा का प्रतीक माना गया है। उल्लेखनीय है कि यह फ्लैग पहली बार 1978 में गिल्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किया गया था।

गौरव माह का प्रभाव 

इस माह का प्रभाव बीते कई सालों से यह हुआ है कि समाज में एलजीबीटी( LGBTQIA+) समुदाय के प्रति जागरूकता और समझ बढ़ती है। लोग अधिक खुले मन से लैंगिक पहचान और यौन झुकाव को समझने लगते हैं। एलजीबीटी( LGBTQIA+) लोगों को अपनी पहचान के साथ खुलकर जीने का साहस मिलता है। समान विवाह, ट्रांसजेंडर अधिकार और भेदभाव विरोधी कानूनों में परिवर्तन का दबाव बढ़ता है। भारत जैसे देशों में धारा 377 हटने (2018) में सामाजिक आंदोलनों और जागरूकता का बड़ा हाथ था। वर्कशॉप और ट्रेनिंग के जरिए भेदभाव घटाया जाता है। उपभोक्ता समूहों को ध्यान में रखकर नए प्रोडक्ट्स, सेवाएं और मार्केटिंग होती है। 'प्राइड-थीम' वाले उत्पादों की बिक्री बढ़ती है, जैसे कपड़े, एक्सेसरीज और इवेंट्स टिकट टिकट खरीदे जाते हैं और इस तरह से प्राइड मंथ को पूरे जून सेलिब्रेट किया जाता है।

 

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