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संस्कृति

ईरानी चाय पीने का भी अपना अदब होता है जनाब ! चाय दिवस पर जानिए ईरानी चाय संस्कृति की खास बातें

अनुप्रिया वर्मा |  जनवरी 11, 2024

जो चाय का शौक रखते हैं, वे इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ होंगे कि चाय हर मर्ज की दवा होती है। एक अनोखी चाय, जिसका अपना एक खास इतिहास रहा है और जिसे हर अंदाज में लोगों ने पसंद किया है। ऐसे में किस तरह ईरानी चाय ने भारत का रुख किया, आइए इसके बारे में विस्तार से जानें। 

ऐसे भारत आई ईरानी चाय 

भारत के लोगों के लिए ईरानी चाय की तलब को साफतौर पर देखा जा सकता है, ऐसे में अगर इसकी उत्पत्ति की बात की जाए, तो हैदराबाद में उत्पत्ति के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। ऐसा माना जाता है कि 19वीं सदी में फारसी अप्रवासी बेहतर जीवन और व्यापार की तलाश में मुंबई के बंदरगाह पर आए थे। मुंबई से वे पुणे और फिर हैदराबाद चले गए। उनके साथ ईरानी चाय का आइडिया भारत में आया। अब आखिर ईरानी चाय में ऐसी कौन सी खूबी है कि लोगों ने इसे पसंद किया और कई जगहों पर ईरानी चाय के कैफे खुले। मुंबई से लेकर हैदराबाद और ऐसी कई जगहों पर ईरानी चाय के दीवाने हैं। 

दरअसल, ईरानी चाय और भारत में बनी बाकी चाय बनाने के स्टाइल में काफी अंतर होता है। ईरानी चाय के लिए चाय की पत्तियों को पानी के साथ एक अलग कंटेनर में उबाला जाता है और दूध को भी अलग कंटेनर में उबाला जाता है।

कैसे बनती है ये चाय 

ईरानी चाय भारतीय चाय की श्रेणी में एक ऐसी चाय है, जिसे काली चाय में मावा या खोया मिलाकर बनाया जाता है। परिणाम एक मीठी और मलाईदार चाय बनती है और दालचीनी और हरी इलायची जैसे मसालों का इस्तेमाल हुआ है, यह एक पारसी चाय है, जो हैदराबाद शहर में बेहद लोकप्रिय है। खासतौर से पुराने हैदराबाद में सड़क के किनारे चाय के स्टॉल भी इस ताजा पेय को बेचते हैं।

आइकोनिक ईरानी कैफे 

वैसे तो देशभर में कई राज्यों में ईरानी चाय पीने के शौकीन हैं, लेकिन मुंबई और हैदराबाद में इनकी संख्या बहुत अधिक है। ईरानी चाय ने जिस तरह से मुंबई और हैदराबाद जैसे शहरों में अपनी पहचान बनाई, कैफे संस्कृति को भी पहचान मिली। साउथ मुंबई में खासतौर से कई ईरानी कैफे हाउस हैं। कयानी एंड को सबसे लोकप्रिय ईरानी कैफे में से एक हैं। इन कैफे की खासियत होती है कि यह दिखने में एक जैसे होते हैं और इनके अंदर के इंटीरियर बिल्कुल एक जैसे होते हैं, इनमें से कई कैफे वास्तव में उस युग के यूरोपीय कैफे पर आधारित थे। गौरतलब है कि 60 के दशक की शुरुआत में करीब 400 ईरानी कैफे थे। आज केवल कुछ ही बचे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह अगली पीढ़ी के पारिवारिक व्यवसाय को चलाने, या विदेश में प्रवास करने के सामान्य अरुचि के कारण, इनमें से कई कैफे बंद हो गए हैं। तो आधुनिकता में लोगों ने अन्य तरह के फैंसी कैफे कल्चर कल्चर को भी अपनाना शुरू कर दिया। मुंबई के अलावा अगर हैदराबाद की बात करें, तो निलुफर कैफे हैदराबाद में ईरानी चाय के लिए बेहद लोकप्रिय हैं। दिलचस्प बात यह है कि हैदराबाद में निलोफ़र ​​कैफे का नाम ईरान के निज़ाम की बहू के नाम पर रखा गया था। इसे हैदराबादी दम चाय भी कहते हैं। यहां की चाय के साथ ओस्मानिया बिस्किट का मजा लेना भी अपने आप में एक अलग ही अनुभव है। 

ईरानी चाय का बेस्ट यार बन मस्का 

ईरानी चाय के साथ जो सबसे बात होती है कि इसके साथ बन मस्का काफी आनंद लेकर खाया जाता है। साथ ही मावा केक का आनंद भी लोग लेते हैं। 

चाय सर्व करने का भी होता है अंदाज

ईरानी चाय को सर्व करने का भी अपना तरीका होता है, ज्यादातर सफेद सिरेमिक कप और प्लेट में इसको  सर्व किया जाता है और इसे 90 मिली चाय कहा जाता है।

 

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