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होम / एन्गेज / संस्कृति / इवेन्ट्स

अगर ग़ज़लें न होती, तो हमारी संस्कृति में प्रेम की खुशबू न होती

प्राची |  अप्रैल 21, 2025

यह माना जाता रहा है कि साहित्य में कविता और कहानियों के बीच सबसे अधिक लोकप्रियता ग़ज़ल को मिली है। उर्दू और हिंदी साहित्यकारों के बीच ग़ज़ल ने अपनी पहचान कई दशकों से बनाए रखी है। ग़ज़ल की खूबसूरती यह रही है कि इश्क और मोहब्बत के मायने समझाते हुए ग़ज़ल ने वतन से मोहब्बत और इंकलाब जैसे जज्बातों को भी खुद में जगह दी। साहित्यकारों के बीच यह लोकप्रिय है कि जब तक दिलों में जज्बात जिंदा हैं, ग़ज़ल भी जिंदा रहेगी। आइए विस्तार से जानते हैं ग़ज़ल की खूबसूरत संस्कृति के बारे में।

ऐसे हुई ग़ज़ल की शुरुआत

ग़ज़ल की सबसे पहले शुरुआत अरबी भाषा में हुई थी। इसके बार फारसी और उर्दू भाषा में ग़ज़ल ने अपने पैर फैलाए हैं। भारत में ग़ज़ल की शुरुआत बारहवीं शताब्दी से मानी जाती रही हैं। जैसे- जैसे ग़ज़ल ने हिंदी भाषा में अपनी जगह बनाई, उसके बाद से ही ग़ज़ल को भारत, ईरान की साहित्य और संस्कृति की साझा पहचान के तौर पर लोकप्रियता हासिल हुई। माना जाता है कि ‘अमीर ख़ुसरो’ का इसमें अहम योगदान रहा है। अमीर ख़ुसरो’ 13 वीं और 14 वीं शताब्दी के सबसे लोकप्रिय कवियों में शामिल रहे हैं। उन्हें दरबारी कवि भी कहा जाता रहा है। उनकी लोकप्रिय ग़ज़ल इस प्रकार है कि मेरा जो मन तुमने लिया, तुमने उठा गम को दिया, ख़ुसरो कहै बातें गजब, दिल में न लावे कुछ अजब, कुदऱत खुदा की है अजब ,जब जिव दिया गुल लाय कर।

जानें ग़ज़ल का इतिहास

ग़ज़लों की शुरुआत अरबी भाषा में हुई। अरबी से फारसी में आने के साथ ग़ज़ल प्रेम को कुछ लफ्जों में बयान करने का जरिया बन गई, हालांकि फारसी से उर्दू में आने के साथ ग़ज़ल ने अपना इश्क वैसे ही बरकरार रखा, बदलती केवल ग़ज़ल की भाषा। कुछ समय बात भारत में गीतों से प्रभावित होकर ग़ज़लें लिखी जाने लगी। ऐसे में अमीर ख़ुसरो की परंपरा को भारत के उर्दू शायर वली दकनी और सिराज दाउद के साथ कई अन्य शायरों ने आगे बढ़ाया। यहां तक कि गालिब जैसे कई नामचीन उर्दू के ग़ज़लकारभी फारसी गजलों को ही सबसे प्रमुख मानने के साथ उर्दू गजल को फारसी ग़ज़ल की तरह ही बनाने की कोशिश करते रहे हैं। यहां तक हिंदी के कई कवियों ने ग़ज़ल लेखन को अपनाया। निराला, शमशेर, जानकी वल्लभ शास्त्री और दुष्यंत कुमार जैसे अन्य लोग शामिल रहे हैं।

हिंदी के प्रमुख ग़ज़लकार 

हिंदी में ग़ज़लों को स्थापित करने में दुष्यंत कुमार का हाथ सबसे अधिक रहा है। इसके अलावा, जिनका नाम प्रमुख है निदा फ़ाज़लीम, राहत इंदौरी, कुंवर बैचेन और फैज अहमद फैज जैसे अन्य का नाम शामिल है। साहिर लुधियानवी से एक दफा जब पूछा गया कि आप ग़ज़ल में गीतों को क्यों लिखते हैं, तो उनका कहना था कि जो हमें दिया है वही हम ग़ज़लों के रूप में जमाने को वापस करते हैं। जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों को हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत बताई जाती रही है। अपनी ग़ज़लों में उन्होंने आम आदमी की पीड़ा को दिखाया। उन्होंने एक दफा कहा था कि मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूं, हर गजल अब सल्तनत के नाम एक बयान है। कहां तो तय था चरागां हरेक घर के लिए, कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।

भारतीय संस्कृति और ग़ज़ल 

ग़ज़ल की खूबी यह भी रही है कि हिंदी में लिखी गई ग़ज़लों में उर्दू भाषा ने अपनी गरिमा बनाए रखी। जानकारों का मानना है कि ग़ज़ल को दुनिया में लोकप्रियता मेहदी हसन ने दिलाई थी। ग़ज़ल का संगीत से रिश्ता रहा है और मेहदी हसन ने इसे बखूबी प्रस्तुत किया है। ग़ज़लों ने संगीत का रूप लेते ही अपनी लोकप्रियता को चार चादं लगा दिए। आज भी जब ग़ज़लों की बात की जाती है, तो मेहदी हसन की ग़ज़लें सदाबहार मानी जाती हैं। उनकी सबसे लोकप्रिय ग़ज़ल इस प्रकार है कि रफ्ता रफ्ता वो मिरी हस्ती का सांमा हो गए, पहले जांन फिर जान-ए-जां फिर जान-ए-जानां हो गए। इसके बाद बारी आती है ग़ज़ल की मलिका बेगम अख्तर की। बेगम अख्तर को उनके ग़ज़ल गायन के लिए पद्म श्री से भी नवाजा गया है। बेगम अख्तर ने ग़ज़ल को अपनी आवाज से शास्त्रीय संगीत के बराबर लाकर खड़ा कर दिया था। बेगम अख्तर द्वारा गाया गया मशहूर ग़ज़लें कई सारी हैं, उसी में से एक इस प्रकार है कि अपनों के सितम हमसे बताए नहीं जाते, ये हादसे वो हैं जो सुनाए नहीं जाते। 

 

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