सब्जियों में सबसे खास आलू को माना जाता है। इसकी वजह यह है कि आलू को आप किसी भी प्रकार की सब्जी में मिला सकती हैं। इससे सब्जी का स्वाद दोगुना बढ़ जाता है। आलू को अलग से भी कई तरह से बनाया जाता है। आलू की लोकप्रियता ऐसी है कि देश-विदेश में इसे लेकर एक खास तरह का दिन मनाया जाता है और आलू के प्रेमियों के लिए खास दिन आज का है। 30 मई यानी कि आज अंतरराष्ट्रीय आलू दिवस है। यह दिवस खास तौर पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किया गया है। इसके पीछे की वजह यह है कि ताकि लोगों को आलू की पोषण संबंधी महत्व, खाद्य सुरक्षा में योगदान और विश्व के विभिन्न हिस्सों में इसकी विविधतापूर्ण उपयोगिता को सराहा जा सके। आइए विभिन्न भाषाओं में आलू के खान-पान की संस्कृति के बारे में जानते हैं।
भारत में क्या है आलू का महत्व

भारत आलू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और हर राज्य की अपनी अनूठी आलू पर आधारित डिश होती है। यह सब्जी भारतीय खान-पान का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है और लगभग हर क्षेत्रीय व्यंजन में इसका कुछ न कुछ रूप देखने को मिलता है। किसानों की आय का बड़ा स्त्रोत आलू से ही होता है। इसे एक तरह से नकदी फसल कहा जाता है। आलू से किसान अच्छी आमदनी प्राप्त करते हैं। किसी भी तरह के जलवायु परिस्थिति में आलू की फसल आराम से उगाई जा सकती है। आलू में कार्बोहाइड्रेट अधिक होता है। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। सस्ती और आसानी से मौजूद रहता है। इन सारी वजहों के कारण आलू को सब्जी का साथी कहा जाता है। आलू हर प्रकार की सब्जी के साथ मेल खाता है।
उत्तर भारत में आलू के खान-पान की संस्कृति

उत्तर भारत में आलू के खान-पान का जु़ड़ाव, आलू का चोखा, आलू की भुजिया, आलू के पराठे और दम आलू के साथ जुड़ा हुआ है। यह एक तरह से उत्तर भारत की पारंपरिक डिश है। उत्तर प्रदेश और बिहार में खास तौर पर पूड़ी-आलू (रसदार आलू की सब्जी) त्योहारों और आयोजनों में परोसा जाता है। मसालेदार आलू भरावन के साथ बना समोसा उत्तर भारत की पहचान है। आलू टिक्की भी आपको बाजारों की पहचान के तौर पर मिल जाएगी। आप यह भी समझ सकती हैं कि उत्तर भारत में शाकाहार में आलू को खान-पान की रीढ़ की हड्डी भी कहा जाता है। किफायती और आसानी से मिलने के साथ स्वाद में भरपूर आलू को माना जाता है।
पंजाब में आलू के खान-पान की संस्कृति

पंजाब में पराठे के तौर पर आलू का होना वहां की खान-पान की संस्कृति को धनी करता है। पंजाब के नाश्ते की शान आलू पराठा ही बना है। आलू-गोभी, आलू-मटर, आलू-बैंगन और आलू-प्याज आमतौर पर रोजमर्रा की थाली में होते हैं। सरसों का साग और आलू भी काफी लोकप्रिय हैं, सर्दियों में सरसों के साग के साथ आलू की सूखी सब्जी भी खाई जाती है। यहां तक कि बेसन की कढ़ी में उबले हुए आलू को मिलाकर उसका स्वाद बढ़ाया जाता है। यहां तक कि पंजाबी समोसे की शान भी आलू से बढ़ती है। पंजाब के कुछ जिलों में आलू की खेती होती है, विशेष कर फिरोजपुर, लुधियाना और जालंधर में। उल्लेखनीय है कि पंजाब के किसान आलू को रबी की फसल के तौर पर लगाते हैं और कोल्ड स्टोरेज में रखकर इसकी बिक्री करते हैं।
महाराष्ट्र में आलू यानी कि बटाटा के खान-पान की संस्कृति

