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भारतीय संस्कृति में गौरैया: बिखेरने खुशियां, गौरैया बेटियों जैसी आंगन में उतरती हैं

प्राची |  जनवरी 11, 2025

‘गौरैया बेटियों जैसी, आंगन में उतरती है, बिखेरने खुशियां गौरैया बेटियों जैसी आती है’ राकेश मिश्र की गौरैया पर लिखी हुई यह कविता मानव जाति में गौरैया की अहमियत को बखूबी दर्शाती है। क्या आपने कभी गौरैया पक्षी को देखा है? उत्तर प्रदेश और बिहार में सुबह की पहली पहर में गौरैया पक्षी आसमान में अपने छोटे-छोटे पंख फैलाकर चहकती हुई नजर आती है। वैसे, शहरों में भी आपने कई बार घरेलू गौरैया पक्षी को देखा जरूर होगा, लेकिन आपको यह नहीं पता होगा कि आसमान में उड़ने वाली छोटी चिड़िया को गौरैया पुकारा जाता है। दिलचस्प यह है कि साल में एक बार 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस भी मनाया जाता है। इसकी वजह यह भी है कि गौरैया का भारतीय संस्कृति में एक अहम स्थान रखती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और इस खेती को सुरक्षित रखने में गौरैया एक अहम भूमिका निभाती हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।

साहस और सावधानी का प्रतिनिधित्व 

हम सभी को जीवन में सतत आगे बढ़ने और हर मुश्किल का सामना करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। माना गया है कि गौरैया इसी साहस और सावधानी का प्रतिनिधित्व करती है। गौरैया पक्षियों के पैसर वंश की जीववैज्ञानिकि जाति से है, जो कि विश्व के अधिकांश भागों में पाई जाती है। गौरैया की सबसे बड़ी खूबी यह मानी जाती है कि गौरैया पक्षी मानवों के समीप रहना पसंद करती हैं, हालांकि शहरों की अपेक्षा गांवों में गौरैया पक्षी सबसे अधिक रहना पसंद करती है। इसकी वजह यह भी है कि गौरैया पक्षी अधिक तापमान सहन नहीं कर पाती है। 

लोककथाओं में गौरैया

भारतीय संस्कृति और साहित्य में गौरैया पक्षी सदियों से लोककथाओं और पौराणिक कथाओं के साथ काव्य का एक अभिन्न अंग रही है। कई सारे पौराणिक ग्रंथों जैसे रामायण, महाभारत और भी कई सारे भारतीय ग्रंथों में गौरैया का जिक्र जरूर है। कवि रवींद्रनाथ टैगोर की ‘स्पैरो’ में भी गौरैया पर बात की गई है। इस कविता में टैगोर ने गौरैया को आशा और लचीलेपन के प्रतीक के तौर पर बयान किया है। अपनी कविता में उन्होंने यह भी समझाया है कि गौरैया भले ही छोटी और महत्वहीन लगती है, फिर भी इसमें प्रतिकूल परिस्थितियों पर काबू पाने की शक्ति होती है।भारतीय लोककथा में भी गौरैया को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक मान गया है। इस कहानी में बताया गया है कि एक गौरैया अपना घर बनाने के लिए गरीब किसान की छत में छेद करती है और अपना घोंसला बनाती है। घर में गौरैया की उपस्थिति किसान के लिए सौभाग्य और समृद्धि लेकर आती है, जो कि भारतीय संस्कृति में पक्षी के महत्व को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि गौरैया सदियों से लोककथाओं में वफादारी, मेहनत, साहस और दोस्ती का प्रतीक रही है। 

गौरैया पक्षी की प्रजाति गायब

अफसोस है कि वक्त के साथ गौरैया पक्षी की प्रजाति गायब हो रही है। जानकारी के अनुसार दुनिया में पक्षियों की लगभग 10 हजार प्रजातियां हैं, उनमें से 189 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। भारत में पक्षियों की कुल मिलाकर 1250 प्रजातियां हैं। जिनमें से 85 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं, जिसमें गौरैया का भी नाम शामिल है। गौरैया का सुरक्षित रखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वह खेतों की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा लेती है। नतीजन, किसान की फसल खराब होने से बच जाती हैं। गौरैया कई बार अपना घौंसला इंसानों के करीब बनाती है, इससे उनके घौंसले उजाड़ दिए जाते हैं। बढ़ता वायु प्रदूषण भी इन पक्षियों के लिए मुसीबत है। मोबाइल रेडिएशन भी गौरैया के लिए घाटक साबित हुए हैं। इसलिए यह जरूरी है कि हम आज से अभी से यह ध्यान दें और समझने की कोशिश करें कि छोटी सी गौरैया हमारे जीवन के लिए कितनी अहम है। ऐसे में उसकी रक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इस लेख का अंत राकेश मिश्र की बेटियां गौरैया वाली कविता से ही करना सटीक होगा  कि ‘गौरैया बेटियों जैसी ही आती हैं, जब तक अलग न हो जाएं घौंसले, गौरैया बेटियों जैसी ही फिर आती है, कभी-कभी बदली पहचान के साथ।



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