महाराष्ट्र के खान-पान में आलू सबसे खास महत्व रखता है। कांदा आलू पोहा हो या फिर बटाटा वड़ा हो। आलू से महाराष्ट्र का खान-पान धनी हो जाता है। महाराष्ट्र के विदर्भ और कोल्हापुर में तीखे रस वाली आलू की सब्जी सबसे अधिक लोकप्रिय है। महाराष्ट्र और मुंबई में सबसे लोकप्रिय स्ट्रीट फूड बटाटा वड़ा है, जो कि आलू को उबालकर और उसे कई तरह के मसालों के साथ मिलाकर मसला जाता है और फिर बेसन में लपेटकर इसे तेल में छान लिया जाता है। यहां तक कि मुंबई की पाव भाजी में भी आलू का ही कमाल होता है। यहां तक कि उपवास के वक्त भी आलू के साथ साबूदाना खिचड़ी, बटाटा चिवड़ा और उपवास का वड़ा तैयार किया जाता है। आप यह भी समझ सकती हैं कि महाराष्ट्र में बटाटा यानी कि आलू केवल एक सामग्री नहीं है, बल्कि खान-पान की संस्कृति, स्वाद और जीवनशैली का हिस्सा है।
तमिलनाडु के खान-पान में आलू की संस्कृति

तमिल में आलू को पोरियाल कहते हैं। देखा जाए, तो यह राज्य ऐतिहासिक तौर से धान, चावल, दाल और स्थानीय सब्जियों पर आधारित रहा है। हालांकि कुछ सालों से आलू ने भी तमिलनाडु के खान-पान में स्थायी, लेकिन प्रमुख स्थान ले लिया है। सांभर में वैसे आलू नहीं डाला जाता, लेकिन बीते कुछ सालों से पारंपरिक सांभर में भी आलू का उपयोग सांभर को गाढ़ा करने के लिए किया जा रहा है। साथ ही खिचड़ी जैसी एक खास डिश तैयार की जाती है। इस डिश को मसालेदार आलू की सूखी सब्जी के साथ बनाया जाता है। मसाला डोसा में भी आलू की सूखी सब्जी को डालकर इसे तैयार किया जाता है। उबले हुए आलू को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर कटे हुए नारियल, करी पत्ता, सरसों और मिर्च के साथ भूनकर बनाया जाता है।
गुजरात के खान-पान की संस्कृति में आलू
गुजरात के खान-पान की खूबी यह है कि यहां पर खाना संतुलित मसालों के साथ सादगी से बनाया जाता है और आलू का उपयोग इसे और अधिक बढ़ा देता है। गुजरात की थाली में आलू का उपयोग कई तरह से किया जाता है। आलू की सूखी सब्जी, आलू की रसेदार सब्जी, आलू की खट्टी सब्जी के साथ खमन-ढोकला और आलू के अलावा बाटी और आलू भी पारंपरिक खाने की शाली का हिस्सा है। गुजराती स्ट्रीट फूड में भी टिक्की की लोकप्रियता है, जिसे दही और चटनी के साथ परोसा जाता है। त्योहार के समय आलू की पूरियां बनाई जाती हैं। फाफड़ा के साथ भी आलू की सब्जी तैयार की जाती है। उपवास के समय सिंघाड़े के आटे के साथ आलू के पकौड़े या फिर सब्जी तैयार की जाती है। गुजरात में आलू ची भाजी का स्वाद वहां के खान-पान के स्वाद को बढ़ा देता है।
ओडिशा के खान-पान में आलू की संस्कृति

ओडिशा के खान-पान में आलू ने पारंपरिक भोजन में अपनी एक खास जगह बना ली है। वहां के खाने के लिए बनाई जाने वाली साधारण सब्जी में भी आलू ने अपना स्थान ले लिया है, जैसे- आलू बैंगन की सब्जी, आलू और कच्चे केले की सब्जी। उल्लेखनीय है कि सूखे मसालों के साथ बिना प्याज और लहसुन के इन सब्जियों को पकाया जाता है। साथ ही आलू दम रविवार के नाश्ते के लिए खास डिश बन चुकी है। पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर में मिलने वाले प्रसाद में भी आलू की सब्जियों का अधिक प्रयोग होता है, जो कि लाजवाब और स्वादिष्ट होती हैं। ओडिशा का सबसे मशहूर स्ट्रीट फूड, जिसमें दही बड़े के साथ मसालेदार आलू दम और चटनी मिलती है। इसके साथ उबले आलू को मसालों और सरसों तेल के साथ मिलाकर खाया जाता है – एक तेज, चटपटा और घरेलू स्वाद।